Link to home pageLanguagesLink to all Bible versions on this site
28
विनती और धन्यवाद
दाऊद का भजन
1 हे यहोवा, मैं तुझी को पुकारूँगा;
हे मेरी चट्टान, मेरी पुकार अनसुनी न कर,
ऐसा न हो कि तेरे चुप रहने से
मैं कब्र में पड़े हुओं के समान हो जाऊँ जो पाताल में चले जाते हैं*जो पाताल में चले जाते हैं: मृतकों के सदृश्य तनाव और निराशा से ग्रस्त होकर मर जाऊँ।
2 जब मैं तेरी दुहाई दूँ,
और तेरे पवित्रस्थान की भीतरी कोठरी
की ओर अपने हाथ उठाऊँ,
तब मेरी गिड़गिड़ाहट की बात सुन ले।
3 उन दुष्टों और अनर्थकारियों के संग मुझे न घसीट;
जो अपने पड़ोसियों से बातें तो मेल की बोलते हैं,
परन्तु हृदय में बुराई रखते हैं।
4 उनके कामों के और उनकी करनी की बुराई
के अनुसार उनसे बर्ताव कर,
उनके हाथों के काम के अनुसार उन्हें बदला दे;
उनके कामों का पलटा उन्हें दे। (मत्ती 16:27, प्रका. 18:6,13, प्रका. 22:12)
5 क्योंकि वे यहोवा के कामों को
और उसके हाथ के कामों को नहीं समझते,
इसलिए वह उन्हें पछाड़ेगा और फिर न उठाएगाफिर न उठाएगा: परमेश्वर उन पर अनुग्रह नहीं करेगा, वह उन्हें समृद्धि प्रदान नहीं करेगा।
6 यहोवा धन्य है;
क्योंकि उसने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुना है।
7 यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है;
उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है;
इसलिए मेरा हृदय प्रफुल्लित है;
और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूँगा।
8 यहोवा अपने लोगों की सामर्थ्य है,
वह अपने अभिषिक्त के लिये उद्धार का दृढ़ गढ़ है।
9 हे यहोवा अपनी प्रजा का उद्धार कर,
और अपने निज भाग के लोगों को आशीष दे;
और उनकी चरवाही कर और सदैव उन्हें सम्भाले रह।

<- भजन संहिता 27भजन संहिता 29 ->