4 हमारा छुटकारा देनेवाले का नाम सेनाओं का यहोवा और इस्राएल का पवित्र है।
5 हे कसदियों की बेटी, चुपचाप बैठी रह और अंधियारे में जा; क्योंकि तू अब राज्य-राज्य की स्वामिनी न कहलाएगी। 6 मैंने अपनी प्रजा से क्रोधित होकर अपने निज भाग को अपवित्र ठहराया और तेरे वश में कर दिया; तूने उन पर कुछ दया न की; बूढ़ों पर तूने अपना अत्यन्त भारी जूआ रख दिया। 7 तूने कहा, “मैं सर्वदा स्वामिनी बनी रहूँगी,” इसलिए तूने अपने मन में इन बातों पर विचार न किया और यह भी न सोचा कि उनका क्या फल होगा।
8 इसलिए सुन, तू जो राग-रंग में उलझी हुई निडर बैठी रहती है और मन में कहती है कि “मैं ही हूँ, और मुझे छोड़ कोई दूसरा नहीं; मैं विधवा के समान न बैठूँगी और न मेरे बाल-बच्चे मिटेंगे।” (सप. 2:15, प्रका. 18:7) 9 सुन, ये दोनों दुःख अर्थात् लड़कों का जाता रहना और विधवा हो जाना, अचानक एक ही दिन तुझ पर आ पड़ेंगे। तेरे बहुत से टोन्हों और तेरे भारी-भारी तंत्र-मंत्रों के रहते भी ये तुझ पर अपने पूरे बल से आ पड़ेंगे। (प्रका. 18:8,23)
10 तूने अपनी दुष्टता पर भरोसा रखा†तूने अपनी दुष्टता पर भरोसा रखा: यहाँ निःसंदेह, दुष्टता का अर्थ घमण्ड है अर्थात् उसने यह सोचा था कि वह इनके द्वारा अन्य देशों पर अपनी श्रेष्ठता एवं प्रभुता बनाये रखेगा।, तूने कहा, “मुझे कोई नहीं देखता;” तेरी बुद्धि और ज्ञान ने तुझे बहकाया और तूने अपने मन में कहा, “मैं ही हूँ और मेरे सिवाय कोई दूसरा नहीं।” 11 परन्तु तेरी ऐसी दुर्गति होगी जिसका मंत्र तू नहीं जानती, और तुझ पर ऐसी विपत्ति पड़ेगी कि तू प्रायश्चित करके उसका निवारण न कर सकेगी; अचानक विनाश तुझ पर आ पड़ेगा जिसका तुझे कुछ भी पता नहीं। (1 थिस्स. 5:3)
12 अपने तंत्र-मंत्र और बहुत से टोन्हों को, जिनका तूने बाल्यावस्था ही से अभ्यास किया है, उपयोग में ला, सम्भव है तू उनसे लाभ उठा सके या उनके बल से स्थिर रह सके। 13 तू तो युक्ति करते-करते थक गई है; अब तेरे ज्योतिषी जो नक्षत्रों को ध्यान से देखते और नये-नये चाँद को देखकर होनहार बताते हैं, वे खड़े होकर तुझे उन बातों से बचाएँ जो तुझ पर घटेंगी।
14 देख, वे भूसे के समान होकर आग से भस्म हो जाएँगे; वे अपने प्राणों को ज्वाला से न बचा सकेंगे। वह आग तापने के लिये नहीं, न ऐसी होगी जिसके सामने कोई बैठ सके! 15 जिनके लिये तू परिश्रम करती आई है वे सब तेरे लिये वैसे ही होंगे, और जो तेरी युवावस्था से तेरे संग व्यापार करते आए हैं, उनमें से प्रत्येक अपनी-अपनी दिशा की ओर चले जाएँगे; तेरा बचानेवाला कोई न रहेगा।
<- यशायाह 46यशायाह 48 ->- a तेरी नग्नता उघाड़ी जाएगी: यह नगर के सर्वनाश की दयनीय दशा को दर्शाता है। उसका घमण्ड समाप्त हो जाएगा और उसकी स्थिति ऐसी होगी कि उसके निवासी अपमान एवं लज्जा से भर जाएगे।
- b तूने अपनी दुष्टता पर भरोसा रखा: यहाँ निःसंदेह, दुष्टता का अर्थ घमण्ड है अर्थात् उसने यह सोचा था कि वह इनके द्वारा अन्य देशों पर अपनी श्रेष्ठता एवं प्रभुता बनाये रखेगा।