4 जिस स्त्री की हत्या कर दी गई थी, उसका पति, जो लेवी था, कहने लगा, “यात्रा करते हुए में अपनी उप-पत्नी के साथ गिबियाह पहुंचा, जो बिन्यामिन प्रदेश में है, जहां हमें रात बितानी ज़रूरी हो गई थी. 5 मगर गिबियाह के पुरुष मेरे विरुद्ध चढ़ आए और उन्होंने रात में मेरे कारण उस घर को घेर लिया. वे तो मेरी हत्या करना चाह रहे थे, किंतु उन्होंने मेरी उप-पत्नी के साथ बलात्कार किया, फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई. 6 मैंने अपनी उप-पत्नी के शव को लिया, उसके टुकड़े किए और उसके इन टुकड़ों को इस्राएल के सभी प्रदेशों में भेज दिया, क्योंकि उन्होंने इस्राएल में यह कामुक, शर्मनाक काम किया है. 7 इस्राएल के सभी वंशजों, इस विषय में अपनी राय और सलाह दीजिए.”
8 सारी प्रजा एकजुट हो गई. उन्होंने निश्चय किया, “हममें से कोई भी न तो अपने तंबू को और न ही अपने घर को लौटेगा. 9 गिबियाह के संबंध में हमारा निर्णय है कि पासा फेंकने के द्वारा हम मालूम करेंगे कि गिबियाह पर आक्रमण के लिए कौन जाएगा. 10 हम इस्राएल के हर एक गोत्र से सौ में से दस व्यक्ति अपने साथ ले लेंगे, अर्थात् एक हज़ार में से एक सौ, अर्थात् दस हज़ार में से एक हज़ार, कि वे सेना के खाने-पीने की व्यवस्था करें. जब वे सेना बिन्यामिन प्रदेश के गेबा में पहुंचे, वे उन्हें इस्राएल देश में किए गए सभी शर्मनाक कामों के लिए दंड दें.” 11 इस प्रकार इस्राएल के सारे योद्धाओं ने एकजुट होकर इस नगर को घेर लिया.
12 तब इस्राएल के गोत्रों ने सारे बिन्यामिन गोत्र के लिए अपने प्रतिनिधियों द्वारा यह संदेश भेजा, “तुम्हारे बीच यह कैसा दुष्टता भरा काम किया गया है? 13 गिबियाह में रह रहे उन निकम्मे व्यक्तियों को हमें सौंप दो, कि हम उन्हें मृत्यु दंड दें, और इस्राएल में हुई इस दुष्टता को मिटा डाले.”
17 दूसरी ओर बिन्यामिन वंशजों के अलावा इस्राएली सेना में चार लाख कुशल शूर योद्धा थे.
18 सारी इस्राएली सेना बेथेल गई कि परमेश्वर की इच्छा जान सके. उन्होंने परमेश्वर से पूछा, “बिन्यामिन वंशजों से युद्ध करने सबसे पहले हमारी ओर से कौन जाएगा?”
19 इसलिये इस्राएल वंशजों ने बड़े तड़के जाकर गिबियाह के विरुद्ध पड़ाव डाला. 20 इस्राएल वंशज बिन्यामिन के विरुद्ध युद्ध के लिए निकले. उन्होंने गिबियाह के विरुद्ध युद्ध के लिए मोर्चा बांध दिया. 21 बिन्यामिन के सैनिक गिबियाह नगर से बाहर आए और इस्राएल के बाईस हज़ार योद्धाओं को मार गिराया. 22 किंतु इस्राएल के सैनिकों ने अपना मनोबल बनाए रखते हुए दूसरे दिन भी उसी स्थान पर मोर्चा लिया, जहां पहले दिन लिया था. 23 इस्राएल वंशज जाकर शाम तक याहवेह के सामने रोते रहे. उन्होंने याहवेह से पूछा, “क्या हम अपने बंधु बिन्यामिन वंशजों पर दोबारा हमला करें?”
