2 चुनाँचे इलियास अख़ियब से मिलने के लिए इसराईल चला गया। उस वक़्त सामरिया काल की सख़्त गिरिफ़्त में था, 3 इसलिए अख़ियब ने महल के इंचार्ज अबदियाह को बुलाया। (अबदियाह रब का ख़ौफ़ मानता था। 4 जब ईज़बिल ने रब के तमाम नबियों को क़त्ल करने की कोशिश की थी तो अबदियाह ने 100 नबियों को दो ग़ारों में छुपा दिया था। हर ग़ार में 50 नबी रहते थे, और अबदियाह उन्हें खाने-पीने की चीज़ें पहुँचाता रहता था।) 5 अब अख़ियब ने अबदियाह को हुक्म दिया, “पूरे मुल्क में से गुज़रकर तमाम चश्मों और वादियों का मुआयना करें। शायद कहीं कुछ घास मिल जाए जो हम अपने घोड़ों और ख़च्चरों को खिलाकर उन्हें बचा सकें। ऐसा न हो कि हमें खाने की क़िल्लत के बाइस कुछ जानवरों को ज़बह करना पड़े।”
6 उन्होंने मुक़र्रर किया कि अख़ियब कहाँ जाएगा और अबदियाह कहाँ, फिर दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। 7 चलते चलते अबदियाह को अचानक इलियास उस की तरफ़ आते हुए नज़र आया। जब अबदियाह ने उसे पहचाना तो वह मुँह के बल झुककर बोला, “मेरे आक़ा इलियास, क्या आप ही हैं?”
8 इलियास ने जवाब दिया, “जी, मैं ही हूँ। जाएँ, अपने मालिक को इत्तला दें कि इलियास आ गया है।”
9 अबदियाह ने एतराज़ किया, “मुझसे क्या ग़लती हुई है कि आप मुझे अख़ियब से मरवाना चाहते हैं? 10 रब आपके ख़ुदा की क़सम, बादशाह ने अपने बंदों को हर क़ौम और मुल्क में भेज दिया है ताकि आपको ढूँड निकालें। और जहाँ जवाब मिला कि इलियास यहाँ नहीं है वहाँ लोगों को क़सम खानी पड़ी कि हम इलियास का खोज लगाने में नाकाम रहे हैं। 11 और अब आप चाहते हैं कि मैं बादशाह के पास जाकर उसे बताऊँ कि इलियास यहाँ है? 12 ऐन मुमकिन है कि जब मैं आपको छोड़कर चला जाऊँ तो रब का रूह आपको उठाकर किसी नामालूम जगह ले जाए। अगर बादशाह मेरी यह इत्तला सुनकर यहाँ आए और आपको न पाए तो मुझे मार डालेगा। याद रहे कि मैं जवानी से लेकर आज तक रब का ख़ौफ़ मानता आया हूँ। 13 क्या मेरे आक़ा तक यह ख़बर नहीं पहुँची कि जब ईज़बिल रब के नबियों को क़त्ल कर रही थी तो मैंने क्या किया? मैं दो ग़ारों में पचास पचास नबियों को छुपाकर उन्हें खाने-पीने की चीज़ें पहुँचाता रहा। 14 और अब आप चाहते हैं कि मैं अख़ियब के पास जाकर उसे इत्तला दूँ कि इलियास यहाँ आ गया है? वह मुझे ज़रूर मार डालेगा।”
15 इलियास ने कहा, “रब्बुल-अफ़वाज की हयात की क़सम जिसकी ख़िदमत मैं करता हूँ, आज मैं अपने आपको ज़रूर बादशाह को पेश करूँगा।”
16 तब अबदियाह चला गया और बादशाह को इलियास की ख़बर पहुँचाई। यह सुनकर अख़ियब इलियास से मिलने के लिए आया।
20 अख़ियब मान गया। उसने तमाम इसराईलियों और नबियों को बुलाया। जब वह करमिल पहाड़ पर जमा हो गए 21 तो इलियास उनके सामने जा खड़ा हुआ और कहा, “आप कब तक कभी इस तरफ़, कभी उस तरफ़ लँगड़ाते रहेंगे? *देखिए आयत 26। अगर रब ख़ुदा है तो सिर्फ़ उसी की पैरवी करें, लेकिन अगर बाल वाहिद ख़ुदा है तो उसी के पीछे लग जाएँ।”
