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मत्ती रचित सुसमाचार
लेखक
इस पुस्तक का लेखक मत्ती, चुंगी लेनेवाला मनुष्य था, जिसने यीशु के अनुसरण हेतु अपना यह व्यवसाय त्याग दिया था (9:9-13)। मरकुस और लूका उसे अपनी पुस्तकों में लेवी नाम से पुकारते हैं। उसके नाम का अर्थ है, “परमेश्वर का वरदान”।
आरम्भिक कलीसिया के प्राचीन, मत्ती को जो बारह शिष्यों में से एक था, इस पुस्तक का एकमत होकर लेखक मानते थे। मत्ती यीशु की सेवा की सब घटनाओं का आँखों देखा गवाह था। अन्य शुभ सन्देश वृत्तान्तों के साथ मत्ती की पुस्तक की तुलना करने पर स्पष्ट प्रकट होता है कि प्रेरितों द्वारा दी गई मसीह की गवाही, अखण्ड एवं सत्य है।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग ई.स. 50 - 70
मत्ती की पुस्तक का यहूदी स्वरूप देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुस्तक पलिश्तीन या सीरिया में लिखी गई थी। परन्तु अनेकों के विचार में इसकी रचना अन्ताकिया में की गई थी।
प्रापक
इस पुस्तक की भाषा यूनानी है, इसलिए मत्ती का अभिप्राय सम्भवतः यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के लिए सुसमाचार लिखने का रहा होगा। इस कारण पुस्तक की सामग्री के अधिकांश भाग यहूदी पाठकों की ओर संकेत करते हैं। मत्ती के विषय हैं: पुराने नियम की पूर्ति, यीशु की वंशावली का अब्राहम से आरम्भ (1:1-17), उसके द्वारा यहूदियों की शब्दावली का उपयोग (उदाहरणार्थ, “स्वर्ग का राज्य”, जहाँ स्वर्ग शब्द का उपयोग परमेश्वर के नाम के उपयोग में संकोच को प्रकट करता है और यीशु को “दाऊद का पुत्र” कहना- 1:1, 9:27; 12:23; 15:22; 20:30-31; 21:9,15; 22:41-45) आदि बातों से प्रकट होता है कि मत्ती के ध्यान में यहूदी समुदाय अधिक था।
उद्देश्य
अपनी पुस्तक में शुभ सन्देश लिखने का मत्ती का अभिप्राय यह था कि यहूदी पाठक यीशु को मसीह स्वीकार करें। यहाँ मत्ती का मुख्य उद्देश्य है कि परमेश्वर के राज्य को मानवजाति के मध्य लाने पर बल दिया जाए। वह बल देता है कि यीशु एक राजा है जो पुराने नियम की भविष्यद्वाणियों और आशाओं को पूरा करता है (मत्ती 1:1; 6:16; 20:28)।
मूल विषय
यीशु—यहूदियों का राजा
रूपरेखा
1. यीशु का जन्म — 1:1-2:23
2. यीशु की गलील क्षेत्र में सेवा — 3:1-18:35
3. यीशु की यहूदिया में सेवा — 19:1-20:34
4. यहूदिया में यीशु के अन्तिम दिन — 21:1-27:66
5. अन्तिम घटनाएँ — 28:1-20

1
यीशु मसीह की वंशावली
1 अब्राहम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, यीशु मसीह*यीशु मसीह: यीशु शब्द का अर्थ है “प्रभु उद्धारकर्ता” (मसीह, इब्रानी शब्द) है, जिसका अर्थ है “अभिषिक्त” की वंशावलीवंशावली: अर्थात् पीढ़ियाँ-वंशजों का पारिवारिक अभिलेख।