24 दूसरे दिन इस्राएल वंशजों ने बिन्यामिन वंशजों पर हमला कर दिया. 25 गिबियाह नगर से बिन्यामिन वंशजों ने बाहर जाकर इस्राएली सेना के अठारह हज़ार सैनिकों को मार गिराया. ये सभी तलवार चलाने में कुशल थे.
26 इसलिये इस्राएल वंशज और सभी प्रजा के लोग बेथेल गए और वहां जाकर रोते रहे. वे सारे दिन शाम तक याहवेह के सामने भूखे रहे. वहां उन्होंने याहवेह को होमबलि और मेल बलि भेंट की. 27 इस्राएल वंशजों ने याहवेह से प्रश्न किया. (उन दिनों परमेश्वर के वाचा का संदूक बेथेल में ही था.) 28 अहरोन का पोता, एलिएज़र का पुत्र फिनिहास संदूक के सामने सेवा के लिए चुना गया था. इस्राएल वंशजों ने याहवेह से पूछा, “क्या हम अब भी अपने बंधु बिन्यामिन पर हमला करने जाएं या यह विचार त्याग दें?”
29 फिर इस्राएल ने गिबियाह नगर के आस-पास सैनिकों को घात लगाने के लिए बैठा दिया. 30 तीसरे दिन इस्राएल वंशजों ने बिन्यामिन वंशजों पर हमला करने के लिए गिबियाह के विरुद्ध मोर्चा बांधा, जैसा उन्होंने इसके पहले भी किये थे. 31 जब बिन्यामिन वंशज उनकी सेना पर हमला करने बाहर आए, पीछे हटती इस्राएली सेना उन्हें नगर से दूर ले जाने लगी. बिन्यामिन वंशज इस्राएली सैनिकों पर पहले जैसे ही वार करने लगे. प्रमुख मार्गों पर, जो बेथेल तथा गिबियाह को जाते थे, तथा खेतों में लगभग तीस इस्राएली सैनिक मार डालें गए. 32 बिन्यामिन वंशजों का विचार था, “पहले जैसे ही वे हमारे सामने मार गिराए जा रहे हैं.” मगर इस्राएली सैनिकों ने कहा, “आओ, हम भागना शुरू करें कि उन्हें नगर से दूर मुख्य मार्गों पर ले आएं.”
33 तब सभी इस्राएली सैनिक अपने-अपने स्थानों से निकलकर बाल-तामार नामक स्थान पर युद्ध में शामिल हो गए. वे भी, जो घात लगाए बैठे थे, बाहर निकल आए, वे भी जो मआरोह-गीबा में थे. 34 जब सारे इस्राएल से चुने गए दस हज़ार सैनिकों ने गिबियाह पर हमला किया, युद्ध बहुत ही प्रचंड हो गया; मगर बिन्यामिन वंशजों को यह तनिक भी अहसास न था कि महाविनाश उनके पास आ चुका था. 35 याहवेह ने इस्राएल के सामने बिन्यामिन को मार गिराया. उस दिन इस्राएल ने पच्चीस हज़ार एक सौ बिन्यामिनी सैनिकों को मार गिराया. ये सभी तलवार चलाने में निपुण थे. 36 बिन्यामिन वंशजों को अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी.
46 इसलिये उस दिन वध किए सैनिकों की सारी गिनती पच्चीस हज़ार हो गई. से सभी कुशल हज़ार सैनिक थे-तलवार चलाने में निपुण. 47 मगर छः सौ सैनिक मुड़कर निर्जन प्रदेश में रिम्मोन की चट्टान की दिशा में भागे. वे रिम्मोन की चट्टान के निकट चार महीने तक रहते रहे. 48 तब इस्राएली सेना बिन्यामिन वंशजों के नगरों की ओर बढ़ें और सभी को तलवार से वध कर दिया. सारे नगर नाश कर दिए गए, उन्होंने जो भी मिला, नगरवासी और पशुओं सभी का वध कर दिया. उन्हें जितने नगर मिलते गए, वे उनमें आग लगाते चले गए.
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