25 फिर इलियास ने बाल के नबियों से कहा, “शुरू करें, क्योंकि आप बहुत हैं। एक बैल को चुनकर उसे तैयार करें। लेकिन उसे आग मत लगाना बल्कि अपने देवता का नाम पुकारें ताकि वह आग भेज दे।” 26 उन्होंने बैलों में से एक को चुनकर उसे तैयार किया, फिर बाल का नाम पुकारने लगे। सुबह से लेकर दोपहर तक वह मुसलसल चीख़ते-चिल्लाते रहे, “ऐ बाल, हमारी सुन!” साथ साथ वह उस क़ुरबानगाह के इर्दगिर्द नाचते रहे †लफ़्ज़ी तरजुमा : लँगड़ाते हुए नाचते रहे। ग़ालिबन बाल की ताज़ीम में एक ख़ास क़िस्म का रक़्स। लिहाज़ा आयत 21 में इलियास का सवाल, “आप कब तक . . . लँगड़ाते रहेंगे?” जो उन्होंने बनाई थी। लेकिन न कोई आवाज़ सुनाई दी, न किसी ने जवाब दिया।
27 दोपहर के वक़्त इलियास उनका मज़ाक़ उड़ाने लगा, “ज़्यादा ऊँची आवाज़ से बोलें! शायद वह सोचों में ग़रक़ हो या अपनी हाजत रफ़ा करने के लिए एक तरफ़ गया हो। यह भी हो सकता है कि वह कहीं सफ़र कर रहा हो। या शायद वह गहरी नींद सो गया हो और उसे जगाने की ज़रूरत है।”
28 तब वह मज़ीद ऊँची आवाज़ से चीख़ने-चिल्लाने लगे। मामूल के मुताबिक़ वह छुरियों और नेज़ों से अपने आपको ज़ख़मी करने लगे, यहाँ तक कि ख़ून बहने लगा। 29 दोपहर गुज़र गई, और वह शाम के उस वक़्त तक वज्द में रहे जब ग़ल्ला की नज़र पेश की जाती है। लेकिन कोई आवाज़ न सुनाई दी। न किसी ने जवाब दिया, न उनके तमाशे पर तवज्जुह दी।
30 फिर इलियास इसराईलियों से मुख़ातिब हुआ, “आएँ, सब यहाँ मेरे पास आएँ!” सब क़रीब आए। वहाँ रब की एक क़ुरबानगाह थी जो गिराई गई थी। अब इलियास ने वह दुबारा खड़ी की। 31 उसने याक़ूब से निकले हर क़बीले के लिए एक एक पत्थर चुन लिया। (बाद में रब ने याक़ूब का नाम इसराईल रखा था)। 32 इन बारह पत्थरों को लेकर इलियास ने रब के नाम की ताज़ीम में क़ुरबानगाह बनाई। इसके इर्दगिर्द उसने इतना चौड़ा गढ़ा खोदा कि उसमें तक़रीबन 15 लिटर पानी समा सकता था। 33 फिर उसने क़ुरबानगाह पर लकड़ियों का ढेर लगाया और बैल को टुकड़े टुकड़े करके लकड़ियों पर रख दिया। इसके बाद उसने हुक्म दिया, “चार घड़े पानी से भरकर क़ुरबानी और लकड़ियों पर उंडेल दें!” 34 जब उन्होंने ऐसा किया तो उसने दुबारा ऐसा करने का हुक्म दिया, फिर तीसरी बार। 35 आख़िरकार इतना पानी था कि उसने चारों तरफ़ क़ुरबानगाह से टपककर गढ़े को भर दिया।
36 शाम के वक़्त जब ग़ल्ला की नज़र पेश की जाती है इलियास ने क़ुरबानगाह के पास जाकर बुलंद आवाज़ से दुआ की, “ऐ रब, ऐ इब्राहीम, इसहाक़ और इसराईल के ख़ुदा, आज लोगों पर ज़ाहिर कर कि इसराईल में तू ही ख़ुदा है और कि मैं तेरा ख़ादिम हूँ। साबित कर कि मैंने यह सब कुछ तेरे हुक्म के मुताबिक़ किया है। 37 ऐ रब, मेरी दुआ सुन! मेरी सुन ताकि यह लोग जान लें कि तू, ऐ रब, ख़ुदा है और कि तू ही उनके दिलों को दुबारा अपनी तरफ़ मायल कर रहा है।”
38 अचानक आसमान से रब की आग नाज़िल हुई। आग ने न सिर्फ़ क़ुरबानी और लकड़ी को भस्म कर दिया बल्कि क़ुरबानगाह के पत्थरों और उसके नीचे की मिट्टी को भी। गढ़े में पानी भी एकदम सूख गया।
39 यह देखकर इसराईली औंधे मुँह गिरकर पुकारने लगे, “रब ही ख़ुदा है! रब ही ख़ुदा है!” 40 फिर इलियास ने उन्हें हुक्म दिया, “बाल के नबियों को पकड़ लें। एक भी बचने न पाए!” लोगों ने उन्हें पकड़ लिया तो इलियास उन्हें नीचे वादीए-क़ैसोन में ले गया और वहाँ सबको मौत के घाट उतार दिया।