हाग्गै लेखक हाग्गै 1:1 में इस पुस्तक के लेखक की पहचान है, कि वह भविष्यद्वक्ता हाग्गै है। भविष्यद्वक्ता हाग्गै ने अपने चार सन्देश यरूशलेम के यहूदियों के लिए लिखे है। हाग्गै 2:3 से विदित होता है कि भविष्यद्वक्ता हाग्गै ने मन्दिर के विनाश और निर्वासन से पूर्व यरूशलेम को देखा था अर्थात् वह एक वृद्ध व्यक्ति था जो अपने देश की महिमा को स्मरण कर रहा था। वह एक ऐसा भविष्यद्वक्ता था जिसमें अपने लोगों को बन्धुआई की राख से उठकर संसार के लिए परमेश्वर की ज्योति के अधिकृत स्थान पर पुनः दावा करते देखने की तीव्र लालसा थी। लेखन तिथि एवं स्थान लगभग 520 ई. पू. यह पुस्तक बेबीलोन की बन्धुआई से लौटने के बाद लिखी गई थी। प्रापक यरूशलेमवासी तथा बन्धुआई से स्वदेश आनेवाले लोग उद्देश्य स्वदेश लौटनेवाले यहूदियों को प्रोत्साहित करना कि स्वदेश लौटने का सन्तोष ही पर्याप्त नहीं है; राष्ट्र के प्रमुख लक्ष्य के निमित मन्दिर और आराधना के पुनःस्थापन के प्रयास के द्वारा विश्वास को अभिव्यक्त करना है, और उन्हें प्रोत्साहन देना कि ऐसा करने से यहोवा उन्हें और उनकी भूमि को आशीष देगा, और स्वदेश लौटनेवालों को प्रोत्साहित करना कि उनके पूर्वकालिक विद्रोह के उपरान्त भी यहोवा ने उनके लिए भविष्य में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखा है। मूल विषय यहोवा के भवन का पुनर्निर्माण रूपरेखा 1. मन्दिर के निर्माण की पुकार — 1:1-15 2. परमेश्वर में साहस रखें — 2:1-9 3. पवित्र जीवन की पुकार — 2:10-19 4. भविष्य में विश्वास की पुकार — 2:20-23
1परमेश्वर का भवन बनाने की आज्ञा 1 दारा राजा के राज्य के दूसरे वर्ष के छठवें महीने के पहले दिन, यहोवा का यह वचन, हाग्गै भविष्यद्वक्ता के द्वारा, शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल के पास, जो यहूदा का अधिपति था, और यहोसादाक के पुत्र यहोशू महायाजक के पास पहुँचा 2 “सेनाओं का यहोवा यह कहता है, ये लोग कहते हैं कि यहोवा का भवन बनाने का समय नहीं आया है।” 3 फिर यहोवा का यह वचन हाग्गै भविष्यद्वक्ता के द्वारा पहुँचा, 4 “क्या तुम्हारे लिये अपने छतवाले घरों में रहने का समय है, जबकि यह भवन उजाड़ पड़ा है? 5 इसलिए अब सेनाओं का यहोवा यह कहता है, अपने-अपने चाल-चलन पर ध्यान करो। 6 तुम ने बहुत बोया परन्तु थोड़ा काटा; तुम खाते हो, परन्तु पेट नहीं भरता; तुम पीते हो, परन्तु प्यास नहीं बुझती; तुम कपड़े पहनते हो, परन्तु गरमाते नहीं; और जो मजदूरी कमाता है, वह अपनी मजदूरी की कमाई को छेदवाली थैली में रखता है।7 “सेनाओं का यहोवा तुम से यह कहता है, अपने-अपने चाल चलन पर सोचो। 8 पहाड़ पर चढ़ जाओ और लकड़ी ले आओ और इस भवन को बनाओ; और मैं उसको देखकर प्रसन्न होऊँगा, और मेरी महिमा होगी, यहोवा का यही वचन है। 9 तुम ने बहुत उपज की आशा रखी, परन्तु देखो थोड़ी ही है; और जब तुम उसे घर ले आए, तब मैंने उसको उड़ा दिया। सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है, ऐसा क्यों हुआ? क्या इसलिए नहीं, कि मेरा भवन उजाड़ पड़ा है*इसलिए नहीं, कि मेरा भवन उजाड़ पड़ा है: वे अपनी भौतिक रूचियों में व्यस्त थे, उनके पास परमेश्वर की बातों के लिए समय नहीं था और तुम में से प्रत्येक अपने-अपने घर को दौड़ा चला जाता है? 10 इस कारण आकाश से ओस गिरना और पृथ्वी से अन्न उपजना दोनों बन्द हैं। 11 और मेरी आज्ञा से पृथ्वी और पहाड़ों पर, और अन्न और नये दाखमधु पर और ताजे तेल पर, और जो कुछ भूमि से उपजता है उस पर, और मनुष्यों और घरेलू पशुओं पर, और उनके परिश्रम की सारी कमाई पर भी अकाल पड़ा है।”
