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3
मूसा विश्वासयोग्य दास: मसीह विश्वासयोग्य पुत्र
1 इसलिए, हे पवित्र भाइयों, तुम जो स्वर्गीय बुलाहट में भागी हो, उस प्रेरित और महायाजक यीशु पर जिसे हम अंगीकार करते हैं ध्यान करो। 2 जो अपने नियुक्त करनेवाले के लिये विश्वासयोग्य था, जैसा मूसा भी परमेश्वर के सारे घर में था। 3 क्योंकि यीशु मूसा से इतना बढ़कर महिमा के योग्य समझा गया है, जितना कि घर का बनानेवाला घर से बढ़कर आदर रखता है। 4 क्योंकि हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, पर जिसने सब कुछ बनाया वह परमेश्वर है*पर जिसने सब कुछ बनाया वह परमेश्वर है: यह स्पष्ट हैं कि हर घर को बनानेवाला कोई न कोई होता हैं, और समान रूप से स्पष्ट है कि परमेश्वर सब कुछ को बनानेवाला हैं।5 मूसा तो परमेश्वर के सारे घर में सेवक के समान विश्वासयोग्य रहा, कि जिन बातों का वर्णन होनेवाला था, उनकी गवाही दे। (गिन. 12:7) 6 पर मसीह पुत्र के समान परमेश्वर के घर का अधिकारी हैपर मसीह पुत्र के समान परमेश्वर के घर का अधिकारी है: परमेश्वर का पूरा घराना या परिवार के लिए वह एक ही सम्बंध बनाता हैं जो एक परिवार में एक पुत्र और उत्तराधिकारी, घर के लिए करता है।, और उसका घर हम हैं, यदि हम साहस पर, और अपनी आशा के गर्व पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।
अविश्वास के प्रति चेतावनी
7 इसलिए जैसा पवित्र आत्मा कहता है,
“यदि आज तुम उसका शब्द सुनो,
8 तो अपने मन को कठोर न करो,
जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और
परीक्षा के दिन जंगल में किया था। (निर्ग. 17:7, गिन. 20:2,5,13)
9 जहाँ तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे जाँचकर परखा
और चालीस वर्ष तक मेरे काम देखे।
10 इस कारण मैं उस समय के लोगों से क्रोधित रहा,
और कहा, ‘इनके मन सदा भटकते रहते हैं,
और इन्होंने मेरे मार्गों को नहीं पहचाना।’
11 तब मैंने क्रोध में आकर शपथ खाई,
‘वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएँगे।’ ” (गिन. 14:21-23, व्यव. 1:34,35)

12 हे भाइयों, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीविते परमेश्वर से दूर हटा ले जाए। 13 वरन् जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए। 14 क्योंकि हम मसीह के भागीदार हुए हैंमसीह के भागीदार हुए हैं: हम आत्मिक रूप से उद्धारकर्ता से मिले हुए हैं। हम उसके साथ एक हो जाते हैं। हम उसकी आत्मा और उसके अंश का भाग ले लेते हैं। , यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें। 15 जैसा कहा जाता है,

“यदि आज तुम उसका शब्द सुनो,
तो अपने मनों को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय किया था।”

16 भला किन लोगों ने सुनकर भी क्रोध दिलाया? क्या उन सब ने नहीं जो मूसा के द्वारा मिस्र से निकले थे? 17 और वह चालीस वर्ष तक किन लोगों से क्रोधित रहा? क्या उन्हीं से नहीं, जिन्होंने पाप किया, और उनके शव जंगल में पड़े रहे? (गिन. 14:29) 18 और उसने किन से शपथ खाई, कि तुम मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाओगे: केवल उनसे जिन्होंने आज्ञा न मानी? (भज. 106:24-26) 19 इस प्रकार हम देखते हैं, कि वे अविश्वास के कारण प्रवेश न कर सके।

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