Link to home pageLanguagesLink to all Bible versions on this site
3
युवाओं के लिए मार्गदर्शन
1 हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना;
अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना;
2 क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी,
और तू अधिक कुशल से रहेगा।
3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएँ;
वरन् उनको अपने गले का हार बनाना,
और अपनी हृदयरूपी पटिया पर लिखना। (2 कुरि. 3:3)
4 तब तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा,
तू अति प्रतिष्ठित होगा। (लूका 2:52, रोम. 12:17, 2 कुरि. 8:21)
5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना,
वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना*यहोवा पर भरोसा रखना: परमेश्वर की इच्छा में भरोसा रखना- सच्ची महानता का रहस्य अपनी सब चिन्ताओं, योजनाओं तथा भय से उभरना है। हम अपने स्वयं को अपना भाग्य विधाता समझते है तो अपनी ही समझ का सहारा लेते है।
6 उसी को स्मरण करके सब काम करना,
तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।
7 अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना;
यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। (रोम. 12:16)
8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा,
और तेरी हड्डियाँ पुष्ट रहेंगी।
9 अपनी सम्पत्ति के द्वारा
और अपनी भूमि की सारी पहली उपज देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना;
10 इस प्रकार तेरे खत्ते भरे
और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डों से नया दाखमधु उमड़ता रहेगा।
11 हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुँह न मोड़ना,
और जब वह तुझे डाँटे, तब तू बुरा न मानना,
12 जैसे पिता अपने प्रिय पुत्र को डाँटता है,
वैसे ही यहोवा जिससे प्रेम रखता है उसको डाँटता है। (इफि. 6:4, इब्रा. 12:5-7)
13 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे,
14 जो उपलब्धि बुद्धि से प्राप्त होती है, वह चाँदी की प्राप्ति से बड़ी,
और उसका लाभ शुद्ध सोने के लाभ से भी उत्तम है।
15 वह बहुमूल्य रत्नों से अधिक मूल्यवान है,
और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उनमें से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी।
16 उसके दाहिने हाथ में दीर्घायु,
और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं।
17 उसके मार्ग आनन्ददायक हैं,
और उसके सब मार्ग कुशल के हैं।
18 जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं,
उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।
19 यहोवा ने पृथ्वी की नींव बुद्धि ही से डाली;
और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया।
20 उसी के ज्ञान के द्वारा गहरे सागर फूट निकले,
और आकाशमण्डल से ओस टपकती है।
21 हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न होने पाए; तू खरी बुद्धि
और विवेकखरी बुद्धि और विवेक: निम्नलिखित वाक्य की बुद्धि एवं विवेक। अर्थात् बुद्धि और विवेक पर अपनी नजर इस प्रकार रखो, जैसे कोई अपनी अनमोल वस्तु की निगरानी करता है। की रक्षा कर,
22 तब इनसे तुझे जीवन मिलेगा,
और ये तेरे गले का हार बनेंगे।
23 तब तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा,
और तेरे पाँव में ठेस न लगेगी।
24 जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा,
जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी।
25 अचानक आनेवाले भय से न डरना,
और जब दुष्टों पर विपत्ति आ पड़े,
तब न घबराना;
26 क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा,
और तेरे पाँव को फंदे में फँसने न देगा।
27 जो भलाई के योग्य है उनका भला अवश्य करना,
यदि ऐसा करना तेरी शक्ति में है।
28 यदि तेरे पास देने को कुछ हो,
तो अपने पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूँगा। (2 कुरि. 8:12)
29 जब तेरा पड़ोसी तेरे पास निश्चिन्त रहता है,
तब उसके विरुद्ध बुरी युक्ति न बाँधना।
30 जिस मनुष्य ने तुझ से बुरा व्यवहार न किया हो,
उससे अकारण मुकद्दमा खड़ा न करना।
31 उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना,
न उसकी सी चाल चलना;
32 क्योंकि यहोवा कुटिल मनुष्य से घृणा करता है,
परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगों पर प्रगट करता है।
33 दुष्ट के घर पर यहोवा का श्राप
और धर्मियों के वासस्थान पर उसकी आशीष होती है।
34 ठट्ठा करनेवालों का वह निश्चय ठट्ठा करता है;
परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है। (याकू. 4:6, 1 पत. 5:5)
35 बुद्धिमान महिमा को पाएँगे,
परन्तु मूर्खों की बढ़ती अपमान ही की होगी।

<- नीतिवचन 2नीतिवचन 4 ->