12 फिर एसाव ने कहा, “आ, हम बढ़ चलें: और मैं तेरे आगे-आगे चलूँगा।” 13 याकूब ने कहा, “हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साथ सुकुमार लड़के, और दूध देनेहारी भेड़-बकरियाँ और गायें है; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हाँके जाएँ, तो सब के सब मर जाएँगे। 14 इसलिए मेरा प्रभु अपने दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार, जो मेरे आगे हैं, और बच्चों की गति के अनुसार धीरे धीरे चलकर सेईर में अपने प्रभु के पास पहुँचूँगा।” 15 एसाव ने कहा, “तो अपने साथियों में से मैं कई एक तेरे साथ छोड़ जाऊँ।” उसने कहा, “यह क्यों? इतना ही बहुत है, कि मेरे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।” 16 तब एसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया। 17 परन्तु याकूब वहाँ से निकलकर सुक्कोत†सुक्कोत: जो यरदन के पूर्व और यब्बोक के दक्षिण में है। को गया, और वहाँ अपने लिये एक घर, और पशुओं के लिये झोंपड़े बनाए। इसी कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा।
- a भूमि पर गिरकर दण्डवत् की: पास आने पर याकूब ने गिरकर सात बार दण्डवत् किया, जो अपने बड़े भाई के प्रति उसके पूर्ण समर्पण का प्रतीक था। एक जंगल के शिकारी एसाव का हृदय इससे पिघल गया और वह उस पर अपने अपार स्नेह को प्रगट करता है, जिसे याकूब भी करता है।
- b सुक्कोत: जो यरदन के पूर्व और यब्बोक के दक्षिण में है।
- c एल-एलोहे-इस्राएल: अर्थात् परमेश्वर, इस्राएल का परमेश्वर, इस्राएल का परमेश्वर शक्तिशाली है