6 पर मय जो यो कहू हय यो सलाह हय नहीं कि आज्ञा। 7 मय यो चाहऊ हय कि जसो मय हय, वसोच सब आदमी हो; पर हर एक ख परमेश्वर को तरफ सी अच्छो अच्छो वरदान मिल्यो हंय; कोयी ख कोयी तरह को, अऊर कोयी ख कोयी अऊर तरह को।
8 अब मय कुंवारी अऊर विधवावों को बारे म कहू हय कि उन्को लायी असोच रहनो अच्छो हय, जसो मय हय। 9 पर यदि हि संय्यम नहीं कर सकय, त बिहाव कर लेवो; कहालीकि बिहाव करनो कामातुर रहनो सी ठीक हय।
10 [a]जिन्को बिहाव भय गयो हय, उन्ख मय नहीं, बल्की प्रभु आज्ञा देवय हय कि पत्नी अपनो पति सी अलग नहीं हो। 11 अऊर यदि अलग भी होय जाये, त बिना दूसरों बिहाव करयो रहे; यां अपनो पति सी फिर मेल-मिलाप कर लेवो अऊर पति अपनी पत्नी ख छोड़-चिट्ठी नहीं देन ख होना।
12 दूसरों सी प्रभु नहीं पर मयच कहू हय, यदि कोयी भाऊ की पत्नी विश्वास नहीं रखय हय अऊर ओको संग रहनो सी खुश हय, त ऊ ओख छोड़-चिट्ठी नहीं देनो चाहिये। 13 जो बाई को पति विश्वास नहीं रखय हय, अऊर ओको संग रहनो सी खुश हय; ऊ पति ख नहीं छोड़े। 14 कहालीकि असो पति जो विश्वास नहीं रखय हय, वा पत्नी को वजह पवित्र ठहरय हय; अऊर असी पत्नी जो विश्वास नहीं रखय, पति को वजह पवित्र ठहरय हय; नहीं त तुम्हरो बाल-बच्चा अशुद्ध होतो, पर अब त पवित्र हंय। 15 पर जो पुरुष विश्वास नहीं रखय, यदि ऊ अलग होय त अलग होन दे, असी दशा म कोयी भाऊ यां बहिन बन्धन म नहीं। परमेश्वर न हम्ख मेल मिलाप लायी बुलायो हय। 16 कहालीकि हे बाई, तय का जानय हय कि तय अपनो पति को उद्धार कराय लेजो? अऊर हे पुरुष, तय का जानय हय कि तय अपनी पत्नी को उद्धार कराय लेजो?
26 मोरी समझ म यो अच्छो हय कि वर्तमान को कठिनायी को वजह, आदमी जसो हय वसोच रहे। 27 यदि तोरी पत्नी हय, त ओख छोड़-चिट्ठी देन की कोशिश मत कर; अऊर यदि तोरी पत्नी नहीं, त पत्नी की खोज मत कर। 28 पर यदि तय बिहाव भी करय, त पाप नहीं; अऊर यदि कुंवारी बिहायी जाये त कोयी पाप नहाय। पर असो ख शारीरिक दु:ख होयेंन, अऊर मय बचावनो चाहऊ हय।
29 हे भाऊवों-बहिनों, मय यो कहू हय कि समय कम करयो गयो हय, येकोलायी असो होनो होतो कि जेकी पत्नी हो, हि असो हो, मानो उन्की पत्नी नहीं; 30 अऊर रोवन वालो असो हो, मानो रोवय नहीं; अऊर खुशी करन वालो असो हो, मानो खुशी नहीं करय; अऊर मोल लेनवालो असो हो, मानो उन्को जवर कुछ हयच नहाय। 31 अऊर यो जगत कि चिजों को उपयोग करन वालो असो हो, कि जगत कोच नहीं हो; कहालीकि यो जगत की रीति अऊर व्यवहार खतम होय जावय हंय।
32 येकोलायी मय यो चाहऊ हय कि तुम्ख चिन्ता नहीं होय। कुंवारो पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता म रह्य हय कि प्रभु ख कसो प्रसन्न रखेंन। 33 पर बिहाव वालो आदमी जगत की बातों की चिन्ता म रह्य हय कि अपनी पत्नी ख कौन्सी रीति सी खुश रखे। 34 बिहाव वालो अऊर कुंवारो म भी भेद हय: कुंवारी प्रभु की चिन्ता म रह्य हय कि ऊ शरीर अऊर आत्मा दोयी म पवित्र रहे, पर बिहाव वाली जगत की चिन्ता म रह्य हय कि अपनो पति ख खुश रखू।
35 मय या बात तुम्हरोच फायदा लायी कहू हय, नहीं कि तुम पर बन्धन लगावन लायी, बल्की येकोलायी कि जसो शोभा देवय हय वसोच करयो जाये, कि तुम एक मन होय क प्रभु की सेवा म लग्यो रह।
36 यदि कोयी यो समझो कि मय अपनी वा कुंवारी को हक मार रह्यो हय, जेकी जवानी बीत रही हय, अऊर जरूरत भी हय, त जसो चाहवय वसो करे, येको म पाप नहाय, ऊ ओको बिहाव होन दे। 37 पर जो मन म मजबूत रह्य हय, अऊर ओख जरूरत नहाय, बल्की अपनी इच्छा पर अधिकार रखय हय, अऊर अपनो मन म या बात ठान लियो हय कि ऊ अपनी कुंवारी लड़की ख कुंवारी रखेंन, ऊ अच्छो करय हय। 38 येकोलायी जो अपनी कुंवारी को बिहाव कर देवय हय, ऊ अच्छो करय हय, अऊर जो बिहाव नहीं कर देवय, ऊ अऊर भी अच्छो करय हय।
39 जब तक कोयी बाई को पति जीन्दो रह्य हय, तब तक वा ओको सी बन्धी हुयी हय; पर यदि ओको पति मर जाये त जेकोसी चाहवय बिहाव कर सकय हय, पर केवल प्रभु म। 40 पर यदि वा बिना बिहाव कि रहे यदि वसीच रहे, त मोरो बिचार म अऊर भी धन्य हय; अऊर मय समझू हय कि परमेश्वर को आत्मा मोर म भी हय।
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