13 तब यह सोचकर कि शेकेम ने हमारी बहन दीना को अशुद्ध किया है, याकूब के पुत्रों ने शेकेम और उसके पिता हमोर को छल के साथ यह उत्तर दिया*याकूब के पुत्रों ने....छल के साथ यह उत्तर दिया: जो “नहीं होना चाहिए था” और जिसे फिर से ठीक नहीं किया जा सकता उस अपराध की क्रोध-अग्नि से वे जल रहे थे। फिर भी वे परमशक्ति की उपस्थिति में हैं और इस कारण, वे छल का सहारा लेते हैं। , 14 “हम ऐसा काम नहीं कर सकते कि किसी खतनारहित पुरुष को अपनी बहन दें; क्योंकि इससे हमारी नामधराई होगी। 15 इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे कि हमारे समान तुम में से हर एक पुरुष का खतना किया जाए। 16 तब हम अपनी बेटियाँ तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियाँ ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनों एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएँगे। 17 पर यदि तुम हमारी बात न मानकर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपनी लड़की को लेकर यहाँ से चले जाएँगे।”
18 उसकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्र शेकेम प्रसन्न हुए। 19 और वह जवान जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता था, इस काम को करने में उसने विलम्ब न किया। वह तो अपने पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित था। 20 इसलिए हमोर और उसका पुत्र शेकेम अपने नगर के फाटक के निकट जाकर नगरवासियों को यह समझाने लगे; 21 “वे मनुष्य तो हमारे संग मेल से रहना चाहते हैं; अतः उन्हें इस देश में रहकर लेन-देन करने दो; देखो, यह देश उनके लिये भी बहुत है; फिर हम लोग उनकी बेटियों को ब्याह लें, और अपनी बेटियों को उन्हें दिया करें। 22 वे लोग केवल इस बात पर हमारे संग रहने और एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाने को प्रसन्न हैं कि उनके समान हमारे सब पुरुषों का भी खतना किया जाए। 23 क्या उनकी भेड़-बकरियाँ, और गाय-बैल वरन् उनके सारे पशु और धन-सम्पत्ति हमारी न हो जाएगी? इतना ही करें कि हम लोग उनकी बात मान लें, तो वे हमारे संग रहेंगे।” 24 इसलिए जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे, उन सभी ने हमोर की और उसके पुत्र शेकेम की बात मानी; और हर एक पुरुष का खतना किया गया, जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे।
25 तीसरे दिन, जब वे लोग पीड़ित पड़े थे, तब ऐसा हुआ कि शिमोन और लेवी नामक याकूब के दो पुत्रों ने, जो दीना के भाई थे, अपनी-अपनी तलवार ले उस नगर में निधड़क घुसकर सब पुरुषों को घात किया। 26 हमोर और उसके पुत्र शेकेम को उन्होंने तलवार से मार डाला, और दीना को शेकेम के घर से निकाल ले गए। 27 याकूब के पुत्रों ने घात कर डालने पर भी चढ़कर नगर को इसलिए लूट लिया कि उसमें उनकी बहन अशुद्ध की गई थी। 28 उन्होंने भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और गदहे, और नगर और मैदान में जितना धन था ले लिया। 29 उस सब को, और उनके बाल-बच्चों, और स्त्रियों को भी हर ले गए, वरन् घर-घर में जो कुछ था, उसको भी उन्होंने लूट लिया। 30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, “तुम ने जो इस देश के निवासी कनानियों और परिज्जियों के मन में मेरे प्रति घृणा उत्पन्न कराई है, इससे तुम ने मुझे संकट में डाला है†तुम ने मुझे संकट में डाला है: याकूब के सब पुत्रों ने मिलकर नगर को लूट लिया था। उन्होंने उनके सब पशुओं और धन को ले लिया और उनकी पत्नियों और बाल-बच्चों को बन्दी बना लिया। याकूब इस हिंसात्मक कार्य से बहुत परेशान था, जो उसकी नीति और उसकी दयालुता के विपरीत था।, क्योंकि मेरे साथ तो थोड़े ही लोग हैं, इसलिए अब वे इकट्ठे होकर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, तो मैं अपने घराने समेत सत्यानाश हो जाऊँगा।” 31 उन्होंने कहा, “क्या वह हमारी बहन के साथ वेश्या के समान बर्ताव करे?”
<- उत्पत्ति 33उत्पत्ति 35 ->- a याकूब के पुत्रों ने....छल के साथ यह उत्तर दिया: जो “नहीं होना चाहिए था” और जिसे फिर से ठीक नहीं किया जा सकता उस अपराध की क्रोध-अग्नि से वे जल रहे थे। फिर भी वे परमशक्ति की उपस्थिति में हैं और इस कारण, वे छल का सहारा लेते हैं।
- b तुम ने मुझे संकट में डाला है: याकूब के सब पुत्रों ने मिलकर नगर को लूट लिया था। उन्होंने उनके सब पशुओं और धन को ले लिया और उनकी पत्नियों और बाल-बच्चों को बन्दी बना लिया। याकूब इस हिंसात्मक कार्य से बहुत परेशान था, जो उसकी नीति और उसकी दयालुता के विपरीत था।