3 जो परदेशी यहोवा से मिल गए हैं, वे न कहें, “यहोवा हमें अपनी प्रजा से निश्चय अलग करेगा;” और खोजे भी न कहें, “हम तो सूखे वृक्ष हैं*हम तो सूखे वृक्ष हैं: सूखा वृक्ष ऊसर, अनुपयोगी और फलहीन दशा दर्शाता है। यहाँ कहने का अर्थ है कि अब से आगे वे धार्मिक एवं नागरिक अयोग्यताओं के अधीन नहीं होंगे जिसके अधीन वे अब तक रहे।।” 4 “क्योंकि जो खोजे मेरे विश्रामदिन को मानते और जिस बात से मैं प्रसन्न रहता हूँ उसी को अपनाते और मेरी वाचा का पालन करते हैं,” उनके विषय यहोवा यह कहता है, 5 “मैं अपने भवन और अपनी शहरपनाह के भीतर उनको ऐसा नाम दूँगा जो पुत्र-पुत्रियों से कहीं उत्तम होगा; मैं उनका नाम सदा बनाए रखूँगा और वह कभी न मिटाया जाएगा।
6 “परदेशी भी जो यहोवा के साथ इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें और उसके दास हो जाएँ, जितने विश्रामदिन को अपवित्र करने से बचे रहते और मेरी वाचा को पालते हैं, 7 उनको मैं अपने पवित्र पर्वत पर ले आकर अपने प्रार्थना के भवन में आनन्दित करूँगा; उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर ग्रहण किए जाएँगे; क्योंकि मेरा भवन सब देशों के लोगों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा। (मला. 1:11, मर. 11:17, 1 पत. 2:5) 8 प्रभु यहोवा, जो निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठे करनेवाला है, उसकी यह वाणी है कि जो इकट्ठे किए गए हैं उनके साथ मैं औरों को भी इकट्ठे करके मिला दूँगा।” (यूह. 10:16)
- a हम तो सूखे वृक्ष हैं: सूखा वृक्ष ऊसर, अनुपयोगी और फलहीन दशा दर्शाता है। यहाँ कहने का अर्थ है कि अब से आगे वे धार्मिक एवं नागरिक अयोग्यताओं के अधीन नहीं होंगे जिसके अधीन वे अब तक रहे।
- b वे चरवाहे हैं जिनमें समझ ही नहीं: जो मनुष्यों की आवश्यकताओं के प्रति उदासीन हैं और जो समझ नहीं पाते कि उनसे क्या अपेक्षा की गई है।