7
1 “क्या ऐहिक जीवन में मनुष्य श्रम करने के लिए बंधा नहीं है?
क्या उसका जीवनकाल मज़दूर समान नहीं है?
2 उस दास के समान, जो हांफते हुए छाया खोजता है,
उस मज़दूर के समान, जो उत्कण्ठापूर्वक अपनी मज़दूरी मिलने की प्रतीक्षा करता है.
3 इसी प्रकार मेरे लिए निरर्थकता के माह
तथा पीड़ा की रातें निर्धारित की गई हैं.
4 मैं इस विचार के साथ बिछौने पर जाता हूं, ‘मैं कब उठूंगा?’
किंतु रात्रि समाप्त नहीं होती. मैं प्रातःकाल तक करवटें बदलता रह जाता हूं.
5 मेरी खाल पर कीटों एवं धूल की परत जम चुकी है,
मेरी खाल कठोर हो चुकी है, उसमें से स्राव बहता रहता है.
6 “मेरे दिनों की गति तो बुनकर की धड़की की गति से भी अधिक है,
जब वे समाप्त होते हैं, आशा शेष नहीं रह जाती.
7 यह स्मरणीय है कि मेरा जीवन मात्र श्वास है;
कल्याण अब मेरे सामने आएगा नहीं.
8 वह, जो मुझे आज देख रहा है, इसके बाद नहीं देखेगा;
तुम्हारे देखते-देखते मैं अस्तित्वहीन हो जाऊंगा.
9 जब कोई बादल छुप जाता है, उसका अस्तित्व मिट जाता है,
उसी प्रकार वह अधोलोक में प्रवेश कर जाता है, पुनः यहां नहीं लौटता.
10 वह अपने घर में नहीं लौटता;
न ही उस स्थान पर उसका अस्तित्व रह जाता है.
11 “तब मैं अपने मुख को नियंत्रित न छोड़ूंगा;
मैं अपने हृदय की वेदना उंडेल दूंगा,
अपनी आत्मा की कड़वाहट से भरके कुड़कुड़ाता रहूंगा.
12 परमेश्वर, क्या मैं सागर हूं, अथवा सागर का विकराल जल जंतु,
कि आपने मुझ पर पहरा बैठा रखा है?
13 यदि मैं यह विचार करूं कि बिछौने पर तो मुझे सुख संतोष प्राप्त हो जाएगा,
मेरे आसन पर मुझे इन पीड़ाओं से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी,
14 तब आप मुझे स्वप्नों के द्वारा भयभीत करने लगते हैं
तथा दर्शन दिखा-दिखाकर आतंकित कर देते हैं;
15 कि मेरी आत्मा को घुटन हो जाए,
कि मेरी पीड़ाएं मेरे प्राण ले लें.
16 मैं अपने जीवन से घृणा करता हूं; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता हूं.
छोड़ दो मुझे अकेला; मेरा जीवन बस एक श्वास तुल्य है.
17 “प्रभु, मनुष्य है ही क्या, जिसे आप ऐसा महत्व देते हैं,
जिसका आप ध्यान रखते हैं,
18 हर सुबह आप उसका परीक्षण करते,
तथा हर पल उसे परखते रहते हैं?
19 क्या आप अपनी दृष्टि मुझ पर से कभी न हटाएंगे?
क्या आप मुझे इतना भी अकेला न छोड़ेंगे, कि मैं अपनी लार को गले से नीचे उतार सकूं?
20 प्रभु, आप जो मनुष्यों पर अपनी दृष्टि लगाए रखते हैं, क्या किया है मैंने आपके विरुद्ध?
क्या मुझसे कोई पाप हो गया है?
आपने क्यों मुझे लक्ष्य बना रखा है?
क्या, अब तो मैं अपने ही लिए एक बोझ बन चुका हूं?
21 तब आप मेरी गलतियों को क्षमा क्यों नहीं कर रहे,
क्यों आप मेरे पाप को माफ नहीं कर रहे?
क्योंकि अब तो तुझे धूल में मिल जाना है;