6 तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्राम में प्रवेश करें, और इस्राएलियों को, जिन्हें उसका सुसमाचार पहले सुनाया गया, उन्होंने आज्ञा न मानने के कारण उसमें प्रवेश न किया। 7 तो फिर वह किसी विशेष दिन को ठहराकर इतने दिन के बाद दाऊद की पुस्तक में उसे ‘आज का दिन’ कहता है, जैसे पहले कहा गया,
8 और यदि यहोशू उन्हें विश्राम में प्रवेश करा लेता, तो उसके बाद दूसरे दिन की चर्चा न होती। (व्यव. 31:7, यहो. 22:4) 9 इसलिए जान लो कि परमेश्वर के लोगों के लिये सब्त का विश्राम बाकी है। 10 क्योंकि जिसने उसके विश्राम में प्रवेश किया है, उसने भी परमेश्वर के समान अपने कामों को पूरा करके विश्राम किया है। (प्रका. 14:13, उत्प. 2:2) 11 इसलिए हम उस विश्राम में प्रवेश करने का प्रयत्न करें, ऐसा न हो, कि कोई जन उनके समान आज्ञा न मानकर गिर पड़े। (इब्रा. 4:1, 2 पत. 1:10,11) 12 क्योंकि परमेश्वर का वचन†परमेश्वर का वचन: परमेश्वर के वचन की खोज, मर्मज्ञ से बचकर कोई भाग नहीं रह सकता है। उस सत्य में यह दिखाने की शक्ति है कि मनुष्य क्या है। जीवित, प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत तेज है, प्राण, आत्मा को, गाँठ-गाँठ, और गूदे-गूदे को अलग करके, आर-पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है। (यिर्म. 23:29, यशा. 55:11) 13 और सृष्टि की कोई वस्तु परमेश्वर से छिपी नहीं है वरन् जिसे हमें लेखा देना है, उसकी आँखों के सामने सब वस्तुएँ खुली और प्रगट हैं।
- a उसके विश्राम में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा: परमेश्वर का विश्राम, संसार का विश्राम जहाँ वह निवास करता हैं। इसे “उसका” विश्राम कहा जाता हैं, क्योंकि यह वही है जो वह आनन्द लेता है।
- b परमेश्वर का वचन: परमेश्वर के वचन की खोज, मर्मज्ञ से बचकर कोई भाग नहीं रह सकता है। उस सत्य में यह दिखाने की शक्ति है कि मनुष्य क्या है।
- c क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुःखी न हो सके: हमारे पास वह एक हैं जो हमारे कष्टों में सहानुभूति रखने के लिये बहुत ही योग्य हैं, इसलिए हम परीक्षाओं में सहायता और आश्रय के लिये देख सकते हैं।