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8
कोढ़ के रोगी को छूकर चंगा करना
1 जब यीशु उस पहाड़ से उतरा, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 2 और, एक कोढ़ी*कोढ़ी: कोढ़ एक संक्रामक रोग है जो त्वचा, श्लेष्मा झिल्ली, और तंत्रिकाओं को ग्रसित करता है, इस्राएल में कोढ़ी को समाज से बहिष्कृत और अशुद्ध माना जाता था। ने पास आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” 3 यीशु ने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ, और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा” और वह तुरन्त कोढ़ से शुद्ध हो गया। 4 यीशु ने उससे कहा, “देख, किसी से न कहना, परन्तु जाकर अपने आपको याजक को दिखा और जो चढ़ावा मूसा ने ठहराया है उसे चढ़ा, ताकि उनके लिये गवाही हो।”(लैव्य. 14:2,32)
सूबेदार के विश्वास पर यीशु की प्रशंसा
5 और जब वह कफरनहूमकफरनहूम: यह गलील सागर के उत्तरी सिरे पर स्थित एक शहर है। में आया तो एक सूबेदार ने उसके पास आकर उससे विनती की, 6 “हे प्रभु, मेरा सेवक घर में लकवे का मारा बहुत दुःखी पड़ा है।” 7 उसने उससे कहा, “मैं आकर उसे चंगा करूँगा।” 8 सूबेदार ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए, पर केवल मुँह से कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। 9 क्योंकि मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ, और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक से कहता हूँ, जा, तो वह जाता है; और दूसरे को कि आ, तो वह आता है; और अपने दास से कहता हूँ, कि यह कर, तो वह करता है।”

10 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और जो उसके पीछे आ रहे थे उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। 11 और मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत सारे पूर्व और पश्चिम से आकर अब्राहम और इसहाक और याकूब के साथ स्वर्ग के राज्य में बैठेंगे। 12 परन्तु राज्य के सन्तानराज्य के सन्तान: यहूदी सोचते थे कि उनकी परंपरा और धर्म का पालन उन्हें परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करवाएगाबाहर अंधकार में डाल दिए जाएँगे: वहाँ रोना और दाँतों का पीसना होगा।” 13 और यीशु ने सूबेदार से कहा, “जा, जैसा तेरा विश्वास है, वैसा ही तेरे लिये हो।” और उसका सेवक उसी समय चंगा हो गया।

पतरस के घर में अनेक रोगियों की चंगाई
14 और यीशु ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को तेज बुखार में पड़ा देखा। 15 उसने उसका हाथ छुआ और उसका ज्वर उतर गया; और वह उठकर उसकी सेवा करने लगी। 16 जब संध्या हुई तब वे उसके पास बहुत से लोगों को लाए जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और उसने उन आत्माओं को अपने वचन से निकाल दिया, और सब बीमारों को चंगा किया। 17 ताकि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हो: “उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।” (1 पत. 2:24)
यीशु का शिष्य बनने का मूल्य
18 यीशु ने अपने चारों ओर एक बड़ी भीड़ देखकर झील के उस पार जाने की आज्ञा दी। 19 और एक शास्त्री ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, जहाँ कहीं तू जाएगा, मैं तेरे पीछे-पीछे हो लूँगा।” 20 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तुमनुष्य के पुत्र§मनुष्य के पुत्र: मनुष्य का पुत्र यीशु के सन्दर्भ में काम में लिया गया है, वह तो “मनुष्य का पुत्र”, इस उक्ति से प्रकट होता है कि यीशु मसीह है और वह तत्व में मनुष्य है। (यूह.1:14; 1यूह.4:2) के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।” 21 एक और चेले ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे, कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” (1 राजा. 19:20,21) 22 यीशु ने उससे कहा, “तू मेरे पीछे हो ले; औरमुर्दों को अपने मुर्दे गाड़ने दे।”*मुर्दों को अपने मुर्दे गाड़ने दे: यहाँ वह शिष्य अपनी आत्मिक जिम्मेदारियों से बचने के लिए एक बहाना खोज रहा था कि वह अपने वृद्ध पिता की मृत्यु तक उनके पास रह पाए परन्तु यीशु की प्रतिक्रिया के अनुसार आत्मिकता की सर्वोच्च बुलाहट को टालना नहीं है क्योंकि सुसमाचार सुनाने से महत्त्वपूर्ण और कुछ नहीं है,
आँधी और तूफान को शान्त करना
23 जब वह नाव पर चढ़ा, तो उसके चेले उसके पीछे हो लिए। 24 और, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढँपने लगी; और वह सो रहा था। 25 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश हुए जाते हैं।” 26 उसने उनसे कहा, “हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो?” तब उसने उठकर आँधी और पानी को डाँटा, और सब शान्त हो गया। 27 और वे अचम्भा करके कहने लगे, “यह कैसा मनुष्य है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं।”
दुष्टात्माओं को सूअरों के झुण्ड में भेजना
28 जब वह उस पार गदरेनियों के क्षेत्र में पहुँचा, तो दो मनुष्य जिनमें दुष्टात्माएँ थीं कब्रों से निकलते हुए उसे मिले, जो इतने प्रचण्ड थे, कि कोई उस मार्ग से जा नहीं सकता था। 29 और, उन्होंने चिल्लाकर कहा, “हे परमेश्वर के पुत्र, हमारा तुझ से क्या काम? क्या तू समय से पहले हमें दुःख देने यहाँ आया है?” (लूका 4:34) 30 उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का झुण्ड चर रहा था। 31 दुष्टात्माओं ने उससे यह कहकर विनती की, “यदि तू हमें निकालता है, तो सूअरों के झुण्ड में भेज दे।” 32 उसने उनसे कहा, “जाओ!” और वे निकलकर सूअरों में घुस गई और सारा झुण्ड टीले पर से झपटकर पानी में जा पड़ा और डूब मरा। 33 और चरवाहे भागे, और नगर में जाकर ये सब बातें और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं; उनका सारा हाल कह सुनाया। 34 और सारे नगर के लोग यीशु से भेंट करने को निकल आए और उसे देखकर विनती की, कि हमारे क्षेत्र से बाहर निकल जा।

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