3 इसी समय, जब येशु पर दंड की आज्ञा सुनाई गई, यहूदाह, जिसने येशु के साथ धोखा किया था, दुःख और पश्चाताप से भर उठा. उसने प्रधान पुरोहितों और पुरनियों के पास जाकर चांदी के वे तीस सिक्के यह कहते हुए लौटा दिए, 4 “एक निर्दोष के साथ धोखा करके मैंने पाप किया है.”
5 वे सिक्के मंदिर में फेंक यहूदाह चला गया और जाकर फांसी लगा ली.
6 उन सिक्कों को इकट्ठा करते हुए प्रधान पुरोहितों ने विचार किया, “इस राशि को मंदिर के कोष में डालना उचित नहीं है क्योंकि यह लहू का दाम है.” 7 तब उन्होंने इस विषय में विचार-विमर्श कर उस राशि से परदेशियों के अंतिम संस्कार के लिए कुम्हार का एक खेत मोल लिया. 8 यही कारण है कि आज तक उस खेत को “लहू का खेत” नाम से जाना जाता है. 9 इससे भविष्यवक्ता येरेमियाह द्वारा की गई यह भविष्यवाणी पूरी हो गई: “उन्होंने चांदी के तीस सिक्के लिए—यह उसका दाम है, जिसका दाम इस्राएल वंश के द्वारा निर्धारित किया गया था 10 और उन्होंने वे सिक्के कुम्हार के खेत के लिए दे दिए, जैसा निर्देश प्रभु ने मुझे दिया था.”[a]
12 जब येशु पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों द्वारा आरोप पर आरोप लगाए जा रहे थे, येशु मौन बने रहे. 13 इस पर पिलातॉस ने येशु से कहा, “क्या तुम सुन नहीं रहे ये लोग तुम पर कितने आरोप लगा रहे हैं?” 14 येशु ने पिलातॉस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर न दिया. राज्यपाल के लिए यह अत्यंत आश्चर्यजनक था.
15 उत्सव पर परंपरा के अनुसार राज्यपाल की ओर से उस बंदी को, जिसे लोग चाहते थे, छोड़ दिया जाता था. 16 उस समय बंदीगृह में बार-अब्बास नामक एक कुख्यात अपराधी बंदी था. 17 इसलिये जब लोग इकट्ठा हुए पिलातॉस ने उनसे प्रश्न किया, “मैं तुम्हारे लिए किसे छोड़ दूं, बार-अब्बास को या येशु को, जो मसीह कहलाता है? क्या चाहते हो तुम?” 18 पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि मात्र जलन के कारण ही उन्होंने येशु को उनके हाथों में सौंपा था.
19 जब पिलातॉस न्यायासन पर बैठा था, उसकी पत्नी ने उसे यह संदेश भेजा, “उस धर्मी व्यक्ति को कुछ न करना क्योंकि पिछली रात मुझे स्वप्न में उसके कारण घोर पीड़ा हुई है.”
20 इस पर प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने भीड़ को उकसाया कि वे बार-अब्बास की मुक्ति की और येशु के मृत्यु दंड की मांग करें.
21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो, दोनों में से मैं किसे छोड़ दूं?” भीड़ का उत्तर था:
22 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तब मैं येशु का, जो मसीह कहलाता है, क्या करूं?”
23 पिलातॉस ने पूछा, “क्यों? क्या अपराध है उसका?”
24 जब पिलातॉस ने देखा कि वह कुछ भी नहीं कर पा रहा परंतु हुल्लड़ की संभावना है तो उसने भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए यह घोषणा कर दी, “मैं इस व्यक्ति के लहू का दोषी नहीं हूं. तुम ही इसके लिए उत्तरदायी हो.”
25 लोगों ने उत्तर दिया, “इसके लहू का दोष हम पर तथा हमारी संतान पर हो!”
26 तब पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को मुक्त कर दिया किंतु येशु को कोड़े लगवाकर क्रूसित करने के लिए भीड़ के हाथों में सौंप दिया.
38 उसी समय दो अपराधियों को भी उनके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक को उनकी दायीं ओर, दूसरे को उनकी बायीं ओर. 39 आते जाते यात्री उपहास-मुद्रा में सिर हिला-हिला कर मज़ाक उड़ा रहे थे, 40 “अरे ओ मंदिर को नाश कर, तीन दिन में उसको दुबारा बनानेवाले! बचा ले अपने आपको—यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो उतर आ क्रूस से!” 41 इसी प्रकार प्रधान पुरोहित भी शास्त्रियों और पुरनियों के साथ मिलकर उनका उपहास करते हुए कह रहे थे, 42 “दूसरों को तो बचाता फिरा है, स्वयं को नहीं बचा सकता! इस्राएल का राजा है! क्रूस से नीचे आकर दिखाए तो हम इसका विश्वास कर लेंगे. 43 यह परमेश्वर में विश्वास करता है क्योंकि इसने दावा किया था, ‘मैं ही परमेश्वर-पुत्र हूं,’ तब परमेश्वर इसे अभी छुड़ा दें—यदि वह इससे प्रेम करते हैं.” 44 उनके साथ क्रूस पर चढ़ाये गए राजद्रोही भी इसी प्रकार उनकी उल्लाहना कर रहे थे.
47 उधर खड़े हुए व्यक्तियों में से कुछ ने कहा, “अरे! सुनो-सुनो! एलियाह को पुकार रहा है!”
48 उनमें से एक ने तुरंत दौड़कर एक स्पंज सिरके में भिगोया और एक नरकुल की एक छड़ी पर रखकर येशु के होंठों तक बढ़ा दिया. 49 किंतु औरों ने कहा, “ठहरो, ठहरो, देखें एलियाह उसे बचाने आते भी हैं या नहीं.”
50 येशु ने एक बार फिर ऊंची आवाज में पुकारा और अपने प्राण त्याग दिए.
51 उसी क्षण मंदिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक दो भागों में विभाजित कर दिया गया, पृथ्वी कांप उठी, चट्टानें फट गईं 52 और कब्रें खुल गईं. येशु के पुनरुत्थान के बाद उन अनेक पवित्र लोगों के शरीर जीवित कर दिए गये, जो बड़ी नींद में सो चुके थे. 53 कब्रों से बाहर आकर उन्होंने पवित्र नगर में प्रवेश किया तथा अनेकों को दिखाई दिए.
54 शताधिपति और वे, जो उसके साथ येशु की पहरा दे रहे थे, उस भूकंप तथा अन्य घटनाओं को देखकर अत्यंत भयभीत हो गए और कहने लगे, “सचमुच यह परमेश्वर के पुत्र थे!”
55 अनेक स्त्रियां दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थी. वे गलील प्रदेश से येशु की सेवा करती हुई उनके पीछे-पीछे आ गई थी. 56 उनमें थी मगदालावासी मरियम, याकोब और योसेफ़ की माता मरियम तथा ज़ेबेदियॉस की पत्नी.
65 पिलातॉस ने उनसे कहा, “प्रहरी तो आपके पास हैं न! आप जैसा उचित समझें करें.” 66 अतः उन्होंने जाकर प्रहरी नियुक्त कर तथा पत्थर पर मोहर लगाकर कब्र को पूरी तरह सुरक्षित बना दिया.
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