1 तब मैंने वह सब अंधेर देखा[a] जो सूर्य के नीचे होता है। और क्या देखा, कि अंधेर सहनेवालों के आँसू बह रहे हैं, और उनको कोई शान्ति देनेवाला नहीं! अंधेर करनेवालों के हाथ में शक्ति थी, परन्तु उनको कोई शान्ति देनेवाला नहीं था। 2 इसलिए मैंने मरे हुओं को जो मर चुके हैं, उन जीवितों से जो अब तक जीवित हैं अधिक धन्य कहा; 3 वरन् उन दोनों से अधिक अच्छा वह है जो अब तक हुआ ही नहीं, न यह बुरे काम देखे जो सूर्य के नीचे होते हैं।
5 मूर्ख छाती पर हाथ रखे रहता और अपना माँस खाता है।
6 चैन के साथ एक मुट्ठी उन दो मुट्ठियों से अच्छा है, जिनके साथ परिश्रम और वायु को पकड़ना हो।
7 फिर मैंने सूर्य के नीचे यह भी व्यर्थ बात देखी। 8 कोई अकेला रहता और उसका कोई नहीं है; न उसके बेटा है, न भाई है, तो भी उसके परिश्रम का अन्त नहीं होता; न उसकी आँखें धन से सन्तुष्ट होती हैं, और न वह कहता है, मैं किसके लिये परिश्रम करता और अपने जीवन को सुखरहित रखता हूँ? यह भी व्यर्थ और निरा दुःख भरा काम है।
- a तब मैंने वह सब अंधेर देखा: वह अन्य घटनाओं को देखता है और उनके द्वारा अपने पूर्वकालिक निष्कर्षो को जाँचता है।
- b लोग अपने पड़ोसी से जलन के कारण करते हैं: सफलता कार्य करनेवाले को ईर्ष्या का पात्र बना देती है। यह कार्य पड़ोसी के साथ मनुष्य की प्रतिद्वंद्विता का परिणाम है।
- c एक से दो अच्छे हैं: साथी के बिना मनुष्य ऐसा है जैसा दाहिने हाथ के बिना बायाँ हाथ।