Link to home pageLanguagesLink to all Bible versions on this site

मीकाह
मुसन्निफ़ की पहचान
मीकाह की किताब का मुसन्निफ़ मीकाह नबी था (मीकाह 1:1) मीका एक दीहाती नबी था जिसे एक शहरी इलाक़े में भेजा गया कि क़रीबुल वुक़ूअ होने वाले अदालत की बाबत ख़ुदा का पैग़ाम लोगों तक पहुंचाए। यह मुआशिरती और रूहानी बे इंसाफ़ी और बुतपरस्ती के नतीजे की बिना पर था। दूर तक फैले हुए मुल्क के ज़िराअती इलाक़े में रहने वाला मीका बाहर सरकारी मर्कज़ में रहने लगा था, उसके अपने क़ौम में उसका रूत्बा था, मुआशिरे के नीचे के तबक़े के लोगों के लिए उसका मज़्बूत सरोकार था, जिन में अपाहज, ज़ात से ख़ारिज किए हुए लोगों और मुसीबत में पड़े हुए लोग शामिल थे। (4:6) मीकाह की किताब येसू मसीह की पैदाइश की बाबत पुराने अदह नामे की एक बहुत ही अहम नबुव्वत पेश करती है। जो ख़ासकर 700 साल पहले उसके पैदा हाने की जगह बेतेलहम से और उसकी अबदी फितरत से ता‘ल्लुक रखती है (मीकाह 5:2)।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस के तस्नीफ़ की तारीख तक़रीबन 730 - 650 कब्ल मसीह के बीच है।
इस्राईल के शुमाली सलतनत के ज़वाल से पहले शायद मीकाह नबी के पैग़ामात के कलाम आने शुरू हुए। मीकाह की किताब के दूसरे हिस्से बाबुल की जिलवत्नी के दौरान लिखे गए फिर बाद में कुछ जिलावतन जो घर वापस आये थे।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
मीकाह ने इस्राईल के शुमाली सल्तनत और यहूदाह के जुनूबी सल्तनत के लोगों के लिए लिखा।
असल मक़सूद
मीकाह की किताब दो अहम पेश बीनियों की तरफ़ ग़ौर कराती है: पहला है इस्राईल और यहूदा पर अदालत (1:1-3:12) और दूसरा है एक हज़ार सालों की बादशाही के दौरान ख़ुदा के लोगों की बहाली ख़ुदा अपने लोगों के हक़ में अपनी भलाइयों को याद दिलाता है कि किस तरह उसने उनकी पर्वाह की उस हालत में जब्कि उन्होंने सिर्फ़ अपनी परर्वाह की थी।
मौज़’अ
इलाही अदालत
बैरूनी ख़ाका
1. अदालत के लिए ख़ुदा आ रहा है — 1:1-2:13
2. बर्बादी का पैग़ाम — 3:1-5:15
3. सज़ा का हुक्म सुनाने का पैग़ाम — 6:1-7:10
4. मज़्मून का आख़री हिस्सा — 7:11-20

1 सामरिया और येरूशलेम के बारे में ख़ुदावन्द का कलाम जो शाहान — ए — यहूदाह यूताम, आख़ज़ — ओ — हिज़क़ियाह के दिनों में मीकाह मोरशती पर ख्व़ाब में नाज़िल हुआ।

सामरिया और यरुशलेम पर दुख मनाना
2 ऐ सब लोगों, सुनो! ऐ ज़मीन और उसकी मा'मूरी कान लगाओ! हाँ ख़ुदावन्द अपने मुक़द्दस घर से तुम पर गवाही दे। 3 क्यूँकि देख, ख़ुदावन्द अपने घर से बाहर आता है, और नाज़िल होकर ज़मीन के ऊँचे मक़ामों को पायमाल करेगा। 4 और पहाड़ उनके नीचे पिघल जाएँगे, और वादियाँ फट जाएँगी, जैसे मोम आग से पिघल जाता और पानी कराड़े पर से बह जाता है। 5 ये सब या'क़ूब की ख़ता और इस्राईल के घराने के गुनाह का नतीजा है। या'क़ूब की ख़ता क्या है? क्या सामरिया नहीं? और यहूदाह के ऊँचे मक़ाम क्या हैं? क्या येरूशलेम नहीं? 6 इसलिए मैं सामरिया को खेत के तूदे की तरह, और ताकिस्तान लगाने की जगह की तरह बनाऊँगा, और मैं उसके पत्थरों को वादी में ढलकाऊँगा और उसकी बुनियाद उखाड़ दूँगा। 7 और उसकी सब खोदी हुई मूरतें चूर — चूर की जाएँगी, और जो कुछ उसने मज़दूरी में पाया आग से जलाया जाएगा; और मैं उसके सब बुतों को तोड़ डालूँगा क्यूँकि उसने ये सब कुछ कस्बी की मज़दूरी से पैदा किया है; और वह फिर कस्बी की मज़दूरी हो जाएगा। 8 इसलिए मैं मातम — ओ — नौहा करूँगा; मैं नंगा और बरहना होकर फिरूँगा; मैं गीदड़ों की तरह चिल्लाऊँगा और शुतरमुर्ग़ों की तरह ग़म करूँगा। 9 क्यूँकि उसका ज़ख़्म लाइलाज़ है, वह यहूदाह तक भी आया; वह मेरे लोगों के फाटक तक बल्कि येरूशलेम तक पहुँचा। 10 जात में उसकी ख़बर न दो, और हरगिज़ नौहा न करो; बैत 'अफ़रा में ख़ाक पर लोटो। 11 ऐ सफ़ीर की रहने वाली, तू बरहना — ओ — रुस्वा होकर चली जा; ज़ानान की रहने वाली निकल नहीं सकती। बैतएज़ल के मातम के ज़रिए' उसकी पनाहगाह तुम से ले ली जाएगी। 12 मारोत की रहने वाली भलाई के इन्तिज़ार में तड़पती है, क्यूँकि ख़ुदावन्द की तरफ़ से बला नाज़िल हुई, जो येरूशलेम के फाटक तक पहुँची। 13 ऐ लकीस की रहने वाली बादपा घोड़ों को रथ में जोत; तू बिन्त — ए — सिय्यून के गुनाह का आग़ाज़ हुई क्यूँकि इस्राईल की ख़ताएँ भी तुझ में पाई गईं। 14 इसलिए तू मोरसत जात को तलाक़ देगी; अकज़ीब के घराने इस्राईल के बादशाहों से दग़ाबाज़ी करेंगे। 15 ऐ मरेसा की रहने वाली, तुझ पर क़ब्ज़ा करने वाले को तेरे पास लाऊँगा; इस्राईल की शौकत 'अदूल्लाम में आएगी। 16 अपने प्यारे बच्चों के लिए सिर मुंडाकर चंदली हो जा; गिद्ध की तरह अपने चंदलेपन को ज़्यादा कर क्यूँकि वह तेरे पास से ग़ुलाम होकर चले गए।

मीकाह 2 ->