12 तब यहोवा का यह वचन यिर्मयाह के पास पहुँचा। 13 इस्राएल का परमेश्वर सेनाओं का यहोवा यह कहता है: “जाकर यहूदा देश के लोगों और यरूशलेम नगर के निवासियों से कह, यहोवा की यह वाणी है, क्या तुम शिक्षा मानकर मेरी न सुनोगे? 14 देखो, रेकाब के पुत्र यहोनादाब ने जो आज्ञा अपने वंश को दी थी कि तुम दाखमधु न पीना वह तो मानी गई है यहाँ तक कि आज के दिन भी वे लोग कुछ नहीं पीते, वे अपने पुरखा की आज्ञा मानते हैं; पर यद्यपि मैं तुम से बड़े यत्न से कहता आया हूँ, तो भी तुम ने मेरी नहीं सुनी। 15 मैं तुम्हारे पास अपने सारे दास नबियों को बड़ा यत्न करके यह कहने को भेजता आया हूँ, ‘अपनी बुरी चाल से फिरो, और अपने काम सुधारो, और दूसरे देवताओं के पीछे जाकर उनकी उपासना मत करो तब तुम इस देश में जो मैंने तुम्हारे पितरों को दिया था और तुम को भी दिया है, बसने पाओगे।’ पर तुम ने मेरी ओर कान नहीं लगाया न मेरी सुनी है। 16 देखो, रेकाब के पुत्र यहोनादाब के वंश ने तो अपने पुरखा की आज्ञा को मान लिया पर तुम ने मेरी नहीं सुनी। 17 इसलिए सेनाओं का परमेश्वर यहोवा, जो इस्राएल का परमेश्वर है, यह कहता है: देखो, यहूदा देश और यरूशलेम नगर के सारे निवासियों पर जितनी विपत्ति डालने की मैंने चर्चा की है वह उन पर अब डालता हूँ; क्योंकि मैंने उनको सुनाया पर उन्होंने नहीं सुना, मैंने उनको बुलाया पर उन्होंने उत्तर न दिया।”
18 पर रेकाबियों के घराने से यिर्मयाह ने कहा, “इस्राएल का परमेश्वर सेनाओं का यहोवा तुम से यह कहता है: इसलिए कि तुम ने जो अपने पुरखा यहोनादाब की आज्ञा मानी, वरन् उसकी सब आज्ञाओं को मान लिया और जो कुछ उसने कहा उसके अनुसार काम किया है, 19 इसलिए इस्राएल का परमेश्वर सेनाओं का यहोवा यह कहता है: रेकाब के पुत्र योनादाब के वंश में सदा ऐसा जन पाया जाएगा जो मेरे सम्मुख खड़ा रहे।”
<- यिर्मयाह 34यिर्मयाह 36 ->- a याजन्याह: याजन्याह यरूशलेम में शरण लेनेवाले गोत्र का प्रधान था।