3 “मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है, तुम इस्राएल देश में इस कहावत का उल्लेख फिर न करोगे. 4 हर एक जन मेरा है, माता-पिता के साथ साथ बच्चे भी—दोनों एक समान मेरे हैं. इसलिये जो व्यक्ति पाप करता है, वही मरेगा भी.
10 “मान लो उस व्यक्ति का एक हिंसक प्रवृत्ति का बेटा है, जो खून-ख़राबा करता है या इनमें से कोई भी काम करता है, 11 (यद्यपि उसके पिता ने इनमें से कोई भी काम नहीं किया है):
14 “पर मान लो, इस बेटे का एक बेटा है, जो अपने पिता द्वारा किए गए सब पापों को देखता है, और यद्यपि वह उन पापों को देखता है, पर वह ऐसा कोई पाप नहीं करता है:
19 “तौभी तुम पूछते हो, ‘पुत्र अपने पिता के दोष का भागीदार क्यों नहीं होता?’ जब बेटे ने वह काम किया जो उचित और सही है और ध्यानपूर्वक मेरे नियमों को माना है, तो वह निश्चय ही जीवित रहेगा. 20 जो पाप करेगा, मरेगा भी वहीं. कोई बच्चा अपने माता-पिता के दोष का भागीदार नहीं होगा, और न ही माता-पिता अपने बच्चों के दोष के भागीदार होंगे. धर्मी के धर्मीपन का फल उस धर्मी को ही मिलेगा, और दुष्ट की दुष्टता का फल उस दुष्ट को दिया जाएगा.
21 “पर यदि कोई दुष्ट व्यक्ति अपने सब पापों को छोड़ देता है और मेरे नियमों का पालन करता है, और वह काम करता है जो उचित और सही है, तो वह व्यक्ति निश्चय जीवित रहेगा; वह न मरेगा. 22 उसने जो भी पाप किए हैं, वे फिर याद किए नहीं जाएंगे. वह अपने किए गये धर्म के कामों के कारण जीवित रहेगा. 23 क्या मैं किसी दुष्ट की मृत्यु से खुश होता हूं? परम प्रधान याहवेह की घोषणा है. बल्कि क्या मैं खुश नहीं होता, जब वह अपने बुरे कामों को छोड़कर जीवित रहता है?
24 “पर यदि कोई धर्मी व्यक्ति अपने धर्मीपन को छोड़कर पाप करता है और वही घृणित काम करने लगता है जो दुष्ट व्यक्ति करते हैं, तो क्या वह जीवित रहेगा? उसके द्वारा किए गये कोई भी धर्मी काम याद नहीं किए जाएंगे. अपने किए गये विश्वासघात के कारण वह दोषी है और अपने किए गये पापों के कारण वह मरेगा.
25 “फिर भी तुम कहते हो, ‘प्रभु की नीति उचित नहीं है.’ हे इस्राएलियो, सुनो: क्या मेरी नीति अनुचित है? क्या ये तुम्हारी ही नीतियां नहीं हैं जो अनुचित हैं? 26 यदि कोई धर्मी व्यक्ति अपने धर्मीपन को छोड़कर दुष्ट काम करता है, तब वह अपने दुष्ट काम के कारण मरेगा; अपने किए गये पापों के कारण वह मरेगा. 27 पर यदि कोई दुष्ट व्यक्ति अपने बुरे कामों को छोड़ देता है और वह काम करता है जो उचित और सही है, तो वह अपना प्राण बचाएगा. 28 क्योंकि उसने अपने किए गये सब पापों पर सोच-विचार किया और उन्हें छोड़ दिया, इसलिये वह व्यक्ति निश्चय ही जीवित रहेगा; वह नहीं मरेगा. 29 तौभी इस्राएली कहते हैं, ‘प्रभु की नीति उचित नहीं है.’ हे इस्राएल के लोगो, क्या मेरी नीतियां अनुचित हैं? क्या ये तुम्हारी ही नीतियां नहीं हैं जो अनुचित हैं?
30 “इसलिये, हे इस्राएलियो, मैं तुममें से हर एक का न्याय उसी के आचरण के अनुसार करूंगा, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है. पश्चात्ताप करो! अपने सब पापों को छोड़ दो; तब पाप तुम्हारे लिए पतन का कारण नहीं बनेगा. 31 अपने द्वारा किए गए सब अपराधों से दूर हो जाओ और एक नया हृदय और एक नई आत्मा ले लो. हे इस्राएल के लोगों, तुम्हारी मृत्यु क्यों हो? 32 क्योंकि मुझे किसी के भी मृत्यु से खुशी नहीं होती, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है. इसलिये पश्चात्ताप करो और जीवित रहो!
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