7
1 ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, मेरा भरोसा तुझ पर है;
सब पीछा करने वालों से मुझे बचा और छुड़ा,
2 ऐसा न हो कि वह शेर — ए — बबर की तरह मेरी जान को फाड़े;
वह उसे टुकड़े टुकड़े कर दे और कोई छुड़ाने वाला न हो।
3 ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा,
अगर मैंने यह किया हो, अगर मेरे हाथों से बुराई हुई हो;
4 अगर मैंने अपने मेल रखने वाले से भलाई के बदले बुराई की हो,
बल्कि मैंने तो उसे जो नाहक़ मेरा मुखालिफ़ था, बचाया है;
5 तो दुश्मन मेरी जान का पीछा करके उसे आ पकड़े,
बल्कि वह मेरी ज़िन्दगी को बर्बाद करके मिट्टी में,
और मेरी 'इज़्ज़त को ख़ाक में मिला दे। सिलाह
6 ऐ ख़ुदावन्द, अपने क़हर में उठ;
मेरे मुख़ालिफ़ों के ग़ज़ब के मुक़ाबिले में तू खड़ा हो जा;
और मेरे लिए जाग! तूने इन्साफ़ का हुक्म तो दे दिया है।
7 तेरे चारों तरफ़ क़ौमों का इजितमा'अ हो;
और तू उनके ऊपर 'आलम — ए — बाला को लौट जा
8 ख़ुदावन्द, क़ौमों का इन्साफ़ करता है;
ऐ ख़ुदावन्द, उस सदाक़त — ओ — रास्ती के मुताबिक़ जो मुझ में है मेरी'अदालत कर।
9 काश कि शरीरों की बदी का ख़ात्मा हो जाए,
लेकिन सादिक़ को तू क़याम बख़्श;
क्यूँकि ख़ुदा — ए — सादिक़ दिलों और गुर्दों को जाँचता है।
10 मेरी ढाल ख़ुदा के हाथ में है,
जो रास्त दिलों को बचाता है।
11 ख़ुदा सादिक़ मुन्सिफ़ है,
बल्कि ऐसा ख़ुदा जो हर रोज़ क़हर करता है।
12 अगर आदमी बाज़ न आए तो वहअपनी तलवार तेज़ करेगा;
उसने अपनी कमान पर चिल्ला चढ़ाकर उसे तैयार कर लिया है।
13 उसने उसके लिए मौत के हथियार भी तैयार किए हैं;
वह अपने तीरों को आतिशी बनाता है।
14 देखो, उसे बुराई की पैदाइश का दर्द लगा है!
बल्कि वह शरारत से फलदार हुआ और उससे झूट पैदा हुआ।
15 उसने गढ़ा खोद कर उसे गहरा किया,
और उस ख़न्दक में जो उसने बनाई थी ख़ुद गिरा।
16 उसकी शरारत उल्टी उसी के सिर पर आएगी;
उसका ज़ुल्म उसी की खोपड़ी पर नाज़िल होगा।
17 ख़ुदावन्द की सदाक़त के मुताबिक़ मैं उसका शुक्र करूँगा,