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21
अय्यूब का सातवां बयान: ज़ूफर को जवाब
1 तब अय्यूब ने जवाब दिया,
2 ग़ौर से मेरी बात सुनो,
और यही तुम्हारा तसल्ली देना हो।
3 मुझे इजाज़त दो तो मैं भी कुछ कहूँगा,
और जब मैं कह चुकूँ तो ठठ्ठा मारलेना।
4 लेकिन मैं, क्या मेरी फ़रियाद इंसान से है?
फिर मैं बेसब्री क्यूँ न करूँ?
5 मुझ पर ग़ौर करो और मुत'अजीब हो,
और अपना हाथ अपने मुँह पर रखो।
6 जब मैं याद करता हूँ तो घबरा जाता हूँ,
और मेरा जिस्म थर्रा उठता है।
7 शरीर क्यूँ जीते रहते, उम्र रसीदा होते,
बल्कि कु़व्वत में ज़बरदस्त होते हैं?
8 उनकी औलाद उनके साथ उनके देखते देखते,
और उनकी नसल उनकी आँखों के सामने क़ाईम हो जाती है।
9 उनके घर डर से महफ़ूज़ हैं,
और ख़ुदा की छड़ी उन पर नहीं है।
10 उनका साँड बरदार कर देता है और चूकता नहीं,
उनकी गाय ब्याती है और अपना बच्चा नहीं गिराती।
11 वह अपने छोटे छोटे बच्चों को रेवड़ की तरह बाहर भेजते हैं,
और उनकी औलाद नाचती है।
12 वह ख़जरी और सितार के ताल पर गाते,
और बाँसली की आवाज़ से ख़ुश होते हैं।
13 वह ख़ुशहाली में अपने दिन काटते,
और दम के दम में पाताल में उतर जाते हैं।
14 हालाँकि उन्होंने ख़ुदा से कहा था, कि 'हमारे पास से चला जा;
क्यूँकि हम तेरी राहों के 'इल्म के ख़्वाहिशमन्द नहीं।
15 क़ादिर — ए — मुतलक़ है क्या कि हम उसकी इबादत करें?
और अगर हम उससे दुआ करें तो हमें क्या फ़ायदा होगा?
16 देखो, उनकी इक़बालमन्दी उनके हाथ में नहीं है।
शरीरों की मशवरत मुझ से दूर है।
17 कितनी बार शरीरों का चराग़ बुझ जाता है?
और उनकी आफ़त उन पर आ पड़ती है?
और ख़ुदा अपने ग़ज़ब में उन्हें ग़म पर ग़म देता है?
18 और वह ऐसे हैं जैसे हवा के आगे डंठल,
और जैसे भूसा जिसे आँधी उड़ा ले जाती है?
19 'ख़ुदा उसका गुनाह उसके बच्चों के लिए रख छोड़ता है,
वह उसका बदला उसी को दे ताकि वह जान ले।
20 उसकी हलाकत को उसी की आँखें देखें,
और वह क़ादिर — ए — मुतलक के ग़ज़ब में से पिए।
21 क्यूँकि अपने बाद उसको अपने घराने से क्या ख़ुशी है,
जब उसके महीनों का सिलसिला ही काट डाला गया?
22 क्या कोई ख़ुदा को 'इल्म सिखाएगा?
जिस हाल की वह सरफ़राज़ों की 'अदालत करता है।
23 कोई तो अपनी पूरी ताक़त में,
चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है।
24 उसकी दोहिनियाँ दूध से भरी हैं,
और उसकी हड्डियों का गूदा तर है;
25 और कोई अपने जी में कुढ़ कुढ़ कर मरता है,
और कभी सुख नहीं पाता।
26 वह दोनों मिट्टी में यकसाँ पड़ जाते हैं,
और कीड़े उन्हें ढाँक लेते हैं।
27 देखो, मैं तुम्हारे ख़यालों को जानता हूँ,
और उन मंसूबों को भी जो तुम बे इन्साफ़ी से मेरे ख़िलाफ़ बाँधते हो।
28 क्यूँकि तुम कहते हो, 'अमीर का घर कहाँ रहा?
और वह ख़ेमा कहाँ है जिसमें शरीर बसते थे?
29 क्या तुम ने रास्ता चलने वालों से कभी नहीं पूछा?
और उनके निशान — आत नहीं पहचानते
30 कि शरीर आफ़त के दिन के लिए रख्खा जाता है,
और ग़ज़ब के दिन तक पहुँचाया जाता है?
31 कौन उसकी राह को उसके मुँह पर बयान करेगा?
और उसके किए का बदला कौन उसे देगा?
32 तोभी वह क़ब्र में पहुँचाया जाएगा,
और उसकी क़ब्र पर पहरा दिया जाएगा।
33 वादी के ढेले उसे पसंद हैं;
और सब लोग उसके पीछे चले जाएँगे,
जैसे उससे पहले बेशुमार लोग गए।
34 इसलिए तुम क्यूँ मुझे झूठी तसल्ली देते हो,
जिस हाल कि तुम्हारी बातों में झूँठ ही झूँठ है।

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