गज़लुल गज़लियात मुसन्निफ़ की पहचान ग़ज़लुल गज़लियात का जो मज़्मून है वह इस किताब की पहली आयत से लिया गया है जो यह बयान करता है कि यह ग़ज़ल कहां से लाया गया है। 1:1 गज़लूल गज़लियात जो सुलेमान की तरफ़ से है। किताब का मज़्मून आखि़र — ए — कार सुलेमान के नाम से लिया गया क्योंकि उसके नाम का ज़िक्र पूरी किताब में किया गया है (1:5; 3:7, 9, 11; 8:11-12)। लिखे जाने की तारीख़ और जगह इस किताब की तस्नीफ़ की तारीख़ तक़रीबन 971 - 965 क़ब्ल मसीह के बीच है। इस किताब को सुलेमान ने इस्राईल का बादशाह बतौर उसकी हकूमत के दौरान लिखी, उलमा‘ जो उस के मुसन्निफ़ होने से राज़ी हैं उन का मानना है कि यह ग़ज़ल उस के दौर — ए — हुकूमत के आग़ाज़ में लिखे गये न सिर्फ़ उस के जवानी के गज़लों के सबब नहीं बल्कि इस लिए भी कि मुसन्निफ़ ने अपने मुल्क के शुमाल और जुनूब के इलाक़ों का भी अपने गज़लों में ज़िक्र किया है साथ में लेबनान और मिस्त्र का भी। क़बूल कुनिन्दा पाने वाले शादी शुदः जोड़े और मुजरिद मर्द, बिनबियाही औरत जो शादी का तसव्वुर कर रहे होते हैं। असल मक़सूद ग़ज़्लुल ग़ज़लियात एक ग़नाई गज़ल है जो मुहब्बत की नेकी के ता‘रीफ़ के पुल बांधता है और यह साफ़ तौर से शादी को पेश करती है जिस तरह ख़ुदा ने मख़्सूस किया है। एक शादी शुदा मर्द और औरत को शादी की हालत में एक साथ रहने की ज़रूरत है और एक दूसरे से रूहानी तौर से, जज़बाती तौर से और जिसमानी तौर से मुहब्बत करने की ज़रूरत है। मौज़’अ मुहब्बत और शादी। बैरूनी ख़ाका 1. दुल्हन सुलेमान की बाबत सोचती है। — 1:1-3:5 2. मंगनी के लिए दुल्हन की क़ुबूलियत और शादी का इन्तज़ार — 3:6-5:1 3. दुल्हन दुल्हे के छूट जाने का ख़्वाब देखती है — 5:2-6:3 4. दुल्हन और दुलहा एक दूसरे की तारीफ़ करते हैं। — 6:4-8:14
1 सुलेमान की ग़ज़ल — उल — ग़ज़लात।
2 वह अपने मुँह के लबों से मुझे चूमे, क्यूँकि तेरा इश्क़ मय से बेहतर है। 3 तेरे 'इत्र की खु़श्बू ख़ुशगवार है तेरा नाम 'इत्र रेख़्ता है; इसीलिए कुँवारियाँ तुझ पर आशिक़ हैं। 4 मुझे खींच ले, हम तेरे पीछे दौड़ेंगी। बादशाह मुझे अपने महल में ले आया। हम तुझ में शादमान और मसरूर होंगी, हम तेरे 'इश्क़ का बयान मय से ज़्यादा करेंगी। वह सच्चे दिल से तुझ पर 'आशिक़ हैं। 5 ऐ येरूशलेम की बेटियो, मैं सियाहफ़ाम लेकिन खू़बसूरत हूँ क़ीदार के खे़मों और सुलेमान के पर्दों की तरह। 6 मुझे मत देखो कि मैं सियाहफ़ाम हूँ, क्यूँकि मैं धूप की जली हूँ। मेरी माँ के बेटे मुझ से नाख़ुश थे, उन्होंने मुझ से खजूर के बाग़ों की निगाहबानी कराई; लेकिन मैंने अपने खजूर के बाग़ की निगहबानी नहीं की 7 ऐ मेरी जान के प्यारे! मुझे बता, तू अपने ग़ल्ले को कहाँ चराता है, और दोपहर के वक़्त कहाँ बिठाता है? क्यूँकि मैं तेरे दोस्तों के ग़ल्लों के पास क्यूँ मारी — मारी फिरूँ? 8 ऐ 'औरतों में सब से ख़ूबसूरत, अगर तू नहीं जानती तो ग़ल्ले के नक़्श — ए — क़दम पर चली जा, और अपने बुज़ग़ालों को चरवाहों के खे़मों के पास पास चरा। 9 ऐ मेरी प्यारी, मैंने तुझे फ़िर'औन के रथ की घोड़ियों में से एक के साथ मिसाल दी है। 10 तेरे गाल लगातार जु़ल्फ़ों में खु़शनुमाँ हैं, और तेरी गर्दन मोतियों के हारों में। 11 हम तेरे लिए सोने के तौक़ बनाएँगे, और उनमें चाँदी के फूल जड़ेंगे। 12 जब तक बादशाह तनावुल फ़रमाता रहा, मेरे सुम्बुल की महक उड़ती रही। 13 मेरा महबूब मेरे लिए दस्ता — ए — मुर है, जो रात भर मेरी सीने के बीच पड़ा रहता है। 14 मेरा महबूब मेरे लिए ऐनजदी के अंगूरिस्तान से मेहन्दी के फूलों का गुच्छा है। 15 देख, तू खू़बसूरत है ऐ मेरी प्यारी, देख तू ख़ूबसूरत है। तेरी आँखें दो कबूतर हैं। 16 देख, तू ही खू़बसूरत है ऐ मेरे महबूब, बल्कि दिल पसन्द है; हमारा पलंग भी सब्ज़ है।
1 सुलेमान की ग़ज़ल — उल — ग़ज़लात।