14 “इसलिए अब यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा खराई और सच्चाई से करो; और जिन देवताओं की सेवा तुम्हारे पुरखा फरात के उस पार और मिस्र में करते थे, उन्हें दूर करके यहोवा की सेवा करो। 15 और यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्हें बुरी लगे, तो आज चुन लो*आज चुन लो: सच्चे दिल से एवं निष्ठावान परमेश्वर की सेवा हृदय के मुक्तभाव एवं स्वेच्छा से ही होती हैं। कि तुम किसकी सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियों के देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो; परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूँगा।”
16 तब लोगों ने उत्तर दिया, “यहोवा को त्याग कर दूसरे देवताओं की सेवा करनी हम से दूर रहे; 17 क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा वही है जो हमको और हमारे पुरखाओं को दासत्व के घर, अर्थात् मिस्र देश से निकाल ले आया, और हमारे देखते बड़े-बड़े आश्चर्यकर्म किए, और जिस मार्ग पर और जितनी जातियों के मध्य में से हम चले आते थे उनमें हमारी रक्षा की; 18 और हमारे सामने से इस देश में रहनेवाली एमोरी आदि सब जातियों को निकाल दिया है; इसलिए हम भी यहोवा की सेवा करेंगे, क्योंकि हमारा परमेश्वर वही है।” (प्रेरि. 7:45)
19 यहोशू ने लोगों से कहा, “तुम से यहोवा की सेवा नहीं हो सकती; क्योंकि वह पवित्र परमेश्वर है; वह जलन रखनेवाला परमेश्वर है; वह तुम्हारे अपराध और पाप क्षमा न करेगा। 20 यदि तुम यहोवा को त्याग कर पराए देवताओं की सेवा करने लगोगे, तो यद्यपि वह तुम्हारा भला करता आया है तो भी वह फिरकर तुम्हारी हानि करेगा और तुम्हारा अन्त भी कर डालेगा।” 21 लोगों ने यहोशू से कहा, “नहीं; हम यहोवा ही की सेवा करेंगे।” 22 यहोशू ने लोगों से कहा, “तुम आप ही अपने साक्षी हो कि तुम ने यहोवा की सेवा करनी चुन ली है।” उन्होंने कहा, “हाँ, हम साक्षी हैं।” 23 यहोशू ने कहा, “अपने बीच में से पराए देवताओं को दूर करके अपना-अपना मन इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर लगाओ।” 24 लोगों ने यहोशू से कहा, “हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही की सेवा करेंगे, और उसी की बात मानेंगे।” 25 तब यहोशू ने उसी दिन उन लोगों से वाचा बँधाई†उन लोगों से वाचा बँधाई: अर्थात् उसने सीनै पर्वत पर बाँधी गई वाचा को दोहराया एवं नए रूप से अंगीकार करवाया जैसे मूसा ने पहले किया था (व्यव. 29:1) , और शेकेम में उनके लिये विधि और नियम ठहराया।
26 यह सारा वृत्तान्त यहोशू ने परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक में लिख दिया; और एक बड़ा पत्थर चुनकर वहाँ उस बांज वृक्ष के तले खड़ा किया, जो यहोवा के पवित्रस्थान में था। 27 तब यहोशू ने सब लोगों से कहा, “सुनो, यह पत्थर हम लोगों का साक्षी रहेगा, क्योंकि जितने वचन यहोवा ने हम से कहे हैं उन्हें इसने सुना है; इसलिए यह तुम्हारा साक्षी रहेगा, ऐसा न हो कि तुम अपने परमेश्वर से मुकर जाओ।” 28 तब यहोशू ने लोगों को अपने-अपने निज भाग पर जाने के लिये विदा किया।
31 और यहोशू के जीवन भर, और जो वृद्ध लोग यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और जानते थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे-कैसे काम किए थे, उनके भी जीवन भर इस्राएली यहोवा ही की सेवा करते रहे।
32 फिर यूसुफ की हड्डियाँ जिन्हें इस्राएली मिस्र से ले आए थे वे शेकेम की भूमि के उस भाग में गाड़ी गईं, जिसे याकूब ने शेकेम के पिता हमोर के पुत्रों से एक सौ चाँदी के सिक्कों में मोल लिया था; इसलिए वह यूसुफ की सन्तान का निज भाग हो गया। (यूह. 4:5, प्रेरि. 7:16)
33 और हारून का पुत्र एलीआजर भी मर गया; और उसको एप्रैम के पहाड़ी देश में उस पहाड़ी पर मिट्टी दी गई, जो उसके पुत्र पीनहास के नाम पर गिबत्पीनहास कहलाती है और उसको दे दी गई थी।
<- यहोशू 23