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थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस प्रेरित की दूसरी पत्री
लेखक
प्रथम पत्र के सदृश्य यह पत्र भी पौलुस, तीमुथियुस एवं सीलास की ओर से था। लेखक ने इस पत्र में भी वही लेखन शैली का इस्तेमाल किया है जो पौलुस ने 1 थिस्सलुनीकियों और अन्य पत्रों में किए है। इससे स्पष्ट होता है कि मुख्य लेखक पौलुस ही था। सीलास और तीमुथियुस का नाम अभिवादन में जोड़ा गया है (1:1)। अनेक पदों में “हम” लिखने का अर्थ है कि इस पत्र के लेखन में तीनों एक मन हैं। क्योंकि पौलुस ने अन्तिम नमस्कार एवं प्रार्थना अपने हाथों से लिखी थी, इस कारण पत्र लेखन कार्य पौलुस का नहीं है (3:17)। ऐसा प्रतीत होता है कि पौलुस ने तीमुथियुस या सीलास के हाथों यह पत्र लिखवाया था।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग ई.स. 51 - 52
पौलुस ने यह दूसरा पत्र कुरिन्थ नगर से लिखा था, जब वह प्रथम पत्र लिखते समय वहाँ उपस्थित था।
प्रापक
2 थिस्स. 1:1 पाठकों की पहचान कराता है कि वे “थिस्सलुनीके की कलीसिया” के सदस्य थे।
उद्देश्य
इस पत्री का उद्देश्य था कि प्रभु के दिन के विषय में भ्रमित शिक्षा का खण्डन किया जाए। विश्वास में बने रहने के लिए उन्होंने जो यत्न किया उसके लिए उनकी प्रशंसा करे और उन्हें प्रोत्साहित करे और अन्त समय से सम्बंधित शिक्षा में भ्रम में पड़नेवालों को झिड़के क्योंकि उनकी शिक्षा के अनुसार प्रभु का दिन आ चुका था और प्रभु का आगमन अति निकट है। इस प्रकार वे इस शिक्षा के माध्यम से अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे।
मूल विषय
आशा में जीना
रूपरेखा
1. अभिवादन — 1:1, 2
2. कष्टों में ढाढ़स बाँधना — 1:3-12
3. प्रभु के दिनों के बारे में त्रुटि सुधार — 2:1-12
4. उनकी नियति के विषय स्मरण करवाना — 2:13-17
5. व्यावहारिक विषयों में प्रबोधन — 3:1-15
6. अन्तिम नमस्कार — 3:16-18

1
शुभकामनाएँ
1 पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के नाम, जो हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में है:

2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।

न्याय का दिन
3 हे भाइयों, तुम्हारे विषय में हमें हर समय परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, और यह उचित भी है इसलिए कि तुम्हारा विश्वास बहुत बढ़ता जाता है, और आपस में तुम सब में प्रेम बहुत ही बढ़ता जाता है। 4 यहाँ तक कि हम आप परमेश्वर की कलीसिया में तुम्हारे विषय में घमण्ड करते हैं, कि जितने उपद्रव और क्लेश तुम सहते हो, उन सब में तुम्हारा धीरज और विश्वास प्रगट होता है।

5 यह परमेश्वर के सच्चे न्याय का स्पष्ट प्रमाण है; कि तुम परमेश्वर के राज्य के योग्य ठहरो, जिसके लिये तुम दुःख भी उठाते हो*जिसके लिये तुम दुःख भी उठाते हो: अब जो यह कष्ट तुम सहन करते हो वह इसलिए है क्योंकि तुम स्वर्ग राज्य के आत्मस्वीकृत वारिस हो।6 क्योंकि परमेश्वर के निकट यह न्याय है, कि जो तुम्हें क्लेश देते हैं, उन्हें बदले में क्लेश दे। 7 और तुम जो क्लेश पाते हो, हमारे साथ चैन दे; उस समय जबकि प्रभु यीशु अपने सामर्थी स्वर्गदूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। (यहू. 1:14,15, प्रका. 14:13) 8 और जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उनसे पलटा लेगा। (भज. 79:6, यशा. 66:15, यिर्म. 10:25) 9 वे प्रभु के सामने से, और उसकी शक्ति के तेज से दूर होकरउसकी शक्ति के तेज से दूर होकर: इसका अर्थ यह प्रतीत होता है कि, जब वह प्रकट होंगे तो वे उसकी शक्ति और महिमा की अभिव्यक्ति सहन करने में सक्षम नहीं होंगे। अनन्त विनाश का दण्ड पाएँगे। (प्रका. 21:8, मत्ती 25:41,46, यशा. 2:19,21) 10 यह उस दिन होगा, जब वह अपने पवित्र लोगों में महिमा पाने, और सब विश्वास करनेवालों में आश्चर्य का कारण होने को आएगा; क्योंकि तुम ने हमारी गवाही पर विश्वास किया। (1 थिस्स. 2:13, 1 कुरि. 1:6, भज. 89:7, यशा. 49:3) 11 इसलिए हम सदा तुम्हारे निमित्त प्रार्थना भी करते हैं, कि हमारा परमेश्वर तुम्हें इस बुलाहट के योग्य समझे, और भलाई की हर एक इच्छा, और विश्वास के हर एक काम को सामर्थ्य सहित पूरा करे, 12 कि हमारे परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह के अनुसार हमारे प्रभु यीशु का नाम तुम में महिमा पाए, और तुम उसमें। (यशा. 24:15, यशा. 66:5, 1 पत. 1:7-8)

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