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1 ऐ ख़ुदा, मेरा इन्साफ़ कर
और बेदीन क़ौम के मुक़ाबले में मेरी वकालत कर,
और दग़ाबाज़ और बेइन्साफ़ आदमी से मुझे छुड़ा।
2 क्यूँकि तू ही मेरी ताक़त का ख़ुदा है,
तूने क्यूँ मुझे छोड़ दिया?
मैं दुश्मन के ज़ुल्म की वजह से क्यूँ मातम करता फिरता हूँ?
3 अपने नूर, अपनी सच्चाई को भेज,
वही मेरी रहबरी करें,
वही मुझ को तेरे पाक पहाड़ और तेरे घर तक पहुँचाए।
4 तब मैं ख़ुदा के मज़बह के पास जाऊँगा,
ख़ुदा के सामने जो मेरी कमाल ख़ुशी है;
ऐ ख़ुदा! मेरे ख़ुदा! मैं सितार बजा कर तेरी सिताइश करूँगा।
5 ऐ मेरी जान! तू क्यूँ गिरी जाती है?
तू अन्दर ही अन्दर क्यूँ बेचैन है?
ख़ुदा से उम्मीद रख, क्यूँकि वह मेरे चेहरे की रौनक़ और मेरा ख़ुदा है;