6 इसराईल के बादशाह ने तक़रीबन 400 नबियों को बुलाकर उनसे पूछा, “क्या मैं रामात-जिलियाद पर हमला करूँ या इस इरादे से बाज़ रहूँ?” नबियों ने जवाब दिया, “जी करें, क्योंकि रब उसे बादशाह के हवाले कर देगा।”
7 लेकिन यहूसफ़त मुतमइन न हुआ। उसने पूछा, “क्या यहाँ रब का कोई नबी नहीं जिससे हम दरियाफ़्त कर सकें?” 8 इसराईल का बादशाह बोला, “हाँ, एक तो है जिसके ज़रीए हम रब की मरज़ी मालूम कर सकते हैं। लेकिन मैं उससे नफ़रत करता हूँ, क्योंकि वह मेरे बारे में कभी भी अच्छी पेशगोई नहीं करता। वह हमेशा बुरी पेशगोइयाँ सुनाता है। उसका नाम मीकायाह बिन इमला है।” यहूसफ़त ने एतराज़ किया, “बादशाह ऐसी बात न कहे!” 9 तब इसराईल के बादशाह ने किसी मुलाज़िम को बुलाकर हुक्म दिया, “मीकायाह बिन इमला को फ़ौरन हमारे पास पहुँचा देना!”
10 अख़ियब और यहूसफ़त अपने शाही लिबास पहने हुए सामरिया के दरवाज़े के क़रीब अपने अपने तख़्त पर बैठे थे। यह ऐसी खुली जगह थी जहाँ अनाज गाहा जाता था। तमाम 400 नबी वहाँ उनके सामने अपनी पेशगोइयाँ पेश कर रहे थे। 11 एक नबी बनाम सिदक़ियाह बिन कनाना ने अपने लिए लोहे के सींग बनाकर एलान किया, “रब फ़रमाता है कि इन सींगों से तू शाम के फ़ौजियों को मार मारकर हलाक कर देगा।” 12 दूसरे नबी भी इस क़िस्म की पेशगोइयाँ कर रहे थे, “रामात-जिलियाद पर हमला करें, क्योंकि आप ज़रूर कामयाब हो जाएंगे। रब शहर को आपके हवाले कर देगा।”
13 जिस मुलाज़िम को मीकायाह को बुलाने के लिए भेजा गया था उसने रास्ते में उसे समझाया, “देखें, बाक़ी तमाम नबी मिलकर कह रहे हैं कि बादशाह को कामयाबी हासिल होगी। आप भी ऐसी ही बातें करें, आप भी फ़तह की पेशगोई करें!” 14 लेकिन मीकायाह ने एतराज़ किया, “रब की हयात की क़सम, मैं बादशाह को सिर्फ़ वही कुछ बताऊँगा जो रब मुझे फ़रमाएगा।”
15 जब मीकायाह अख़ियब के सामने खड़ा हुआ तो बादशाह ने पूछा, “मीकायाह, क्या हम रामात-जिलियाद पर हमला करें या मैं इस इरादे से बाज़ रहूँ?” मीकायाह ने जवाब दिया, “उस पर हमला करें, क्योंकि रब शहर को आपके हवाले करके आपको कामयाबी बख़्शेगा।” 16 बादशाह नाराज़ हुआ, “मुझे कितनी दफ़ा आपको समझाना पड़ेगा कि आप क़सम खाकर मुझे रब के नाम में सिर्फ़ वह कुछ सुनाएँ जो हक़ीक़त है।”
17 तब मीकायाह ने जवाब में कहा, “मुझे तमाम इसराईल गल्लाबान से महरूम भेड़-बकरियों की तरह पहाड़ों पर बिखरा हुआ नज़र आया। फिर रब मुझसे हमकलाम हुआ, ‘इनका कोई मालिक नहीं है। हर एक सलामती से अपने घर वापस चला जाए’।”
18 इसराईल के बादशाह ने यहूसफ़त से कहा, “लो, क्या मैंने आपको नहीं बताया था कि यह शख़्स हमेशा मेरे बारे में बुरी पेशगोइयाँ करता है?”
19 लेकिन मीकायाह ने अपनी बात जारी रखी, “रब का फ़रमान सुनें! मैंने रब को उसके तख़्त पर बैठे देखा। आसमान की पूरी फ़ौज उसके दाएँ और बाएँ हाथ खड़ी थी। 20 रब ने पूछा, ‘कौन अख़ियब को रामात-जिलियाद पर हमला करने पर उकसाएगा ताकि वह वहाँ जाकर मर जाए?’ एक ने यह मशवरा दिया, दूसरे ने वह। 21 आख़िरकार एक रूह रब के सामने खड़ी हुई और कहने लगी, ‘मैं उसे उकसाऊँगी।’ 22 रब ने सवाल किया, ‘किस तरह?’ रूह ने जवाब दिया, ‘मैं निकलकर उसके तमाम नबियों पर यों क़ाबू पाऊँगी कि वह झूट ही बोलेंगे।’ रब ने फ़रमाया, ‘तू कामयाब होगी। जा और यों ही कर!’ 23 ऐ बादशाह, रब ने आप पर आफ़त लाने का फ़ैसला कर लिया है, इसलिए उसने झूटी रूह को आपके इन तमाम नबियों के मुँह में डाल दिया है।”
24 तब सिदक़ियाह बिन कनाना ने आगे बढ़कर मीकायाह के मुँह पर थप्पड़ मारा और बोला, “रब का रूह किस तरह मुझसे निकल गया ताकि तुझसे बात करे?” 25 मीकायाह ने जवाब दिया, “जिस दिन आप कभी इस कमरे में, कभी उसमें खिसककर छुपने की कोशिश करेंगे उस दिन आपको पता चलेगा।”
26 तब अख़ियब बादशाह ने हुक्म दिया, “मीकायाह को शहर पर मुक़र्रर अफ़सर अमून और मेरे बेटे युआस के पास वापस भेज दो! 27 उन्हें बता देना, ‘इस आदमी को जेल में डालकर मेरे सहीह-सलामत वापस आने तक कम से कम रोटी और पानी दिया करें’।” 28 मीकायाह बोला, “अगर आप सहीह-सलामत वापस आएँ तो मतलब होगा कि रब ने मेरी मारिफ़त बात नहीं की।” फिर वह साथ खड़े लोगों से मुख़ातिब हुआ, “तमाम लोग ध्यान दें!”
32 जब लड़ाई छिड़ गई तो रथों के अफ़सर यहूसफ़त पर टूट पड़े, क्योंकि उन्होंने कहा, “यक़ीनन यही इसराईल का बादशाह है!” लेकिन जब यहूसफ़त मदद के लिए चिल्ला उठा 33 तो दुश्मनों को मालूम हुआ कि यह अख़ियब बादशाह नहीं है, और वह उसका ताक़्क़ुब करने से बाज़ आए। 34 लेकिन किसी ने ख़ास निशाना बाँधे बग़ैर अपना तीर चलाया तो वह अख़ियब को ऐसी जगह जा लगा जहाँ ज़िरा-बकतर का जोड़ था। बादशाह ने अपने रथबान को हुक्म दिया, “रथ को मोड़कर मुझे मैदाने-जंग से बाहर ले जाओ! मुझे चोट लग गई है।” 35 लेकिन चूँकि उस पूरे दिन शदीद क़िस्म की लड़ाई जारी रही, इसलिए बादशाह अपने रथ में टेक लगाकर दुश्मन के मुक़ाबिल खड़ा रहा। ख़ून ज़ख़म से रथ के फ़र्श पर टपकता रहा, और शाम के वक़्त अख़ियब मर गया। 36 जब सूरज ग़ुरूब होने लगा तो इसराईली फ़ौज में बुलंद आवाज़ से एलान किया गया, “हर एक अपने शहर और अपने इलाक़े में वापस चला जाए!”
37 बादशाह की मौत के बाद उस की लाश को सामरिया लाकर दफ़नाया गया। 38 शाही रथ को सामरिया के एक तालाब के पास लाया गया जहाँ कसबियों की नहाने की जगह थी। वहाँ उसे धोया गया। कुत्ते भी आकर ख़ून को चाटने लगे। यों रब का फ़रमान पूरा हुआ।
39 बाक़ी जो कुछ अख़ियब की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-इसराईल की तारीख़’ की किताब में दर्ज है। उसमें बादशाह का तामीरकरदा हाथीदाँत का महल और वह शहर बयान किए गए हैं जिनकी क़िलाबंदी उसने की। 40 जब वह मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसका बेटा अख़ज़ियाह तख़्तनशीन हुआ।
45 बाक़ी जो कुछ यहूसफ़त की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-यहूदाह की तारीख़’ की किताब में दर्ज है। उस की कामयाबियाँ और जंगें सब उसमें बयान की गई हैं। 46 जो जिस्मफ़रोश मर्द और औरतें आसा के ज़माने में बच गए थे उन्हें यहूसफ़त ने मुल्क में से मिटा दिया। 47 उस वक़्त मुल्के-अदोम का बादशाह न था बल्कि यहूदाह का एक अफ़सर उस पर हुक्मरानी करता था।
48 यहूसफ़त ने बहरी जहाज़ों का बेड़ा बनवाया ताकि वह तिजारत करके ओफ़ीर से सोना लाएँ। लेकिन वह कभी इस्तेमाल न हुए बल्कि अपनी ही बंदरगाह अस्यून-जाबर में तबाह हो गए। 49 तबाह होने से पहले इसराईल के बादशाह अख़ज़ियाह बिन अख़ियब ने यहूसफ़त से दरख़ास्त की थी कि इसराईल के कुछ लोग जहाज़ों पर साथ चलें। लेकिन यहूसफ़त ने इनकार किया था।
50 जब यहूसफ़त मरकर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे यरूशलम के हिस्से में जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है ख़ानदानी क़ब्र में दफ़नाया गया। फिर उसका बेटा यहूराम तख़्तनशीन हुआ।