4 क़ासिद साऊल के शहर जिबिया भी पहुँच गए। जब मक़ामी लोगों ने उनका पैग़ाम सुना तो पूरा शहर फूट फूटकर रोने लगा। 5 उस वक़्त साऊल अपने बैलों को खेतों से वापस ला रहा था। उसने पूछा, “क्या हुआ है? लोग क्यों रो रहे हैं?” उसे क़ासिदों का पैग़ाम सुनाया गया। 6 तब साऊल पर अल्लाह का रूह नाज़िल हुआ, और उसे सख़्त ग़ुस्सा आया। 7 उसने बैलों का जोड़ा लेकर उन्हें टुकड़े टुकड़े कर दिया। फिर क़ासिदों को यह टुकड़े पकड़ाकर उसने उन्हें यह पैग़ाम देकर इसराईल की हर जगह भेज दिया, “जो साऊल और समुएल के पीछे चलकर अम्मोनियों से लड़ने नहीं जाएगा उसके बैल इसी तरह टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएंगे!”
9 उन्होंने यबीस-जिलियाद के क़ासिदों को वापस भेजकर बताया, “कल दोपहर से पहले पहले आपको बचा लिया जाएगा।” वहाँ के बाशिंदे यह ख़बर सुनकर बहुत ख़ुश हुए। 10 उन्होंने अम्मोनियों को इत्तला दी, “कल हम हथियार डालकर शहर के दरवाज़े खोल देंगे। फिर वह कुछ करें जो आपको ठीक लगे।”
11 अगले दिन सुबह-सवेरे साऊल ने फ़ौज को तीन हिस्सों में तक़सीम किया। सूरज के तुलू होने से पहले पहले उन्होंने तीन सिम्तों से दुश्मन की लशकरगाह पर हमला किया। दोपहर तक उन्होंने अम्मोनियों को मार मारकर ख़त्म कर दिया। जो थोड़े-बहुत लोग बच गए वह यों तित्तर-बित्तर हो गए कि दो भी इकट्ठे न रहे।
15 चुनाँचे तमाम लोगों ने जिलजाल जाकर रब के हुज़ूर इसकी तसदीक़ की कि साऊल हमारा बादशाह है। इसके बाद उन्होंने रब के हुज़ूर सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करके बड़ा जशन मनाया।
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