6 फिर ऐसा हुआ कि चालीस दिन के पश्चात् नूह ने अपने बनाए हुए जहाज की खिड़की को खोलकर, 7 एक कौआ उड़ा दिया: जब तक जल पृथ्वी पर से सूख न गया, तब तक कौआ इधर-उधर फिरता रहा। 8 फिर उसने अपने पास से एक कबूतरी को भी उड़ा दिया कि देखे कि जल भूमि से घट गया कि नहीं। 9 उस कबूतरी को अपने पैर टेकने के लिये कोई आधार न मिला, तो वह उसके पास जहाज में लौट आई: क्योंकि सारी पृथ्वी के ऊपर जल ही जल छाया था तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे अपने पास जहाज में ले लिया। 10 तब और सात दिन तक ठहरकर, उसने उसी कबूतरी को जहाज में से फिर उड़ा दिया। 11 और कबूतरी साँझ के समय उसके पास आ गई, तो क्या देखा कि उसकी चोंच में जैतून का एक नया पत्ता है; इससे नूह ने जान लिया, कि जल पृथ्वी पर घट गया है। 12 फिर उसने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौटकर न आई।
13 नूह की आयु के छः सौ एक वर्ष के पहले महीने के पहले दिन जल पृथ्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज की छत खोलकर क्या देखा कि धरती सूख गई है। 14 और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृथ्वी पूरी रीति से सूख गई।
परमेश्वर की वाचा
15 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, 16 “तू अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत जहाज में से निकल आ। 17 क्या पक्षी, क्या पशु, क्या सब भाँति के रेंगनेवाले जन्तु जो पृथ्वी पर रेंगते हैं; जितने शरीरधारी जीव-जन्तु तेरे संग हैं, उन सब को अपने साथ निकाल ले आ कि पृथ्वी पर उनसे बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें-फलें, और पृथ्वी पर फैल जाएँ।” 18 तब नूह और उसके पुत्र और पत्नी और बहुएँ, निकल आईं। (2 पत. 2:5) 19 और सब चौपाए, रेंगनेवाले जन्तु, और पक्षी, और जितने जीवजन्तु पृथ्वी पर चलते फिरते हैं, सब जाति-जाति करके जहाज में से निकल आए।
aपरमेश्वर ने नूह और जितने जंगली पशु और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभी की सुधि ली: उसे जल से बचाने के लिए उठाएँ कदम के द्वारा परमेश्वर ने उसकी सुधि ली। इसके विषय में कई कदम उठाएँ गए।
bनूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई: जब नूह और उसका परिवार, परमेश्वर की विशेष दया से सूखी भूमि पर पहुँच गए, तो उन्होंने उसको विश्वास और धन्यवाद की भेंट अर्पित करके आनन्द मनाया। नूह की भेंट को परमेश्वर ने स्वीकार किया।