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1 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी नजात देने वाले ख़ुदा,
मैंने रात दिन तेरे सामने फ़रियाद की है।
2 मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचे,
मेरी फ़रियाद पर कान लगा!
3 क्यूँकि मेरा दिल दुखों से भरा है,
और मेरी जान पाताल के नज़दीक पहुँच गई है।
4 मैं क़ब्र में उतरने वालों के साथ गिना जाता हूँ।
मैं उस शख़्स की तरह हूँ, जो बिल्कुल बेकस हो।
5 जैसे मक़्तूलो की तरह जो क़ब्र में पड़े हैं,
मुर्दों के बीच डाल दिया गया हूँ,
जिनको तू फिर कभी याद नहीं करता
और वह तेरे हाथ से काट डाले गए।
6 तूने मुझे गहराओ में, अँधेरी जगह में,
पाताल की तह में रख्खा है।
7 मुझ पर तेरा क़हर भारी है,
तूने अपनी सब मौजों से मुझे दुख दिया है। सिलाह
8 तूने मेरे जान पहचानों को मुझ से दूर कर दिया;
तूने मुझे उनके नज़दीक घिनौना बना दिया।
मैं बन्द हूँ और निकल नहीं सकता।
9 मेरी आँख दुख से धुंधला चली।
ऐ ख़ुदावन्द, मैंने हर रोज़ तुझ से दुआ की है;
मैंने अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाए हैं।
10 क्या तू मुर्दों को 'अजायब दिखाएगा?
क्या वह जो मर गए हैं उठ कर तेरी ता'रीफ़ करेंगे? सिलाह
11 क्या तेरी शफ़क़त का ज़िक्र क़ब्र में होगा,
या तेरी वफ़ादारी का जहन्नुम में?
12 क्या तेरे 'अजायब को अंधेरे में पहचानेंगे,
और तेरी सदाक़त को फ़रामोशी की सरज़मीन में?
13 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तो तेरी दुहाई दी है;
और सुबह को मेरी दुआ तेरे सामने पहुँचेगी।
14 ऐ ख़ुदावन्द, तू क्यूँ। मेरी जान को छोड़ देता है?
तू अपना चेहरा मुझ से क्यूँ छिपाता है?
15 मैं लड़कपन ही से मुसीबतज़दा
और मौत के क़रीब हूँ मैं तेरे डर के मारे बद हवास हो गया।
16 तेरा क़हर — ए — शदीद मुझ पर आ पड़ा:
तेरी दहशत ने मेरा काम तमाम कर दिया।
17 उसने दिनभर सैलाब की तरह मेरा घेराव किया;
उसने मुझे बिल्कुल घेर लिया।
18 तूने दोस्त व अहबाब को मुझ से दूर किया