10 उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहाँ से आगे बहकर चार नदियों में बँट गई। (प्रका. 22:2) 11 पहली नदी का नाम पीशोन है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहाँ सोना मिलता है घेरे हुए है। 12 उस देश का सोना उत्तम होता है; वहाँ मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं। 13 और दूसरी नदी का नाम गीहोन है; यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है। 14 और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह वही है जो अश्शूर के पूर्व की ओर बहती है। और चौथी नदी का नाम फरात है।
15 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर†परमेश्वर ने आदम को लेकर: वही सर्व-सामर्थी हाथ जिसने उसे बनाया था, उसने अब भी उसे थाम रखा था, और उसने उसे वाटिका में रखा। उसने वह वाटिका उसे विश्राम करने या उसमें वास करने के लिए दी, जो एक शान्ति और विश्रान्ति का स्थान था। अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रखवाली करे। 16 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, “तू वाटिका के किसी भी वृक्षों का फल खा सकता है; 17 पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।”
18 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं‡आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं: परमेश्वर ने मनुष्य को समाजिक प्राणी बनाया, कि वह न केवल अपने से बड़ो के साथ बातचीत करे बल्कि समान लोगों के साथ भी करे। उसे एक साथी चाहिए था जिसके साथ वह बातचीत कर सके और परमेश्वर ने उसकी इस जरूरत की पूर्ति करने का निर्णय किया।; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उसके लिये उपयुक्त होगा।” (1 कुरि. 11:9) 19 और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के जंगली पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। 20 अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के जंगली पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके। 21 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकी जगह माँस भर दिया। (1 कुरि. 11:8) 22 और यहोवा परमेश्वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। (1 तीमु. 2:13) 23 तब आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।” 24 इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे। (मत्ती 19:5, मर. 10:7,8, इफि. 5:31) 25 आदम और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे, पर वे लज्जित न थे।
<- उत्पत्ति 1उत्पत्ति 3 ->- a सातवें दिन विश्राम किया: परमेश्वर का विश्राम थकान के कारण नहीं परन्तु अपना कार्य समाप्त करने से है। वह अपनी शक्ति को फिर से प्राप्त करके तरोताजा नहीं हुआ बल्कि अपने सामने समाप्त कार्य को देखने की तृप्ति से हुआ।
- b परमेश्वर ने आदम को लेकर: वही सर्व-सामर्थी हाथ जिसने उसे बनाया था, उसने अब भी उसे थाम रखा था, और उसने उसे वाटिका में रखा। उसने वह वाटिका उसे विश्राम करने या उसमें वास करने के लिए दी, जो एक शान्ति और विश्रान्ति का स्थान था।
- c आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं: परमेश्वर ने मनुष्य को समाजिक प्राणी बनाया, कि वह न केवल अपने से बड़ो के साथ बातचीत करे बल्कि समान लोगों के साथ भी करे। उसे एक साथी चाहिए था जिसके साथ वह बातचीत कर सके और परमेश्वर ने उसकी इस जरूरत की पूर्ति करने का निर्णय किया।