Link to home pageLanguagesLink to all Bible versions on this site
27
1 ख़ुदावन्द मेरी रोशनी और मेरी नजात मुझे किसकी दहशत?
ख़ुदावन्द मेरी ज़िन्दगी की ताक़त है, मुझे किसका डर?
2 जब शरीर या'नी मेरे मुख़ालिफ़ और मेरे दुश्मन,
मेरा गोश्त खाने को मुझ पर चढ़ आए तो वह ठोकर खाकर गिर पड़े।
3 चाहे मेरे ख़िलाफ़ लश्कर ख़ेमाज़न हो,
मेरा दिल नहीं डरेगा।
चाहे मेरे मुक़ाबले में जंग खड़ी हो, तोभी मैं मुतम'इन रहूँगा।
4 मैंने ख़ुदावन्द से एक दरख़्वास्त की है,
मैं इसी का तालिब रहूँगा;
कि मैं उम्र भर ख़ुदावन्द के घर में रहूँ,
ताकि ख़ुदावन्द के जमाल को देखूँ
और उसकी हैकल में इस्तिफ़्सार किया करूँ।
5 क्यूँकि मुसीबत के दिन वह मुझे अपने शामियाने में पोशीदा रख्खेगा;
वह मुझे अपने ख़ेमे के पर्दे में छिपा लेगा,
वह मुझे चट्टान पर चढ़ा देगा
6 अब मैं अपने चारों तरफ़ के दुश्मनों पर सरफराज़ किया जाऊँगा;
मैं उसके ख़ेमे में ख़ुशी की क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा;
मैं गाऊँगा, मैं ख़ुदावन्द की मदहसराई करूँगा।
7 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी आवाज़ सुन! मैं पुकारता हूँ।
मुझ पर रहम कर और मुझे जवाब दे।
8 जब तूने फ़रमाया, कि मेरे दीदार के तालिब हो;
तो मेरे दिल ने तुझ से कहा,
ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे दीदार का तालिब रहूँगा।
9 मुझ से चेहरा न छिपा।
अपने बन्दे को क़हर से न निकाल।
तू मेरा मददगार रहा है;
न मुझे तर्क कर, न मुझे छोड़, ऐ मेरे नजात देने वाले ख़ुदा!।
10 जब मेरा बाप और मेरी माँ मुझे छोड़ दें,
तो ख़ुदावन्द मुझे संभाल लेगा।
11 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपनी राह बता,
और मेरे दुश्मनों की वजह से मुझे हमवार रास्ते पर चला।
12 मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों की मर्ज़ी पर न छोड़,
क्यूँकि झूटे गवाह और बेरहमी से पुंकारने वाले मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं।
13 अगर मुझे यक़ीन न होता कि ज़िन्दों की
ज़मीन में ख़ुदावन्द के एहसान को देखूँगा,
तो मुझे ग़श आ जाता।
14 ख़ुदावन्द की उम्मीद रख;
मज़बूत हो और तेरा दिल क़वी हो;
हाँ, ख़ुदावन्द ही की उम्मीद रख।

<- ज़बूर 26ज़बूर 28 ->