6 तब वे अध्यक्ष और अधिपति राजा के पास उतावली से आए, और उससे कहा, “हे राजा दारा, तू युग-युग जीवित रहे। 7 राज्य के सारे अध्यक्षों ने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और राज्यपालों ने आपस में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य या देवता से विनती करे*तुझे छोड़ किसी और मनुष्य या देवता से विनती करे: कोई भी चाहे वह किसी भी बड़े पद पर हो, यहाँ मुख्य उद्देश्य दानिय्येल को अपमानित करना था परन्तु उसके लिए एक सार्वभौमिक निषेध की आवश्यकता थी।, वह सिंहों की माँद में डाल दिया जाए। 8 इसलिए अब हे राजा, ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर, जिससे यह बात मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार अदल-बदल न हो सके।” 9 तब दारा राजा ने उस आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर कर दिया।
14 यह वचन सुनकर, राजा बहुत उदास हुआ, और दानिय्येल को बचाने के उपाय सोचने लगा; और सूर्य के अस्त होने तक उसके बचाने का यत्न करता रहा। 15 तब वे पुरुष राजा के पास उतावली से आकर कहने लगे, “हे राजा, यह जान रख, कि मादियों और फारसियों में यह व्यवस्था है कि जो-जो मनाही या आज्ञा राजा ठहराए, वह नहीं बदल सकती।”
16 तब राजा ने आज्ञा दी, और दानिय्येल लाकर सिंहों की माँद में डाल दिया गया। उस समय राजा ने दानिय्येल से कहा, “तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए!” 17 तब एक पत्थर लाकर†तब एक पत्थर लाकर: सम्भवतः एक बड़ा समतल पत्थर शेर की गुफा को ढाँप सकता था और बच निकलने के लिए उसे हटाना दानिय्येल के लिए असंभव था। उस माँद के मुँह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी से, और अपने प्रधानों की अँगूठियों से मुहर लगा दी कि दानिय्येल के विषय में कुछ बदलने न पाए।
19 भोर को पौ फटते ही राजा उठा, और सिंहों के माँद की ओर फुर्ती से चला गया। 20 जब राजा माँद के निकट आया, तब शोकभरी वाणी से चिल्लाने लगा और दानिय्येल से कहा, “हे दानिय्येल, हे जीविते परमेश्वर के दास, क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है?” 21 तब दानिय्येल ने राजा से कहा, “हे राजा, तू युग-युग जीवित रहे! 22 मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुँह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके सामने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैंने कोई भूल नहीं की।” (यशा. 63:9, भज. 34:7) 23 तब राजा ने बहुत आनन्दित होकर‡राजा ने बहुत आनन्दित होकर: दानिय्येल को पूर्णतः सुरक्षित देखकर राजा आनन्द से भर गया, उसे अपने स्थान पर पुनः प्रतिष्ठित किया जा सकता है, और राज्य में फिर से उपयोगी हो सकता है। , दानिय्येल को माँद में से निकालने की आज्ञा दी। अतः दानिय्येल माँद में से निकाला गया, और उस पर हानि का कोई चिन्ह न पाया गया, क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर विश्वास रखता था।
25 तब दारा राजा ने सारी पृथ्वी के रहनेवाले देश-देश और जाति-जाति के सब लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवालों के पास यह लिखा, “तुम्हारा बहुत कुशल हो! 26 मैं यह आज्ञा देता हूँ कि जहाँ-जहाँ मेरे राज्य का अधिकार है, वहाँ के लोग दानिय्येल के परमेश्वर के सम्मुख काँपते और थरथराते रहें, क्योंकि जीविता और युगानुयुग तक रहनेवाला परमेश्वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्थिर रहेगी। (दानि. 7:27, भज. 99:1-3) 27 जिसने दानिय्येल को सिंहों से बचाया है, वही बचाने और छुड़ानेवाला है; और स्वर्ग में और पृथ्वी पर चिन्हों और चमत्कारों का प्रगट करनेवाला है।”
28 और दानिय्येल, दारा और कुस्रू फारसी, दोनों के राज्य के दिनों में सुख-चैन से रहा।
<- दानिय्येल 5दानिय्येल 7 ->- a तुझे छोड़ किसी और मनुष्य या देवता से विनती करे: कोई भी चाहे वह किसी भी बड़े पद पर हो, यहाँ मुख्य उद्देश्य दानिय्येल को अपमानित करना था परन्तु उसके लिए एक सार्वभौमिक निषेध की आवश्यकता थी।
- b तब एक पत्थर लाकर: सम्भवतः एक बड़ा समतल पत्थर शेर की गुफा को ढाँप सकता था और बच निकलने के लिए उसे हटाना दानिय्येल के लिए असंभव था।
- c राजा ने बहुत आनन्दित होकर: दानिय्येल को पूर्णतः सुरक्षित देखकर राजा आनन्द से भर गया, उसे अपने स्थान पर पुनः प्रतिष्ठित किया जा सकता है, और राज्य में फिर से उपयोगी हो सकता है।