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1 मैं अपनी ही आवाज़ बुलंद करके ख़ुदावन्द से फ़रियाद करता हूँ
मै अपनी ही आवाज़ से ख़ुदावन्द से मिन्नत करता हूँ।
2 मैं उसके सामने फ़रियाद करता हूँ,
मैं अपना दुख उसके सामने बयान करता हूँ।
3 जब मुझ में मेरी जान निढाल थी,
तू मेरी राह से वाक़िफ़ था!
जिस राह पर मैं चलता हूँ उसमे उन्होंने मेरे लिए फंदा लगाया है।
4 दहनी तरफ़ निगाह कर और देख,
मुझे कोई नहीं पहचानता। मेरे लिए कहीं पनाह न रही,
किसी को मेरी जान की फ़िक्र नहीं।
5 ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तुझ से फ़रियाद की;
मैंने कहा, तू मेरी पनाह है,
और ज़िन्दों की ज़मीन में मेरा बख़रा।
6 मेरी फ़रियाद पर तवज्जुह कर,
क्यूँकि मैं बहुत पस्त हो गया हूँ!
मेरे सताने वालों से मुझे रिहाई बख़्श,
क्यूँकि वह मुझ से ताक़तवर हैं।
7 मेरी जान को कै़द से निकाल,
ताकि तेरे नाम का शुक्र करूँ सादिक़ मेरे गिर्द जमा होंगे