5 बड़ो बोल बोलन अऊर परमेश्वर की निन्दा करन लायी ओख एक मुंह दियो गयो, अऊर ओख बयालीस महीना तक काम करन को अधिकार दियो गयो। 6 तब ओन परमेश्वर की निन्दा करनो सुरू कर दियो, ऊ परमेश्वर को नाम अऊर जित ऊ रह्य हय ऊ जागा तथा जो स्वर्ग म रह्य हय, उन्की निन्दा करन लग्यो। 7 ओख यो भी अधिकार दियो गयो कि परमेश्वर को लोगों सी विरोध म लड़े अऊर उन पर जय पाये, अऊर ओख हर एक गोत्र अऊर लोग, भाषा, अऊर राष्ट्र पर अधिकार दियो गयो। 8 जगत कि निर्मिती सी पहिले जिन्को नाम बली करयो गयो मेम्ना को जीवन की किताब म लिख्यो गयो हय, उन्ख छोड़ सब धरती पर रहन वालो लोग ऊ हिंसक पशु की आराधना करेंन।
9 जेको कान हय ऊ सुने। 10 जेक कैद म पड़नो हय, ऊ कैद म पड़ेंन; जो तलवार सी मारेंन, जरूरी हय कि ऊ तलवार सी मारयो जायेंन। येकोलायी परमेश्वर को लोगों न धीरज अऊर विश्वास रखनो जरूरी हय।
11 फिर मय न एक अऊर हिंसक पशु ख जमीन म सी निकलतो हुयो देख्यो, ओको मेम्ना को जसो दोय सींग होतो, अऊर ऊ अजगर को जसो बोलत होतो। 12 ऊ पहिले हिंसक पशु को पूरो अधिकार ओको सामने काम म लावत होतो; अऊर धरती अऊर ओको पर रहन वालो सी ऊ पहिलो पशु की, जेको जीव घातक घाव अच्छो भय गयो होतो, ओकी पूजा पूरो जगत को लोगों सी करावत होतो। 13 दूसरों हिंसक पशु बड़ो-बड़ो चिन्ह दिखावत होतो, यहां तक कि आदमियों को सामने आसमान सी धरती पर आगी बरसाय देत होतो। 14 उन चिन्हों को वजह, जिन्ख ऊ हिंसक पशु को सामने दिखावन को अधिकार ओख दियो गयो होतो, ऊ धरती को रहन वालो ख भरमावत होतो अऊर धरती को रहन वालो सी कहत होतो कि जो पशु पर तलवार को घाव लग्यो होतो ऊ जीन्दो भय गयो हय, ओकी मूर्ति बनावो। 15 ओख ऊ हिंसक पशु की मूर्ति म जीव डालन को अधिकार दियो गयो कि पशु की मूर्ति बोलन लगे, अऊर जितनो लोग ऊ पशु की मूर्ति की पूजा नहीं करय, उन्ख मरवाय डाले। 16 दूसरों हिंसक पशु न छोटो-बड़ो, धनी-गरीब, सेवक अऊर स्वतंत्र सब लोगों ख विवश करयो कि हि अपनो अपनो हाथों यां मस्तकों पर ओकी छाप लगवाये, 17 कि ओख छोड़ जेको पर छाप मतलब ऊ हिंसक पशु को नाम यां अंक हो, दूसरों कोयी लेन-देन नहीं कर सके।
18 ज्ञान येकोच म हय: जेको म बुद्धि हय ऊ यो हिंसक पशु को अंक को अर्थ निकाल ले, कहालीकि ऊ अंक कोयी लोग को नाम सी सम्बन्धित हय, अऊर ओको अंक हय छे सौ छियासठ।
<- प्रकाशितवाक्य 12प्रकाशितवाक्य 14 ->- a प्रकाशितवाक्य १७:३,७-१२