जकर्याह लेखक जक. 1:1 में पुस्तक के लेखक का नाम बेरेक्याह का पुत्र, और इद्दो का पोता भविष्यद्वक्ता जकर्याह दिया गया है। इद्दो स्वदेश लौटनेवाले निर्वासितों में पुरोहित परिवारों में से एक का मुखिया था (नहे. 12:14,16)। सम्भवतः स्वदेश लौटने के समय जकर्याह एक बालक ही था। पारिवारिक पृष्ठभूमि से जकर्याह भविष्यद्वक्ता होने के साथ-साथ पुरोहित भी था। अतः वह यहूदियों की आराधना विधि को घनिष्ठता से जानता था, यद्यपि उसने मन्दिर में सेवा नहीं की थी। लेखन तिथि एवं स्थान लगभग 520 - 480 ई. पू. यह पुस्तक बाबेल की बन्धुआई से लौटने के बाद लिखी गई थी। जकर्याह ने अध्याय 1-8 मन्दिर निर्माण के पूरा होने के पूर्व तथा अध्याय 9-14 मन्दिर निर्माण के बाद लिखे थे। प्रापक यरूशलेमवासी तथा स्वदेश लौटे निर्वासित यहूदी। उद्देश्य इस पुस्तक का उद्देश्य था कि स्वदेश लौटनेवालों को आशा बंधाई जाए और समझ प्रदान की जाए और वे आनेवाले मसीह यीशु की प्रतीक्षा के लिए प्रेरित हो जाएँ। जकर्याह ने बल देकर कहा कि परमेश्वर अपने भविष्यद्वक्ताओं को शिक्षा देने, चेतावनी देने और उसके लोगों का सुधार करने के लिए काम में लेता है। दुर्भाग्य से उन्होंने सुनने से इन्कार कर दिया। उनके पाप का दण्ड परमेश्वर ने उन्हें दिया। इस पुस्तक में यह प्रमाण है कि भविष्यद्वाणी भी भ्रष्ट हो सकती है। मूल विषय परमेश्वर का उद्धार रूपरेखा 1. मन-फिराव की पुकार — 1:1-6 2. जकर्याह का दर्शन — 1:7-6:15 3. उपवास से सम्बंधित प्रश्न — 7:1-8:23 4. भविष्य के बोझ — 9:1-14:21
1पश्चाताप की बुलाहट 1 दारा के राज्य के दूसरे वर्ष के आठवें महीने में जकर्याह भविष्यद्वक्ता के पास जो बेरेक्याह का पुत्र और इद्दो का पोता था, यहोवा का यह वचन पहुँचा (एज्रा 4:24, 5:1) 2 “यहोवा तुम लोगों के पुरखाओं से बहुत ही क्रोधित हुआ था। 3 इसलिए तू इन लोगों से कह, सेनाओं का यहोवा यह कहता है: तुम मेरी ओर फिरो, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है, तब मैं तुम्हारी ओर फिरूँगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है। (याकू. 4:8, होशे 6:1) 4 अपने पुरखाओं के समान न बनो, उनसे तो पूर्वकाल के भविष्यद्वक्ता यह पुकार पुकारकर कहते थे, ‘सेनाओं का यहोवा यह कहता है, अपने बुरे मार्गों से, और अपने बुरे कामों से फिरो;’ परन्तु उन्होंने न तो सुना, और न मेरी ओर ध्यान दिया, यहोवा की यही वाणी है। 5 तुम्हारे पुरखा कहाँ रहे? भविष्यद्वक्ता क्या सदा जीवित रहते हैं? 6 परन्तु मेरे वचन और मेरी आज्ञाएँ जिनको मैंने अपने दास नबियों को दिया था, क्या वे तुम्हारे पुरखाओं पर पूरी न हुईं? तब उन्होंने मन फिराया और कहा, सेनाओं के यहोवा ने हमारे चाल चलन और कामों के अनुसार हम से जैसा व्यवहार करने का निश्चय किया था, वैसा ही उसने हमको बदला दिया है।” (विला. 2:17) घोड़ों का दर्शन 7 दारा के दूसरे वर्ष के शबात नामक ग्यारहवें महीने के चौबीसवें दिन को जकर्याह नबी के पास जो बेरेक्याह का पुत्र और इद्दो का पोता था, यहोवा का वचन इस प्रकार पहुँचा 8 “मैंने रात को स्वप्न में क्या देखा कि एक पुरुष लाल घोड़े पर चढ़ा हुआ उन मेंहदियों के बीच खड़ा है जो नीचे स्थान में हैं, और उसके पीछे लाल और भूरे और श्वेत घोड़े भी खड़े हैं। (प्रका. 6:4) 9 तब मैंने कहा, ‘हे मेरे प्रभु ये कौन हैं?’ तब जो दूत मुझसे बातें करता था, उसने मुझसे कहा, ‘मैं तुझे दिखाऊँगा कि ये कौन हैं।’ 10 फिर जो पुरुष मेंहदियों के बीच खड़ा था, उसने कहा, ‘यह वे हैं जिनको यहोवा ने पृथ्वी पर सैर अर्थात् घूमने के लिये भेजा है।’ 11 तब उन्होंने यहोवा के उस दूत से जो मेंहदियों के बीच खड़ा था, कहा, ‘हमने पृथ्वी पर सैर किया है, और क्या देखा कि सारी पृथ्वी में शान्ति और चैन है*सारी पृथ्वी में शान्ति और चैन है: जैसा कि शब्द व्यक्त करता है, अपनी आक्रामकता और युद्ध के आदी अवस्था से शान्ति।’ प्रभु सिय्योन को सांत्वना देगा 12 “तब यहोवा के दूत ने कहा, ‘हे सेनाओं के यहोवा, तू जो यरूशलेम और यहूदा के नगरों पर सत्तर वर्ष से क्रोधित है, इसलिए तू उन पर कब तक दया न करेगा?’ (प्रका. 6:10) 13 और यहोवा ने उत्तर में उस दूत से जो मुझसे बातें करता था, अच्छी-अच्छी और शान्ति की बातें कहीं। 14 तब जो दूत मुझसे बातें करता था, उसने मुझसे कहा, ‘तू पुकारकर कह कि सेनाओं का यहोवा यह कहता है, मुझे यरूशलेम और सिय्योन के लिये बड़ी जलन हुई है। 15 जो अन्यजातियाँ सुख से रहती हैं, उनसे मैं क्रोधित हूँ†मैं क्रोधित हूँ: इन शब्दों की रचना से प्रगट होता है कि परमेश्वर उसकी प्रजा को सतानेवालों से बहुत क्रोधित है। ; क्योंकि मैंने तो थोड़ा सा क्रोध किया था, परन्तु उन्होंने विपत्ति को बढ़ा दिया। 16 इस कारण यहोवा यह कहता है, अब मैं दया करके यरूशलेम को लौट आया हूँ; मेरा भवन उसमें बनेगा, और यरूशलेम पर नापने की डोरी डाली जाएगी, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है। सींगों का दर्शन 17 “ ‘फिर यह भी पुकारकर कह कि सेनाओं का यहोवा यह कहता है, मेरे नगर फिर उत्तम वस्तुओं से भर जाएँगे, और यहोवा फिर सिय्योन को शान्ति देगा; और यरूशलेम को फिर अपना ठहराएगा।’ ”18 फिर मैंने जो आँखें उठाई‡फिर मैंने जो आँखें उठाई: शारीरिक आँखें नहीं (शारीरिक आँखें इन दर्शनों को नहीं देख सकती) परन्तु मन और बुद्धि कि आन्तरिक आँखें।, तो क्या देखा कि चार सींग हैं। 19 तब जो दूत मुझसे बातें करता था, उससे मैंने पूछा, “ये क्या हैं?” उसने मुझसे कहा, “ये वे ही सींग हैं, जिन्होंने यहूदा और इस्राएल और यरूशलेम को तितर-बितर किया है।” 20 फिर यहोवा ने मुझे चार लोहार दिखाए। 21 तब मैंने पूछा, “ये क्या करने को आए हैं?” उसने कहा, “ये वे ही सींग हैं, जिन्होंने यहूदा को ऐसा तितर-बितर किया कि कोई सिर न उठा सका; परन्तु ये लोग उन्हें भगाने के लिये और उन जातियों के सींगों को काट डालने के लिये आए हैं जिन्होंने यहूदा के देश को तितर-बितर करने के लिये उनके विरुद्ध अपने-अपने सींग उठाए थे।”
जकर्याह 2 ->
- a सारी पृथ्वी में शान्ति और चैन है: जैसा कि शब्द व्यक्त करता है, अपनी आक्रामकता और युद्ध के आदी अवस्था से शान्ति
- b मैं क्रोधित हूँ: इन शब्दों की रचना से प्रगट होता है कि परमेश्वर उसकी प्रजा को सतानेवालों से बहुत क्रोधित है।
- c फिर मैंने जो आँखें उठाई: शारीरिक आँखें नहीं (शारीरिक आँखें इन दर्शनों को नहीं देख सकती) परन्तु मन और बुद्धि कि आन्तरिक आँखें।
18 फिर मैंने जो आँखें उठाई‡फिर मैंने जो आँखें उठाई: शारीरिक आँखें नहीं (शारीरिक आँखें इन दर्शनों को नहीं देख सकती) परन्तु मन और बुद्धि कि आन्तरिक आँखें।, तो क्या देखा कि चार सींग हैं। 19 तब जो दूत मुझसे बातें करता था, उससे मैंने पूछा, “ये क्या हैं?” उसने मुझसे कहा, “ये वे ही सींग हैं, जिन्होंने यहूदा और इस्राएल और यरूशलेम को तितर-बितर किया है।” 20 फिर यहोवा ने मुझे चार लोहार दिखाए। 21 तब मैंने पूछा, “ये क्या करने को आए हैं?” उसने कहा, “ये वे ही सींग हैं, जिन्होंने यहूदा को ऐसा तितर-बितर किया कि कोई सिर न उठा सका; परन्तु ये लोग उन्हें भगाने के लिये और उन जातियों के सींगों को काट डालने के लिये आए हैं जिन्होंने यहूदा के देश को तितर-बितर करने के लिये उनके विरुद्ध अपने-अपने सींग उठाए थे।”
जकर्याह 2 ->- a सारी पृथ्वी में शान्ति और चैन है: जैसा कि शब्द व्यक्त करता है, अपनी आक्रामकता और युद्ध के आदी अवस्था से शान्ति
- b मैं क्रोधित हूँ: इन शब्दों की रचना से प्रगट होता है कि परमेश्वर उसकी प्रजा को सतानेवालों से बहुत क्रोधित है।
- c फिर मैंने जो आँखें उठाई: शारीरिक आँखें नहीं (शारीरिक आँखें इन दर्शनों को नहीं देख सकती) परन्तु मन और बुद्धि कि आन्तरिक आँखें।