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127
1 अगर ख़ुदावन्द ही घर न बनाए,
तो बनाने वालों की मेहनत' बेकार है।
अगर ख़ुदावन्द ही शहर की हिफ़ाज़त न करे,
तो निगहबान का जागना 'बेकार है।
2 तुम्हारे लिए सवेरे उठना और देर में आराम करना,
और मशक़्क़त की रोटी खाना 'बेकार है;
क्यूँकि वह अपने महबूब को तो नींद ही में दे देता है।
3 देखो, औलाद ख़ुदावन्द की तरफ़ से मीरास है,
और पेट का फल उसी की तरफ़ से अज्र है,
4 जवानी के फ़र्ज़न्द ऐसे हैं,
जैसे ज़बरदस्त के हाथ में तीर।
5 ख़ुश नसीब है वह आदमी जिसका तरकश उनसे भरा है।
जब वह अपने दुश्मनों से फाटक पर बातें करेंगे तो शर्मिन्दा न होंगे।

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