लोगों की आज्ञाकारिता 12 तब शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और यहोसादाक के पुत्र यहोशू महायाजक ने सब बचे हुए लोगों समेत अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानी; और जो वचन उनके परमेश्वर यहोवा ने उनसे कहने के लिये हाग्गै भविष्यद्वक्ता को भेज दिया था, उसे उन्होंने मान लिया; और लोगों ने यहोवा का भय माना। 13 तब यहोवा के दूत हाग्गै ने यहोवा से आज्ञा पाकर उन लोगों से यह कहा, “यहोवा की यह वाणी है, मैं तुम्हारे संग हूँ।” (मत्ती 28:20) 14 और यहोवा ने शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल को जो यहूदा का अधिपति था, और यहोसादाक के पुत्र यहोशू महायाजक को, और सब बचे हुए लोगों के मन को उभारकर उत्साह से भर दिया†लोगों के मन को उभारकर उत्साह से भर दिया: लोगों में उत्साह जो पहले उनमें शिथिल था, शरीर नहीं, प्राणात्मा नहीं परन्तु आत्मा सर्वोत्तम ज्ञान रखती है कि परमेश्वर के भवन को कैसे बनाया जाए। कि वे आकर अपने परमेश्वर, सेनाओं के यहोवा के भवन को बनाने में लग गए। 15 यह दारा राजा के राज्य के दूसरे वर्ष के छठवें महीने के चौबीसवें दिन हुआ।
हाग्गै 2 ->
- a इसलिए नहीं, कि मेरा भवन उजाड़ पड़ा है: वे अपनी भौतिक रूचियों में व्यस्त थे, उनके पास परमेश्वर की बातों के लिए समय नहीं था
- b लोगों के मन को उभारकर उत्साह से भर दिया: लोगों में उत्साह जो पहले उनमें शिथिल था, शरीर नहीं, प्राणात्मा नहीं परन्तु आत्मा सर्वोत्तम ज्ञान रखती है कि परमेश्वर के भवन को कैसे बनाया जाए।
7 “सेनाओं का यहोवा तुम से यह कहता है, अपने-अपने चाल चलन पर सोचो। 8 पहाड़ पर चढ़ जाओ और लकड़ी ले आओ और इस भवन को बनाओ; और मैं उसको देखकर प्रसन्न होऊँगा, और मेरी महिमा होगी, यहोवा का यही वचन है। 9 तुम ने बहुत उपज की आशा रखी, परन्तु देखो थोड़ी ही है; और जब तुम उसे घर ले आए, तब मैंने उसको उड़ा दिया। सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है, ऐसा क्यों हुआ? क्या इसलिए नहीं, कि मेरा भवन उजाड़ पड़ा है*इसलिए नहीं, कि मेरा भवन उजाड़ पड़ा है: वे अपनी भौतिक रूचियों में व्यस्त थे, उनके पास परमेश्वर की बातों के लिए समय नहीं था और तुम में से प्रत्येक अपने-अपने घर को दौड़ा चला जाता है? 10 इस कारण आकाश से ओस गिरना और पृथ्वी से अन्न उपजना दोनों बन्द हैं। 11 और मेरी आज्ञा से पृथ्वी और पहाड़ों पर, और अन्न और नये दाखमधु पर और ताजे तेल पर, और जो कुछ भूमि से उपजता है उस पर, और मनुष्यों और घरेलू पशुओं पर, और उनके परिश्रम की सारी कमाई पर भी अकाल पड़ा है।”
- a इसलिए नहीं, कि मेरा भवन उजाड़ पड़ा है: वे अपनी भौतिक रूचियों में व्यस्त थे, उनके पास परमेश्वर की बातों के लिए समय नहीं था
- b लोगों के मन को उभारकर उत्साह से भर दिया: लोगों में उत्साह जो पहले उनमें शिथिल था, शरीर नहीं, प्राणात्मा नहीं परन्तु आत्मा सर्वोत्तम ज्ञान रखती है कि परमेश्वर के भवन को कैसे बनाया जाए।