2 उन दिनों में रब के नाम का घर तामीर नहीं हुआ था, इसलिए इसराईली अपनी क़ुरबानियाँ मुख़्तलिफ़ ऊँची जगहों पर चढ़ाते थे। 3 सुलेमान रब से प्यार करता था और इसलिए अपने बाप दाऊद की तमाम हिदायात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारता था। लेकिन वह भी जानवरों की अपनी क़ुरबानियाँ और बख़ूर ऐसे ही मक़ामों पर रब को पेश करता था।
4 एक दिन बादशाह जिबऊन गया और वहाँ भस्म होनेवाली 1,000 क़ुरबानियाँ चढ़ाईं, क्योंकि उस शहर की ऊँची जगह क़ुरबानियाँ चढ़ाने का सबसे अहम मरकज़ थी। 5 जब वह वहाँ ठहरा हुआ था तो रब ख़ाब में उस पर ज़ाहिर हुआ और फ़रमाया, “तेरा दिल क्या चाहता है? मुझे बता दे तो मैं तेरी ख़ाहिश पूरी करूँगा।”
6 सुलेमान ने जवाब दिया, “तू मेरे बाप दाऊद पर बड़ी मेहरबानी कर चुका है। वजह यह थी कि तेरा ख़ादिम वफ़ादारी, इनसाफ़ और ख़ुलूसदिली से तेरे हुज़ूर चलता रहा। तेरी उस पर मेहरबानी आज तक जारी रही है, क्योंकि तूने उसका बेटा उस की जगह तख़्तनशीन कर दिया है। 7 ऐ रब मेरे ख़ुदा, तूने अपने ख़ादिम को मेरे बाप दाऊद की जगह तख़्त पर बिठा दिया है। लेकिन मैं अभी छोटा बच्चा हूँ जिसे अपनी ज़िम्मादारियाँ सहीह तौर पर सँभालने का तजरबा नहीं हुआ। 8 तो भी तेरे ख़ादिम को तेरी चुनी हुई क़ौम के बीच में खड़ा किया गया है, इतनी अज़ीम क़ौम के दरमियान कि उसे गिना नहीं जा सकता। 9 चुनाँचे मुझे सुननेवाला दिल अता फ़रमा ताकि मैं तेरी क़ौम का इनसाफ़ करूँ और सहीह और ग़लत बातों में इम्तियाज़ कर सकूँ। क्योंकि कौन तेरी इस अज़ीम क़ौम का इनसाफ़ कर सकता है?”
10 सुलेमान की यह दरख़ास्त रब को पसंद आई, 11 इसलिए उसने जवाब दिया, “मैं ख़ुश हूँ कि तूने न उम्र की दराज़ी, न दौलत और न अपने दुश्मनों की हलाकत बल्कि इम्तियाज़ करने की सलाहियत माँगी है ताकि सुनकर इनसाफ़ कर सके। 12 इसलिए मैं तेरी दरख़ास्त पूरी करके तुझे इतना दानिशमंद और समझदार बना दूँगा कि उतना न माज़ी में कोई था, न मुस्तक़बिल में कभी कोई होगा। 13 बल्कि तुझे वह कुछ भी दे दूँगा जो तूने नहीं माँगा, यानी दौलत और इज़्ज़त। तेरे जीते-जी कोई और बादशाह तेरे बराबर नहीं पाया जाएगा। 14 अगर तू मेरी राहों पर चलता रहे और अपने बाप दाऊद की तरह मेरे अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारे तो फिर मैं तेरी उम्र दराज़ करूँगा।”
15 सुलेमान जाग उठा तो मालूम हुआ कि मैंने ख़ाब देखा है। वह यरूशलम को वापस चला गया और रब के अहद के संदूक़ के सामने खड़ा हुआ। वहाँ उसने भस्म होनेवाली और सलामती की क़ुरबानियाँ पेश कीं, फिर बड़ी ज़ियाफ़त की जिसमें तमाम दरबारी शरीक हुए।
22 दूसरी औरत ने उस की बात काटकर कहा, “हरगिज़ नहीं! यह झूट है। मेरा बेटा ज़िंदा है और तेरा तो मर गया है।” पहली औरत चीख़ उठी, “कभी भी नहीं! ज़िंदा बच्चा मेरा और मुरदा बच्चा तेरा है।” ऐसी बातें करते करते दोनों बादशाह के सामने झगड़ती रहीं।
23 फिर बादशाह बोला, “सीधी-सी बात यह है कि दोनों ही दावा करती हैं कि ज़िंदा बच्चा मेरा है और मुरदा बच्चा दूसरी का है। 24 ठीक है, फिर मेरे पास तलवार ले आएँ!” उसके पास तलवार लाई गई। 25 तब उसने हुक्म दिया, “ज़िंदा बच्चे को बराबर के दो हिस्सों में काटकर हर औरत को एक एक हिस्सा दे दें।” 26 यह सुनकर बच्चे की हक़ीक़ी माँ ने जिसका दिल अपने बेटे के लिए तड़पता था बादशाह से इलतमास की, “नहीं मेरे आक़ा, उसे मत मारें! बराहे-करम उसे इसी को दे दीजिए।”
27 यह देखकर बादशाह ने हुक्म दिया, “रुकें! बच्चे पर तलवार मत चलाएँ बल्कि उसे पहली औरत को दे दें जो चाहती है कि ज़िंदा रहे। वही उस की माँ है।” 28 जल्द ही सुलेमान के इस फ़ैसले की ख़बर पूरे मुल्क में फैल गई, और लोगों पर बादशाह का ख़ौफ़ छा गया, क्योंकि उन्होंने जान लिया कि अल्लाह ने उसे इनसाफ़ करने की ख़ास हिकमत अता की है।
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