4 ये वे ही जैतून के दो पेड़ और दो दीवट हैं जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं†जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं: ये वे दो अभिषिक्त प्राणी हो सकते है जो सम्पूर्ण पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं। उनका उत्तरदायित्व था कि वे परमेश्वर की उपस्थिति में, उसकी आँखों के सामने सेवा करते रहते थे।। (जक. 4:3) 5 और यदि कोई उनको हानि पहुँचाना चाहता है, तो उनके मुँह से आग निकलकर उनके बैरियों को भस्म करती है, और यदि कोई उनको हानि पहुँचाना चाहेगा, तो अवश्य इसी रीति से मार डाला जाएगा। (यिर्म. 5:14) 6 उन्हें अधिकार है कि आकाश को बन्द करें, कि उनकी भविष्यद्वाणी के दिनों में मेंह न बरसे, और उन्हें सब पानी पर अधिकार है, कि उसे लहू बनाएँ, और जब जब चाहें तब-तब पृथ्वी पर हर प्रकार की विपत्ति लाएँ। 7 जब वे अपनी गवाही दे चुकेंगे, तो वह पशु जो अथाह कुण्ड में से निकलेगा, उनसे लड़कर उन्हें जीतेगा और उन्हें मार डालेगा। (प्रका. 13:7) 8 और उनके शव उस बड़े नगर के चौक में पड़े रहेंगे, जो आत्मिक रीति से सदोम और मिस्र कहलाता है, जहाँ उनका प्रभु भी क्रूस पर चढ़ाया गया था। 9 और सब लोगों, कुलों, भाषाओं, और जातियों में से लोग उनके शवों को साढ़े तीन दिन तक देखते रहेंगे, और उनके शवों को कब्र में रखने न देंगे। 10 और पृथ्वी के रहनेवाले उनके मरने से आनन्दित और मगन होंगे, और एक दूसरे के पास भेंट भेजेंगे, क्योंकि इन दोनों भविष्यद्वक्ताओं ने पृथ्वी के रहनेवालों को सताया था। 11 परन्तु साढ़े तीन दिन के बाद परमेश्वर की ओर से जीवन का श्वास उनमें पैंठ गया; और वे अपने पाँवों के बल खड़े हो गए, और उनके देखनेवालों पर बड़ा भय छा गया। 12 और उन्हें स्वर्ग से एक बड़ा शब्द सुनाई दिया, “यहाँ ऊपर आओ!” यह सुन वे बादल पर सवार होकर अपने बैरियों के देखते-देखते स्वर्ग पर चढ़ गए। 13 फिर उसी घड़ी एक बड़ा भूकम्प हुआ, और नगर का दसवाँ भाग गिर पड़ा; और उस भूकम्प से सात हजार मनुष्य मर गए और शेष डर गए, और स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा की। (प्रका. 14:7)
14 दूसरी विपत्ति बीत चुकी; तब, तीसरी विपत्ति शीघ्र आनेवाली है।
19 और परमेश्वर का जो मन्दिर स्वर्ग में है, वह खोला गया, और उसके मन्दिर में उसकी वाचा का सन्दूक दिखाई दिया, बिजलियाँ, शब्द, गर्जन और भूकम्प हुए, और बड़े ओले पड़े। (प्रका. 15:5)
<- प्रकाशितवाक्य 10प्रकाशितवाक्य 12 ->- a सरकण्डा: यह घास के सदृश्य जोड़ों वाली डण्डी का एक पौधा होता था जो गीली भूमि में उगता था।
- b जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं: ये वे दो अभिषिक्त प्राणी हो सकते है जो सम्पूर्ण पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं। उनका उत्तरदायित्व था कि वे परमेश्वर की उपस्थिति में, उसकी आँखों के सामने सेवा करते रहते थे।
- c जो है और जो था: पृथ्वी पर जितनी भी घटनाएँ होती हैं, वह हमेशा एक ही जैसा रहता है। वह पिछले समय में जैसा था अब भी वह वैसे ही है; वह अभी जैसा है वह हमेशा ऐसे ही रहेगा।