2 अब्राहम से इसहाक उत्पन्न हुआ, इसहाक से याकूब उत्पन्न हुआ, और याकूब से यहूदा और उसके भाई उत्पन्न हुए। 3 यहूदा और तामार से पेरेस व जेरह उत्पन्न हुए, और पेरेस से हेस्रोन उत्पन्न हुआ, और हेस्रोन से एराम उत्पन्न हुआ। 4 एराम से अम्मीनादाब उत्पन्न हुआ, और अम्मीनादाब से नहशोन, और नहशोन से सलमोन उत्पन्न हुआ। (रूत 4:19,20) 5 सलमोन और राहाब से बोअज उत्पन्न हुआ, और बोअज और रूत से ओबेद उत्पन्न हुआ, और ओबेद से यिशै उत्पन्न हुआ। 6 और यिशै से दाऊद राजा उत्पन्न हुआ।

और दाऊद से सुलैमान उस स्त्री से उत्पन्न हुआ जो पहले ऊरिय्याह की पत्नी थी। (2 शमू. 12:24) 7 सुलैमान से रहबाम उत्पन्न हुआ, और रहबाम से अबिय्याह उत्पन्न हुआ, और अबिय्याह से आसा उत्पन्न हुआ। 8 आसा से यहोशाफात उत्पन्न हुआ, और यहोशाफात से योराम उत्पन्न हुआ, और योराम से उज्जियाह उत्पन्न हुआ। 9 उज्जियाह से योताम उत्पन्न हुआ, योताम से आहाज उत्पन्न हुआ, और आहाज से हिजकिय्याह उत्पन्न हुआ। 10 हिजकिय्याह से मनश्शे उत्पन्न हुआ, मनश्शे से आमोन उत्पन्न हुआ, और आमोन से योशिय्याह उत्पन्न हुआ। 11 और बन्दी होकर बाबेल जाने के समय में योशिय्याह से यकुन्याहयकुन्याह: या कोन्याह या यहोयाकीम जो 597 ई. पू. में, यिर्मयाह के समय, यहूदा का राजा था जिसे नबूकदनेस्सर बन्दी बनाकर ले गया था (यिर्म. 22: 24, 28; 37:1) , और उसके भाई उत्पन्न हुए। (यिर्म. 27:20)

12 बन्दी होकर बाबेल पहुँचाए जाने के बाद यकुन्याह से शालतीएल उत्पन्न हुआ, और शालतीएल से जरुब्बाबेल उत्पन्न हुआ। 13 जरुब्बाबेल से अबीहूद उत्पन्न हुआ, अबीहूद से एलयाकीम उत्पन्न हुआ, और एलयाकीम से अजोर उत्पन्न हुआ। 14 अजोर से सादोक उत्पन्न हुआ, सादोक से अखीम उत्पन्न हुआ, और अखीम से एलीहूद उत्पन्न हुआ। 15 एलीहूद से एलीआजर उत्पन्न हुआ, एलीआजर से मत्तान उत्पन्न हुआ, और मत्तान से याकूब उत्पन्न हुआ। 16 याकूब से यूसुफ उत्पन्न हुआ, जो मरियम का पति था, और मरियम से§मरियम से: यह एक स्त्रीलिंग शब्द है, जो स्पष्ट करता है कि यीशु केवल मरियम द्वारा जन्मा था, न कि मरियम और यूसुफ से, यह यीशु का कुँवारी से जन्म का एक स्पष्ट और ठोस सबूत है। यीशु उत्पन्न हुआ जो मसीह कहलाता है।

17 अब्राहम से दाऊद तक सब चौदह पीढ़ी हुई, और दाऊद से बाबेल को बन्दी होकर पहुँचाए जाने तक चौदह पीढ़ी, और बन्दी होकर बाबेल को पहुँचाए जाने के समय से लेकर मसीह तक चौदह पीढ़ी हुई।

यीशु मसीह का जन्म
18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उसकी माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उनके इकट्ठे होने के पहले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। 19 अतः उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। 20 जब वह इन बातों की सोच ही में था तो परमेश्वर का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, “हे यूसुफ! दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। 21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु*यीशु: उद्धारकर्ता रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।”

22 यह सब कुछ इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था, वह पूरा हो (यशा. 7:14) 23 “देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा,” जिसका अर्थ है - परमेश्वर हमारे साथ। 24 तब यूसुफ नींद से जागकर परमेश्वर के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया। 25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा।

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