15 हे इस्राएल के परमेश्वर, हे उद्धारकर्ता! निश्चय तू ऐसा परमेश्वर है जो अपने को गुप्त रखता है। (रोम. 11:33) 16 मूर्तियों के गढ़नेवाले सब के सब लज्जित और चकित होंगे, वे सब के सब व्याकुल होंगे। 17 परन्तु इस्राएल यहोवा के द्वारा युग-युग का उद्धार पाएगा; तुम युग-युग वरन् अनन्तकाल तक न तो कभी लज्जित और न कभी व्याकुल होंगे। (रोम. 10:11, योए. 2:26,27, इब्रा. 5:9)
18 क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यह कहता है, “मैं यहोवा हूँ, मेरे सिवाय दूसरा और कोई नहीं है। 19 मैंने न किसी गुप्त स्थान में, न अंधकार देश के किसी स्थान में बातें की; मैंने याकूब के वंश से नहीं कहा, ‘मुझे व्यर्थ में ढूँढ़ो†मुझे व्यर्थ में ढूँढ़ो: कहने का अर्थ है कि परमेश्वर की सेवा करना व्यर्थ और निरर्थक नहीं रहा है क्योंकि वह उनका रक्षक एवं मित्र रहा है और उनका उसके निकट जाकर अपनी आवश्यकताएँ प्रस्तुत करना व्यर्थ नहीं था।।’ मैं यहोवा सत्य ही कहता हूँ, मैं उचित बातें ही बताता हूँ।
20 “हे जाति-जाति में से बचे हुए लोगों, इकट्ठे होकर आओ, एक संग मिलकर निकट आओ! वह जो अपनी लकड़ी की खोदी हुई मूरतें लिए फिरते हैं और ऐसे देवता से जिससे उद्धार नहीं हो सकता, प्रार्थना करते हैं, वे अज्ञान हैं। 21 तुम प्रचार करो और उनको लाओ; हाँ, वे आपस में सम्मति करें किसने प्राचीनकाल से यह प्रगट किया? किसने प्राचीनकाल में इसकी सूचना पहले ही से दी? क्या मैं यहोवा ही ने यह नहीं किया? इसलिए मुझे छोड़ कोई और दूसरा परमेश्वर नहीं है, धर्मी और उद्धारकर्ता परमेश्वर मुझे छोड़ और कोई नहीं है।
22 “हे पृथ्वी के दूर-दूर के देश के रहनेवालों, तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही परमेश्वर हूँ और दूसरा कोई नहीं है।
23 मैंने अपनी ही शपथ खाई, धार्मिकता के अनुसार मेरे मुख से यह वचन निकला है और वह नहीं टलेगा, ‘प्रत्येक घुटना मेरे सम्मुख झुकेगा और प्रत्येक के मुख से मेरी ही शपथ खाई जाएगी।’ (इब्रा. 6:13, रोम. 14:11, फिलि. 2:10,11)
24 “लोग मेरे विषय में कहेंगे, केवल यहोवा ही में धार्मिकता और शक्ति है। उसी के पास लोग आएँगे, और जो उससे रूठे रहेंगे, उन्हें लज्जित होना पड़ेगा। 25 इस्राएल के सारे वंश के लोग यहोवा ही के कारण धर्मी ठहरेंगे, और उसकी महिमा करेंगे।”
<- यशायाह 44यशायाह 46 ->- a मैं तेरे आगे-आगे चलूँगा: विजय का मार्ग तैयार करने के लिए, यह सिद्ध करने हेतु कि पृथ्वी के घमण्डी विजेताओं की विजय परमेश्वर के प्रावधान ही है। यहाँ निहित विचार है, तुम्हारी विजय यात्रा को घटाने या उसका विरोध करनेवाली हर एक बाधा को मैं दूर कर दूँगा।
- b मुझे व्यर्थ में ढूँढ़ो: कहने का अर्थ है कि परमेश्वर की सेवा करना व्यर्थ और निरर्थक नहीं रहा है क्योंकि वह उनका रक्षक एवं मित्र रहा है और उनका उसके निकट जाकर अपनी आवश्यकताएँ प्रस्तुत करना व्यर्थ नहीं था।