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गलातियों के नाम पौलुस रसूल का ख़त
मुसन्निफ़ की पहचान
1 पौलूस रसूल इस ख़त का मुसन्निफ़ है, यह इब्तिदाई कलीसिया की एक ज़बान रखने वाली कलीसिया थी। पौलूस ने जुनूबी गलतिया की कलीसिया को तब लिखा जब उन्होंने उस के पहले मिश्नरी सफ़र में जो एशिया माइनर की तरफ़ तै की थी उस का साथ दिया था। गलतिया, रोम या कुरिन्थ की तरह एक शहर नहीं था बल्कि एक रोमी रियासत था जिस के कई एक शहर थे और कसीर ता‘दाद में कलीसियाएं थीं। गलतिया के लोग जिन्हें पौलूस ने ख़त लिखे थे वह पौलूस ही के ज़रिए मसीह में आये थे।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
तक़रीबन इस को 48 ईस्वी के बीच लिखी गई थी।
पौलूस ने ग़ालिबन गलतियों के नाम ख़त को अन्ताकिया से लिखा जबकि यह घरेलू बुनियाद पर था।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
गलतियों के नाम का ख़त गलतिया की कलीसिया के अर्कान को लिखा गया था (गलतियों 1:1-2)।
असल मक़सूद
इस ख़त को लिखने का मक़सूद था, यहूदियत बरतने वालों की झूटी इन्जील को ग़लत ठहराना, एक इन्जील जिसको पढ़ने के बाद यहूदी मसीहियों ने महसूस किया था कि नजात के लिए ख़तना कराना ज़रूरी है। और मक़्सद यह भी था कि गलतियों को उनके नजात की हकीक़त को याद दिलाना था। पौलूस ने अपनी रिसालत के इख़्तियार को क़ायम करने के ज़रिए साफ़ तौर से उन के हर सवाल का जवाब दिया जिस की बदौलत दलील पेश करते हुए उसने इन्जील की मनादी की थी। ईमान के वसीले से सिर्फ़ फ़ज़ल के ज़रिए लोग रास्तबाज़ ठहराए जाते हैं। और यह सिर्फ़ ईमान के ज़रिए ही रूह की आज़ादी में उन्हें नई ज़िन्दगी जीने की ज़रूरत है।
मौज़’अ
मसीह में आज़ादी।
बैरूनी ख़ाका
1. तआरुफ़ — 1:1-10
2. इन्जील की तस्दीक़ व तौसीक़ — 1:11-2:21
3. ईमान के ज़रिए रास्तबाज़ ठहराया जाना — 3:1-4:31
4. ईमान की ज़िन्दगी को अमल में लाना और मसीह में आज़ादी — 5:1-6:18

1
पौलुस का सलाम
1 पौलुस की तरफ़ से जो ना इंसान ों की जानिब से ना इंसान की वजह से, बल्कि ईसा 'मसीह और ख़ुदा बाप की वजह से जिसने उसको मुर्दों में से जिलाया, रसूल है; 2 और सब भाइयों की तरफ़ से जो मेरे साथ हैं, ग़लतिया सूबे की कलीसियाओं को ख़त:

3 ख़ुदा बाप और हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इतमिनान हासिल होता रहे। 4 उसी ने हमारे गुनाहों के लिए अपने आप को दे दिया; ताकि हमारे ख़ुदा और बाप की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ हमें इस मौजूदा ख़राब जहान से ख़लासी बख़्शे। 5 उसकी बड़ाई हमेशा से हमेशा तक होती रहे आमीन।

6 मैं ताअ'ज्जुब करता हूँ कि जिसने तुम्हें मसीह के फ़ज़ल से बुलाया, उससे तुम इस क़दर जल्द फिर कर किसी और तरह की ख़ुशख़बरी की तरफ़ माइल होने लगे, 7 मगर वो दूसरी नहीं; अलबत्ता कुछ ऐसे हैं जो तुम्हें उलझा देते और मसीह की ख़ुशख़बरी को बिगाड़ना चाहते हैं।

8 लेकिन हम या आसमान का कोई फ़रिश्ता भी उस ख़ुशख़बरी के सिवा जो हमने तुम्हें सुनाई, कोई और ख़ुशख़बरी सुनाए तो मला'उन हो। 9 जैसा हम पहले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूँ कि उस ख़ुशख़बरी के सिवा जो तुम ने क़ुबूल की थी, अगर तुम्हें और कोई ख़ुशख़बरी सुनाता है तो मला'उन हो। 10 अब मैं आदमियों को दोस्त बनाता हूँ या ख़ुदा को? क्या आदमियों को ख़ुश करना चाहता हूँ? अगर अब तक आदिमयों को ख़ुश करता रहता, तो मसीह का बन्दा ना होता।

11 ऐ भाइयों! मैं तुम्हें बताए देता हूँ कि जो ख़ुशख़बरी मैं ने सुनाई वो इंसान की नहीं। 12 क्यूँकि वो मुझे इंसान की तरफ़ से नहीं पहूँची, और न मुझे सिखाई गई, बल्कि ख़ुदा' मसीह की तरफ़ से मुझे उसका मुक़ाशिफ़ा हुआ।

13 चुनाँचे यहूदी तरीक़े में जो पहले मेरा चाल — चलन था, तुम सुन चुके हो कि मैं ख़ुदा की कलीसिया को अज़ हद सताता और तबाह करता था। 14 और मैं यहूदी तरीक़े में अपनी क़ौम के अक्सर हम उम्रों से बढ़ता जाता था, और अपने बुज़ुर्गों की रिवायतों में निहायत सरगर्म था।

15 लेकिन जिस ख़ुदा ने मेरी माँ के पेट ही से मख़्सूस कर लिया, और अपने फ़ज़ल से बुला लिया, जब उसकी ये मर्ज़ी हुई 16 कि अपने बेटे को मुझ में ज़ाहिर करे ताकि मैं ग़ैर — क़ौमों में उसकी ख़ुशख़बरी दूँ, तो न मैंने गोश्त और ख़ून से सलाह ली, 17 और न येरूशलेम में उनके पास गया जो मुझ से पहले रसूल थे, बल्कि फ़ौरन अरब मुल्क को चला गया फिर वहाँ से दमिश्क़ शहर को वापस आया

18 फिर तीन बरस के बाद मै कैफ़ा से मुलाक़ात करने को गया और पन्द्रह दिन तक उसके पास रहा। 19 मगर और रसूलों में से ख़ुदावन्द के भाई या'क़ूब के सिवा किसी से न मिला। 20 जो बातें मैं तुम को लिखता हूँ, ख़ुदा को हाज़िर जान कर कहता हूँ कि वो झूठी नहीं। 21 इसके बाद मैं सीरिया और किलकिया के इलाक़ों में आया;

22 और यहूदिया सूबा की कलीसियाएँ, जो मसीह में थीं मुझे सूरत से न जानती थी, 23 मगर ये सुना करती थीं, जो हम को पहले सताता था, वो अब उसी दीन की ख़ुशख़बरी देता है जिसे पहले तबाह करता था। 24 और वो मेरे ज़रिए ख़ुदा की बड़ाई करती थी।

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