Link to home pageLanguagesLink to all Bible versions on this site
3
अय्यूब का पहला बयान
1 इसके बाद अय्यूब ने अपना मुँह खोल कर अपने पैदाइश के दिन पर ला'नत की।
2 और अय्यूब कहने लगा:
3 “मिट जाए वह दिन जिसमें मैं पैदा हुआ,
और वह रात भी जिसमें कहा गया, 'कि देखो, बेटा हुआ।”
4 वह दिन अँधेरा हो जाए।
ख़ुदा ऊपर से उसका लिहाज़ न करे,
और न उस पर रोशनी पड़े।
5 अँधेरा और मौत का साया उस पर क़ाबिज़ हो।
बदली उस पर छाई रहे
और दिन को तारीक कर देनेवाली चीज़ें उसे दहशत ज़दा करें।
6 गहरी तारीकी उस रात को दबोच ले।
वह साल के दिनों के बीच ख़ुशी न करने पाए,
और न महीनों की ता'दाद में आए।
7 वह रात बाँझ हो जाए;
उसमें ख़ुशी की कोई आवाज़ न आए।
8 दिन पर ला'नत करने वाले उस पर ला'नत करें
और वह भी जो अज़दह “को छेड़ने को तैयार हैं।
9 उसकी शाम के तारे तारीक हो जाएँ,
वह रोशनी की राह देखे, जबकि वह है नहीं,
और न वह सुबह की पलकों को देखे।
10 क्यूँकि उसने मेरी माँ के रहम के दरवाज़ों को बंद न किया
और दुख को मेरी आँखों से छिपा न रख्खा।
11 मैं रहम ही में क्यूँ न मर गया?
मैंने पेट से निकलते ही जान क्यूँ न दे दी?
12 मुझे क़ुबूल करने को घुटने क्यूँ थे,
और छातियाँ कि मैं उनसे पियूँ?
13 नहीं तो इस वक़्त मैं पड़ा होता, और बेख़बर रहता,
मैं सो जाता। तब मुझे आराम मिलता।
14 ज़मीन के बादशाहों और सलाहकारों के साथ,
जिन्होंने अपने लिए मक़बरे बनाए।

15 या उन शाहज़ादों के साथ होता, जिनके पास सोना था।

जिन्होंने अपने घर चाँदी से भर लिए थे;
16 या पोशीदा गिरते हमल की तरह,
मैं वजूद में न आता या उन बच्चों की तरह जिन्होंने रोशनी ही न देखी।
17 वहाँ शरीर फ़साद से बाज़ आते हैं,
और थके मांदे राहत पाते हैं।
18 वहाँ क़ैदी मिलकर आराम करते हैं,
और दरोग़ा की आवाज़ सुनने में नहीं आती।
19 छोटे और बड़े दोनों वहीं हैं,
और नौकर अपने मालिक से आज़ाद है।”
20 “दुखियारे को रोशनी,
और तल्ख़जान को ज़िन्दगी क्यूँ मिलती है?
21 जो मौत की राह देखते हैं लेकिन वह आती नहीं,
और छिपे ख़ज़ाने से ज़्यादा उसकी तलाश करते हैं।
22 जो निहायत शादमान और ख़ुश होते हैं, जब क़ब्र को पा लेते हैं।
23 ऐसे आदमी को रोशनी क्यूँ मिलती है,
जिसकी राह छिपी है,
और जिसे ख़ुदा ने हर तरफ़ से बंद कर दिया है?
24 क्यूँकि मेरे खाने की जगह मेरी आहें हैं,
और मेरा कराहना पानी की तरह जारी है।
25 क्यूँकि जिस बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आती है,
और जिस बात का मुझे ख़ौफ़ होता है, वही मुझ पर गुज़रती है।
26 क्यूँकि मुझे न चैन है, न आराम है, न मुझे कल पड़ती है;
बल्कि मुसीबत ही आती है।”

<- अय्यूब 2अय्यूब 4 ->