1 वह भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए। 2 और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा:
धन्य वचन
3“धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं,
क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
4“धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं,
क्योंकि वे शान्ति पाएँगे।
5“धन्य हैं वे, जो नम्र हैं,
क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।(भज. 37:11)
6“धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं,
क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे।
7“धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं,
क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
8“धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं,
क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
9“धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।
10“धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं,
क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
11“धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।12आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।
नमक और ज्योति से तुलना
13“तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।14तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता।15और लोग दीया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुँचता है।16उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें।
21“तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।’(निर्ग. 20:13) 22परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई कोनिकम्मा †निकम्मा: इसका मतलब “खाली सिर” है, यह दूसरे व्यक्ति के तिरस्कार के लिए इस्तेमाल में आनेवाला एक अपमान जनक उपनाम था।कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे ‘अरे मूर्ख’ वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा।23इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है,24तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।25जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग में है, उससे झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मुद्दई तुझे न्यायाधीश को सौंपे, और न्यायाधीश तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए।26मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तू पाई-पाई चुका न दे तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।
व्यभिचार के विषय में शिक्षा
27“तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’(व्यव. 5:18, निर्ग. 20:14) 28परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका।29यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।30और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उसको काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।
तलाक के विषय में शिक्षा
31“यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे, तो उसे त्यागपत्र दे।’(व्यव. 24:1-14) 32परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।
शपथ न खाना
33“फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, ‘झूठी शपथ न खाना, परन्तु परमेश्वर के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।’(व्यव. 23:21) 34परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है।(यशा. 66:1) 35न धरती की, क्योंकि वह उसके पाँवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है।(यशा. 66:1) 36अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है।37परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इससे अधिक होता है वह बुराई से होता है।
43“तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।(लैव्य. 19:18) 44परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो।(रोम. 12:14) 45जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी पर मेंह बरसाता है।46क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते?
47“और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?48इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।(लैव्य. 19:2)
aव्यवस्था: यह बाइबल की पहली पाँच पुस्तकों के सन्दर्भ में है जिनमें परमेश्वर की आज्ञाओं और नियमों का संकलन किया गया है। व्यवस्था के इस सम्पूर्ण संग्रह को तोराह कहा जाता था, इसमें परमेश्वर प्रदत्त नैतिकता और अनुष्ठान सम्बंधित नियम निहित थे।
bनिकम्मा: इसका मतलब “खाली सिर” है, यह दूसरे व्यक्ति के तिरस्कार के लिए इस्तेमाल में आनेवाला एक अपमान जनक उपनाम था।
cकुर्ता: यह लम्बी बाँह का घुटनों तक का अधोवस्त्र होता था, जैसे आज के समय में पहनी जानेवाली कमीज़।
dअंगरखा: अर्थात् ऊपरी परिधान, एक बड़ा वर्गाकार ऊनी बागा। गरीब लोग केवल कुर्ता पहनते थे। अमीरों में कई लोग ऊपरी परिधान के अलावा दो कुर्ते पहनते थे।