7 तुम दुःख को अनुशासन समझकर सह लो; परमेश्वर तुम्हें पुत्र जानकर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिसकी ताड़ना पिता नहीं करता? (नीति. 3:11,12, व्यव. 8:5, 2 शमू. 7:14) 8 यदि वह ताड़ना जिसके भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे! 9 फिर जबकि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे और हमने उनका आदर किया, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी अधीन न रहें जिससे हम जीवित रहें। 10 वे तो अपनी-अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उसकी पवित्रता के भागी हो जाएँ।
14 सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा†पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा: अपनी अभिलाषाओं से संघर्ष और युद्ध की भावना को मानने के बजाय, पवित्र होने के लिये अपना उद्देश्य बनाओ।। (1 पत. 3:11, भज. 34:14) 15 और ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूटकर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएँ। (2 यूह. 1:8, व्यव. 29:18) 16 ऐसा न हो, कि कोई जन व्यभिचारी, या एसाव के समान अधर्मी हो, जिसने एक बार के भोजन के बदले अपने पहलौठे होने का पद बेच डाला। (कुलु. 3:5, उत्प. 25:31-34) 17 तुम जानते तो हो, कि बाद में जब उसने आशीष पानी चाही, तो अयोग्य गिना गया, और आँसू बहा बहाकर खोजने पर भी मन फिराव का अवसर उसे न मिला।
18 तुम तो उस पहाड़ के पास जो छुआ जा सकता था और आग से प्रज्वलित था, और काली घटा, और अंधेरा, और आँधी के पास। 19 और तुरही की ध्वनि, और बोलनेवाले के ऐसे शब्द के पास नहीं आए, जिसके सुननेवालों ने विनती की, कि अब हम से और बातें न की जाएँ। (निर्ग. 20:18-21, व्यव. 5:23,25) 20 क्योंकि वे उस आज्ञा को न सह सके “यदि कोई पशु भी पहाड़ को छूए, तो पथराव किया जाए।” (निर्ग. 19:12-13) 21 और वह दर्शन ऐसा डरावना था, कि मूसा ने कहा, “मैं बहुत डरता और काँपता हूँ।” (व्यव. 9:19)
22 पर तुम सिय्योन के पहाड़ के पास, और जीविते परमेश्वर के नगर स्वर्गीय यरूशलेम के पास और लाखों स्वर्गदूतों, 23 और उन पहिलौठों की साधारण सभा और कलीसिया जिनके नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं और सब के न्यायी परमेश्वर के पास, और सिद्ध किए हुए धर्मियों की आत्माओं, (भज. 50:6, कुलु. 1:12) 24 और नई वाचा के मध्यस्थ यीशु, और छिड़काव के उस लहू के पास आए हो, जो हाबिल के लहू से उत्तम बातें कहता है।
25 सावधान रहो, और उस कहनेवाले से मुँह न फेरो, क्योंकि वे लोग जब पृथ्वी पर के चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर न बच सके, तो हम स्वर्ग पर से चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर कैसे बच सकेंगे? 26 उस समय तो उसके शब्द ने पृथ्वी को हिला दिया पर अब उसने यह प्रतिज्ञा की है, “एक बार फिर मैं केवल पृथ्वी को नहीं, वरन् आकाश को भी हिला दूँगा।” (हाग्गै. 2:6, न्याय. 5:4, भज. 68:8) 27 और यह वाक्य ‘एक बार फिर’ इस बात को प्रगट करता है, कि जो वस्तुएँ हिलाई जाती हैं, वे सृजी हुई वस्तुएँ होने के कारण टल जाएँगी; ताकि जो वस्तुएँ हिलाई नहीं जातीं, वे अटल बनी रहें। (हाग्गै 2:6) 28 इस कारण हम इस राज्य को पाकर जो हिलने का नहीं‡इस कारण हम इस राज्य को पाकर जो हिलने का नहीं: हम उस राज्य से सम्बंध रखते हैं जो स्थायी और अपरिवर्तनीय है। जिसका अर्थ हैं, छुटकारा देनेवाले का राज्य जिसका अन्त कभी न होगा।, उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिसके द्वारा हम भक्ति, और भय सहित, परमेश्वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिससे वह प्रसन्न होता है। 29 क्योंकि हमारा परमेश्वर भस्म करनेवाली आग है। (व्यव. 4:24, व्यव. 9:3, यशा. 33:14)
<- इब्रानियों 11इब्रानियों 13 ->- a विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले: वह विश्वास का या परमेश्वर में भरोसा का प्रथम और अन्तिम उदाहरण हैं।
- b पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा: अपनी अभिलाषाओं से संघर्ष और युद्ध की भावना को मानने के बजाय, पवित्र होने के लिये अपना उद्देश्य बनाओ।
- c इस कारण हम इस राज्य को पाकर जो हिलने का नहीं: हम उस राज्य से सम्बंध रखते हैं जो स्थायी और अपरिवर्तनीय है। जिसका अर्थ हैं, छुटकारा देनेवाले का राज्य जिसका अन्त कभी न होगा।