16 “तब याजक उस स्त्री को समीप ले जाकर यहोवा के सामने खड़ा करे; 17 और याजक मिट्टी के पात्र में पवित्र जल ले, और निवास-स्थान की भूमि पर की धूल में से कुछ लेकर उस जल में डाल दे। 18 तब याजक उस स्त्री को यहोवा के सामने खड़ा करके उसके सिर के बाल बिखराए, और स्मरण दिलानेवाले अन्नबलि को जो जलनवाला है उसके हाथों पर धर दे। और अपने हाथ में याजक कड़वा जल लिये रहे जो श्राप लगाने का कारण होगा। 19 तब याजक स्त्री को शपथ धरवाकर कहे, कि यदि किसी पुरुष ने तुझ से कुकर्म न किया हो, और तू पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध न हो गई हो, तो तू इस कड़वे जल के गुण से जो श्राप का कारण होता है बची रहे। 20 पर यदि तू अपने पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हुई हो, और तेरे पति को छोड़ किसी दूसरे पुरुष ने तुझ से प्रसंग किया हो, 21 (और याजक उसे श्राप देनेवाली शपथ धराकर कहे,) यहोवा तेरी जाँघ सड़ाए और तेरा पेट फुलाए‡पेट फुलाए: अर्थात् ‘बाँझ’, और लोग तेरा नाम लेकर श्राप और धिक्कार दिया करें; 22 अर्थात् वह जल जो श्राप का कारण होता है तेरी अंतड़ियों में जाकर तेरे पेट को फुलाए, और तेरी जाँघ को सड़ा दे। तब वह स्त्री कहे, आमीन, आमीन।
23 “तब याजक श्राप के ये शब्द पुस्तक में लिखकर उस कड़वे जल से मिटाकर§कड़वे जल से मिटाकर: कि श्राप कड़वे जल में चला जाए, 24 उस स्त्री को वह कड़वा जल पिलाए*स्त्री को वह कड़वा जल पिलाए: यह उसके द्वारा काल्पनिक श्राप का स्वीकरण और उस पर उसका वास्तविक क्रियान्वन यदि वह दोषी है दोनों का स्वीकरण होगा। जो श्राप का कारण होता है, और वह जल जो श्राप का कारण होगा उस स्त्री के पेट में जाकर कड़वा हो जाएगा। 25 और याजक स्त्री के हाथ में से जलनवाले अन्नबलि को लेकर यहोवा के आगे हिलाकर वेदी के समीप पहुँचाए; 26 और याजक उस अन्नबलि में से उसका स्मरण दिलानेवाला भाग, अर्थात् मुट्ठी भर लेकर वेदी पर जलाए, और उसके बाद स्त्री को वह जल पिलाए। 27 और जब वह उसे वह जल पिला चुके, तब यदि वह अशुद्ध हुई हो और अपने पति का विश्वासघात किया हो, तो वह जल जो श्राप का कारण होता है उस स्त्री के पेट में जाकर कड़वा हो जाएगा, और उसका पेट फूलेगा, और उसकी जाँघ सड़ जाएगी, और उस स्त्री का नाम उसके लोगों के बीच श्रापित होगा। 28 पर यदि वह स्त्री अशुद्ध न हुई हो और शुद्ध ही हो, तो वह निर्दोष ठहरेगी और गर्भवती हो सकेगी।
29 “जलन की व्यवस्था यही है, चाहे कोई स्त्री अपने पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हो, 30 चाहे पुरुष के मन में जलन उत्पन्न हो और वह अपनी स्त्री पर जलने लगे; तो वह उसको यहोवा के सम्मुख खड़ा कर दे, और याजक उस पर यह सारी व्यवस्था पूरी करे। 31 तब पुरुष अधर्म से बचा रहेगा, और स्त्री अपने अधर्म का बोझ आप उठाएगी।”
<- गिनती 4गिनती 6 ->- a उसके लिये प्रायश्चित किया जाए: जो उसे दोष मुक्त करे।
- b जलन उत्पन्न हो: क्योंकि व्यभिचार विशेष करके सामाजिक व्यवस्था की नींव को अशुद्ध एवं ध्वंस करता हैं।
- c पेट फुलाए: अर्थात् ‘बाँझ’
- d कड़वे जल से मिटाकर: कि श्राप कड़वे जल में चला जाए
- e स्त्री को वह कड़वा जल पिलाए: यह उसके द्वारा काल्पनिक श्राप का स्वीकरण और उस पर उसका वास्तविक क्रियान्वन यदि वह दोषी है दोनों का स्वीकरण होगा।