3 एक दिन यूनतन ने जिबिया की फ़िलिस्ती चौकी पर हमला करके उसे शिकस्त दी। जल्द ही यह ख़बर दूसरे फ़िलिस्तियों तक पहुँच गई। साऊल ने मुल्क के कोने कोने में क़ासिद भेज दिए, और वह नरसिंगा बजाते बजाते लोगों को यूनतन की फ़तह सुनाते गए। 4 तमाम इसराईल में ख़बर फैल गई, “साऊल ने जिबिया की फ़िलिस्ती चौकी को तबाह कर दिया है, और अब इसराईल फ़िलिस्तियों की ख़ास नफ़रत का निशाना बन गया है।” साऊल ने तमाम मर्दों को फ़िलिस्तियों से लड़ने के लिए जिलजाल में बुलाया।
5 फ़िलिस्ती भी इसराईलियों से लड़ने के लिए जमा हुए। उनके 30,000 रथ, 6,000 घुड़सवार और साहिल की रेत जैसे बेशुमार प्यादा फ़ौजी थे। उन्होंने बैत-आवन के मशरिक़ में मिकमास के क़रीब अपने ख़ैमे लगाए। 6 इसराईलियों ने देखा कि हम बड़े ख़तरे में आ गए हैं, और दुश्मन हम पर बहुत दबाव डाल रहा है तो परेशानी के आलम में कुछ ग़ारों और दराड़ों में और कुछ पत्थरों के दरमियान या क़ब्रों और हौज़ों में छुप गए। 7 कुछ इतने डर गए कि वह दरियाए-यरदन को पार करके जद और जिलियाद के इलाक़े में चले गए।
10 वह अभी इस काम से फ़ारिग़ ही हुआ था कि समुएल पहुँच गया। साऊल उसे ख़ुशआमदीद कहने के लिए निकला। 11 लेकिन समुएल ने पूछा, “आपने क्या किया?”
13 समुएल बोला, “यह कैसी अहमक़ाना हरकत थी! आपने रब अपने ख़ुदा का हुक्म न माना। रब तो आप और आपकी औलाद को हमेशा के लिए इसराईल पर मुक़र्रर करना चाहता था। 14 लेकिन अब आपकी बादशाहत क़ायम नहीं रहेगी। चूँकि आपने उस की न सुनी इसलिए रब ने किसी और को चुनकर अपनी क़ौम का राहनुमा मुक़र्रर किया है, एक ऐसे आदमी को जो उस की सोच रखेगा।”
15 फिर समुएल जिलजाल से चला गया।
19 उन दिनों में पूरे मुल्के-इसराईल में लोहार नहीं था, क्योंकि फ़िलिस्ती नहीं चाहते थे कि इसराईली तलवारें या नेज़े बनाएँ। 20 अपने हलों, कुदालों, कुल्हाड़ियों या दराँतियों को तेज़ करवाने के लिए तमाम इसराईलियों को फ़िलिस्तियों के पास जाना पड़ता था। 21 फ़िलिस्ती हलों, कुदालों, काँटों और कुल्हाड़ियों को तेज़ करने के लिए और आँकुसों की नोक ठीक करने के लिए चाँदी के सिक्के की दो तिहाई लेते थे। 22 नतीजे में उस दिन साऊल और यूनतन के सिवा किसी भी इसराईली के पास तलवार या नेज़ा नहीं था।