10 दक्षिण की ओर बाहरी आंगन के दीवार की लंबाई में, मंदिर के आंगन से जुड़ते हुए और बाहरी दीवार के सामने कमरे थे, 11 और उनके सामने एक मार्ग था. ये कमरे उत्तर की ओर के कमरे जैसे थे; उनकी लंबाई तथा चौड़ाई भी वैसी ही थी, और उनके निकास और आकार में भी समानता थी. उत्तर की ओर के दरवाजों के समान 12 दक्षिण की ओर के कमरों के दरवाजे थे. कमरों में जाने के लिये, मार्ग के शुरुआत में एक दरवाजा था; यह मार्ग पूर्व की ओर बढ़े हुए समतुल्य दीवार के समानांतर था.
13 तब उसने मुझसे कहा, “मंदिर के आंगन की ओर के उत्तर और दक्षिण के कमरे पुरोहितों के हैं, जहां वे पुरोहित महा पवित्र बलिदानों को खाएंगे, जो याहवेह की सेवा करते हैं. वहां वे महा पवित्र बलिदानों को रखेंगे—अन्नबलि, पाप बलिदान[a] और दोष बलिदान—क्योंकि यह स्थान पवित्र है. 14 जब कभी पुरोहित पवित्र जगह में जाएं, वे तब तक बाहरी आंगन में न जाएं, जब तक कि वे उन कपड़ों को उतारकर पवित्र स्थान में रख न दें, जिन्हें पहनकर वे सेवा करते हैं, क्योंकि वे कपड़े पवित्र हैं. साधारण लोगों के लिये ठहराए जगहों में जाने से पहले पुरोहित दूसरे कपड़े पहन लें.”
15 जब वह मंदिर क्षेत्र के भीतर को नाप चुका, तब वह मुझे पूर्वी द्वार से बाहर ले गया और चारों ओर के क्षेत्र को नापा: 16 उसने नापनेवाली लाठी से पूर्वी भाग को नापा; जो लगभग दो सौ पैंसठ मीटर था. 17 उसने उत्तरी भाग को नापा; वह भी नापनेवाली लाठी में लगभग दो सौ पैंसठ मीटर था. 18 उसने दक्षिणी भाग को नापा; वह भी नापनेवाली लाठी में लगभग दो सौ पैंसठ मीटर निकला. 19 तब वह पश्चिमी भाग की ओर मुड़ा और उसे नापा; वह भी नापनेवाली लाठी में लगभग दो सौ पैंसठ मीटर निकला. 20 इस प्रकार उसने चारों तरफ के भागों को नापा. इसके चारों ओर एक दीवार थी, जिसकी लंबाई लगभग दो सौ पैंसठ मीटर और चौड़ाई भी लगभग दो सौ पैंसठ मीटर थी; यह दीवार पवित्र स्थान को सामान्य स्थान से अलग करती थी.
<- यहेजकेल 41यहेजकेल 43 ->- a पाप बलिदान पाप निवारण का बलिदान