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अत्याचारी से राहत के लिए याचिका
दाऊद का मश्कील, जब वह गुफा में था: प्रार्थना
1 मैं यहोवा की दुहाई देता,
मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूँ,
2 मैं अपने शोक की बातें उससे खोलकर कहता,
मैं अपना संकट उसके आगे प्रगट करता हूँ।
3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी*जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी: कहने का अर्थ है कि कष्टों में फँसा वह अशक्त, निर्जीव, और हताश था। वह कष्टों से मुक्ति का मार्ग खोज नहीं पा रहा था।,
तब तू मेरी दशा को जानता था!
जिस रास्ते से मैं जानेवाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फंदा लगाया।
4 मैंने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता।
मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है।
5 हे यहोवा, मैंने तेरी दुहाई दी है;
मैंने कहा, तू मेरा शरणस्थान है,
मेरे जीते जी तू मेरा भाग है।
6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन,
क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है!
जो मेरे पीछे पड़े हैं, उनसे मुझे बचा ले;
क्योंकि वे मुझसे अधिक सामर्थी हैं।
7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल†मुझ को बन्दीगृह से निकाल: मुझे इस परिस्थिति से उबार ले, यह मेरे लिए कारागार के समान है। मैं ऐसा हूँ जैसे मैं कैद कर दिया गया हूँ। कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूँ!
धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएँगे;