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65
1 ऐ ख़ुदा, सिय्यून में ता'रीफ़ तेरी मुन्तज़िर है;
और तेरे लिए मिन्नत पूरी की जाएगी।
2 ऐ दुआ के सुनने वाले!
सब बशर तेरे पास आएँगे।
3 बद आ'माल मुझ पर ग़ालिब आ जाते हैं;
लेकिन हमारी ख़ताओं का कफ़्फ़ारा तू ही देगा।
4 मुबारक है वह आदमी जिसे तू बरगुज़ीदा करता और अपने पास आने देता है,
ताकि वह तेरी बारगाहों में रहे।
हम तेरे घर की खू़बी से, या'नी तेरी पाक हैकल से आसूदा होंगे।
5 ऐ हमारे नजात देने वाले ख़ुदा!
तू जो ज़मीन के सब किनारों का और समन्दर पर दूर दूर रहने वालों का तकिया है;
ख़ौफ़नाक बातों के ज़रिए' से तू हमें सदाक़त से जवाब देगा।
6 तू कु़दरत से कमरबस्ता होकर,
अपनी ताक़त से पहाड़ों को मज़बूती बख़्शता है।
7 तू समन्दर के और उसकी मौजों के शोर को,
और उम्मतों के हँगामे को ख़त्म कर देता है।
8 ज़मीन की इन्तिहा के रहने वाले, तेरे मु'मुअजिज़ों से डरते हैं;
तू मतला' — ए — सुबह को और शाम को ख़ुशी बख़्शता है।
9 तू ज़मीन पर तवज्जुह करके उसे सेराब करता है,
तू उसे खू़ब मालामाल कर देता है;
ख़ुदा का दरिया पानी से भरा है;
जब तू ज़मीन को यूँ तैयार कर लेता है तो उनके लिए अनाज मुहय्या करता है।
10 उसकी रेघारियों को खू़ब सेराब उसकी मेण्डों को बिठा देता उसे बारिश से नर्म करता है,
उसकी पैदावार में बरकत देता
11 तू साल को अपने लुत्फ़ का ताज पहनाता है;
और तेरी राहों से रौग़न टपकता है।
12 वह बियाबान की चरागाहों पर टपकता है,
और पहाड़ियाँ ख़ुशी से कमरबस्ता हैं।
13 चरागाहों में झुंड के झुंड फैले हुए हैं,
वादियाँ अनाज से ढकी हुई हैं,
वह ख़ुशी के मारे ललकारती और गाती हैं।

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