4 पूरी जमात मुत्तफ़िक़ हुई, क्योंकि यह मनसूबा सबको दुरुस्त लगा। 5 चुनाँचे दाऊद ने पूरे इसराईल को जुनूब में मिसर के सैहूर से लेकर शिमाल में लबो-हमात तक बुलाया ताकि सब मिलकर अल्लाह के अहद का संदूक़ क़िरियत-यारीम से यरूशलम ले जाएँ। 6 फिर वह उनके साथ यहूदाह के बाला यानी क़िरियत-यारीम गया ताकि रब ख़ुदा का संदूक़ उठाकर यरूशलम ले जाएँ, वही संदूक़ जिस पर रब के नाम का ठप्पा लगा है और जहाँ वह संदूक़ के ऊपर करूबी फ़रिश्तों के दरमियान तख़्तनशीन है। 7 क़िरियत-यारीम पहुँचकर लोगों ने अल्लाह के संदूक़ को अबीनदाब के घर से निकालकर एक नई बैलगाड़ी पर रख दिया, और उज़्ज़ा और अख़ियो उसे यरूशलम की तरफ़ ले जाने लगे। 8 दाऊद और तमाम इसराईली गाड़ी के पीछे चल पड़े। सब अल्लाह के हुज़ूर पूरे ज़ोर से ख़ुशी मनाने लगे। जूनीपर की लकड़ी के मुख़्तलिफ़ साज़ भी बजाए जा रहे थे। फ़िज़ा सितारों, सरोदों, दफ़ों, झाँझों और तुरमों की आवाज़ों से गूँज उठी।
9 वह गंदुम गाहने की एक जगह पर पहुँच गए जिसके मालिक का नाम कैदून था। वहाँ बैल अचानक बेकाबू हो गए। उज़्ज़ा ने जल्दी से अहद का संदूक़ पकड़ लिया ताकि वह गिर न जाए। 10 उसी लमहे रब का ग़ज़ब उस पर नाज़िल हुआ, क्योंकि उसने अहद के संदूक़ को छूने की जुर्रत की थी। वहीं अल्लाह के हुज़ूर उज़्ज़ा गिरकर हलाक हुआ। 11 दाऊद को बड़ा रंज हुआ कि रब का ग़ज़ब उज़्ज़ा पर यों टूट पड़ा है। उस वक़्त से उस जगह का नाम परज़-उज़्ज़ा यानी ‘उज़्ज़ा पर टूट पड़ना’ है।
12 उस दिन दाऊद को अल्लाह से ख़ौफ़ आया। उसने सोचा, “मैं किस तरह अल्लाह का संदूक़ अपने पास पहुँचा सकूँगा?” 13 चुनाँचे उसने फ़ैसला किया कि हम अहद का संदूक़ यरूशलम नहीं ले जाएंगे बल्कि उसे ओबेद-अदोम जाती के घर में महफ़ूज़ रखेंगे। 14 वहाँ वह तीन माह तक पड़ा रहा। इन तीन महीनों के दौरान रब ने ओबेद-अदोम के घराने और उस की पूरी मिलकियत को बरकत दी।
<- 1 तवारीख़ 121 तवारीख़ 14 ->